मैं नभ की चोटी चढ़ता हूं..

नरेंद्र दामोदरदास मोदी। एक शख्सियत, हजार पहलू। किसी के लिए अटल। किसी के लिए स्वेच्छाचारी। कोई कहे मौत का सौदागर। कोई कहे विकास पुरुष। राय चाहे कोई भी हो, लेकिन मोदी सामने वाले पर हावी रहते हैं। जो प्यार करते हैं, उनके दिलों में।

By Edited By: Publish:Sun, 02 Mar 2014 02:36 AM (IST) Updated:Sun, 02 Mar 2014 02:43 AM (IST)
मैं नभ की चोटी चढ़ता हूं..

राजकिशोर/आशुतोष झानरेंद्र दामोदरदास मोदी। एक शख्सियत, हजार पहलू। किसी के लिए अटल। किसी के लिए स्वेच्छाचारी। कोई कहे मौत का सौदागर। कोई कहे विकास पुरुष। राय चाहे कोई भी हो, लेकिन मोदी सामने वाले पर हावी रहते हैं। जो प्यार करते हैं, उनके दिलों में। जिनको घृणा है, उनके दिमाग में वह रच-बस चुके हैं।

मोदी व्यक्तिगत संबंधों में बहुत ज्यादा निवेश नहीं करते। जिनसे हैं भी, उन्हें प्रदर्शित भी नहीं होने देते। व्यवस्था, प्रबंधन व तीसरे उनका आभामंडल। इन तीन सूत्रों पर उनका पूरा कृतित्व व व्यक्तित्व टिका हुआ है। अज्ञेय के शब्दों में, 'मैं कहता हूं, मैं बढ़ता हूं, मैं नभ की चोटी चढ़ता हूं, कुचला जाकर धूली आंधी सा और उमड़ता हूं..' की तर्ज पर वह अपना रास्ता तय करते चले जा रहे हैं।

सत्ता से हासिल की सत्तामोदी का सियासी दर्शन आम राजनेताओं से अलहदा है। अन्य नेताओं ने सहयोग या समर्थन से सत्ता हासिल की। मगर मोदी ने हमेशा सत्ता से सत्ता हासिल की। वह सबके साथ या सबको साथ लेकर नहीं चलते। उनकी शख्सियत है कि वह सबको अपने साथ चलने के लिए मजबूर करते रहे हैं। नेताओं के लिए राजनीतिक रूप से गलत [पॉलिटकली इनकरेक्ट] समझे जाने वाले व्यवहार को ही अपनी ताकत बनाया। जिद्दी, किसी दूसरे को बर्दाश्त न करने वाला, विभाजनकारी या स्वेच्छाचारी या फिर जरूरत से ज्यादा स्वकेंद्रित मार्केटिंग के आरोपों ने ही उन्हें सफल बनाया। उनको नापसंद करने वाले उनमें लाख बुराइयां गिनाएं, लेकिन समाज और राजनीति को समझने वालों को लगता है कि मोदी के अंदर की खामियां ही उन्हें मध्यमवर्ग का दुलारा बनाती हैं। इससे भी बड़ी बात है कि संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं में भी मोदी का तिलिस्म बढ़ता ही जा रहा है।

महाशक्ति को भी मनवाया लोहाबावजूद इसके कि लगातार गुजरात में पार्टी के भीतर अपने विरोधियों से जूझकर उनको मोदी ने ठिकाने लगाया। दिल्ली कूच यानी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी बनने के लिए उन्हें पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और फिर भाजपा के भीतर अंदरूनी विरोध से भी जूझना पड़ा। मगर बिना रुके, बिना डिगे मोदी ने अपनी ही शतरें पर सबको झुकाया। गुजरात की सीमाओं से बाहर निकला नमो-नमो का शोर अब हिंदुस्तान के सियासी आसमान पर छाया है तो दुनिया की महाशक्ति अमेरिका भी घुटनों पर है। गुजरात दंगों का हवाला देकर मोदी को वीजा देने से इन्कार करने वाला अमेरिका अब लोकसभा चुनाव से पहले ही गुजरात के मुख्यमंत्री से संबंध सुधारने में जुट गया है। अमेरिकी राