National Wildlife Week: गजराज के संरक्षण से ही संभव वनों का बचाव, मनुष्य के साथ बेहतर ताल मिलाने में भी सक्षम

हाथी का जंगल में रहना कई लुप्त हो रहे पेड़-पौधों सुक्ष्म जीव जंगली जानवरों और पक्षियों के संरक्षण को सुनिश्चित करता है। देश में हर वर्ष 2-8 अक्टूबर के दौरान वन्य जीव सप्ताह आयोजित किया जाता है। ऐसे में इस दिशा में सभी को जागरूक होने की आवश्यकता है।

By Jagran NewsEdited By: Publish:Tue, 04 Oct 2022 10:36 AM (IST) Updated:Tue, 04 Oct 2022 10:36 AM (IST)
National Wildlife Week: गजराज के संरक्षण से ही संभव वनों का बचाव, मनुष्य के साथ बेहतर ताल मिलाने में भी सक्षम
मनुष्य के साथ भी बेहतर ताल मिलाने में सक्षम होता है हाथी। फाइल

पंकज चतुर्वेदी। इन दिनों झारखंड और छत्तीसगढ़ में हाथी के गांव में घुसने व तोड़-फोड़ करने की कई घटनाएं सामने आई हैं। बीते तीन वर्षों के दौरान हाथियों के इंसान से टकराव की बढ़ती घटनाओं में लगभग 300 हाथी मारे गए तो 1400 से अधिक मनुष्यों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। कहने को भले ही हम कहें कि हाथी उनके गांव-घर में घुस रहा है, जबकि वास्तविकता यह है कि प्राकृतिक संसाधनों के सिमटने के चलते भूखा-प्यासा हाथी अपने ही पारंपरिक इलाकों में जाता है।

दुखद है कि वहां अब बस्ती, सड़क का जंजाल है। ‘द क्रिटिकल नीड आफ एलिफेंट डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया’ की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में इस समय लगभग 50 हजार हाथी बचे हैं, जिनमें से 60 प्रतिशत भारत में हैं। यह समझना जरूरी है कि धरती पर इंसान का अस्तित्व तभी तक है जब तक जंगल हैं और जंगल में जितना जरूरी बाघ है उससे अधिक अनिवार्यता हाथी की है। दुनियाभर में हाथियों को संरक्षित करने के लिए गठित आठ देशों के समूह में भारत शामिल हो गया है।

राष्ट्रीय धरोहर पशु

भारत में इसे ‘राष्ट्रीय धरोहर पशु’ घोषित किया गया है। इसके बावजूद भारत में बीते दो दशकों के दौरान हाथियों की संख्या स्थिर हो गई हे। जिस देश में हाथी के सिर वाले गणेश को प्रत्येक शुभ कार्य से पहले पूजने की परंपरा है, वहां की बड़ी आबादी हाथियों से छुटकारा चाहती है। पिछले एक दशक के दौरान मध्य भारत में हाथी का प्राकृतिक पर्यावास कहलाने वाले झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओिड़शा जैसे राज्यों में हाथियों के बेकाबू झुंड के हाथों एक हजार से ज्यादा लाग मारे जा चुके हैं। इंसान और हाथी के बीच के रण का दायरा विस्तृत होता जा रहा है। हाथियों को अपने भाेजन-पानी के लिए हर रोज 18 घंटों तक भटकना पड़ता है।

गौरतलब है कि हाथी दिखने में भले ही भारी-भरकम हैं, परंतु उसका मिजाज नाजुक और संवेदनशील होता है। थोड़ी थकान या भूख उसे तोड़ कर रख देती है। ऐसे में उसके प्राकृतिक घर यानी जंगल को जब नुकसान पहुंचाया जाता है तो मनुष्य से उसकी भिड़ंत होती है। वन पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को सहेज कर रखने में गजराज की महत्वपूर्ण भूमिका है। अधिकांश संरक्षित क्षेत्रों में, मानव जनसंख्या हाथियों के आवासीय क्षेत्रों के पास हैं और वन संसाधनों पर निर्भर हैं। तभी जंगल में मानव अतिक्रमण और खेतों में हाथियों की आवाजाही ने संघर्ष की स्थिति बनाई और तभी यह विशाल जानवर खतरे में है।

हाथी की लीद एक समृद्ध खाद

एक बात जान लें किसी भी जंगल के विस्तार में हाथी सबसे बड़ा बीज-वाहक होता है। वह वनस्पति खाता है और कई बार मलत्याग उस स्थान से 60 किमी दूर तक जा कर करता है। उसकी लीद में उसके द्वारा खाई गई वनस्पति के बीज होते हैं। हाथी की लीद एक समृद्ध खाद होती है और उसमें बीज भली-भांति प्रस्फुटित होता है। कहा जा सकता है कि जगल का विस्तार और पारंपरिक वृक्षों का उन्नयन इसी तरह जीव-जंतुओं द्वारा नैसर्गिक रूप से ही होता है। इतना ही नहीं, हाथी की लीद कई तरह के पर्यावरण मित्र कीट-भृगों का भोजन भी होता है। ये कीट न केवल लीद को खाते हैं, बल्कि उसे जमीन के नीचे दबा भी देते हैं जहां उनके लार्वा उसे खाते हैं। इस तरह से कीट कठोर जमीन को मुलायम कर देते है और इस तरह वहां वनस्पति के उपजने का अनुकूल परिवेश तैयार करने में मददगार साबित होते हैं।

यह कहना गलत नहीं होगा कि हाथी जंगल का पारिस्थितिकी तंत्र इंजीनियर है। उसके पदचिन्हों से कई छोटे जानवरों को सुरक्षित रास्ता मिलता है। दरअसल हाथी के विशाल पदचिन्हों में यदि पानी भर जाता है तो वहां मेढक साहित कई छोटे जल-जीवों को आसरा मिल जाता है। हमारे देश में हाथी सदियों से अपनी आवश्यकता के अनुरूप अपना स्थान बदला करते थे। गजराज के आवागमन के इन रास्तों को ‘एलीफेंट कारिडोर’ कहा गया। जब कभी पानी या भोजन का संकट होता है तो गजराज ऐसे रास्तों से दूसरे जंगलों की ओर जाते हैं जिनमें मानव बस्ती न हो। देश में हाथी के सुरक्षित कारिडोरों की संख्या 88 है, इसमें 22 पूर्वोत्तर राज्यों, 20 केंद्रीय भारत और 20 दक्षिण भारत में हैं।

गजराज की सबसे बड़ी खूबी है उनकी याददाश्त। आवागमन के लिए वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी परंपरागत रास्तों का इस्तेमाल करते आए हैं। बढ़ती आबादी के भोजन और आवास की कमी को पूरा करने के लिए जमकर जंगल काटे जा रहे हैं। उसे जब भूख लगती है और जंगल में कुछ मिलता नहीं या फिर जल-स्रोत सूखे मिलते हैं तो वे खेत या बस्ती की ओर आ जाते हैं। हाथियों के प्राकृतिक वास में कमी, जंगलों की कटाई और बेशकीमती दांतों का लालच, कुछ ऐसे कारण हैं जिनके चलते हाथियों को निर्ममता से मारा जा रहा है। हाथी का जंगल में रहना कई लुप्त हो रहे पेड़-पौधों, सुक्ष्म जीव, जंगली जानवरों और पक्षियों के संरक्षण को सुनिश्चित करता है। देश में हर वर्ष दो से आठ अक्टूबर के दौरान वन्य जीव सप्ताह आयोजित किया जाता है। ऐसे में इस दिशा में सभी को जागरूक होने की आवश्यकता है।

[वन एवं पर्यावरण मामलों के जानकार]

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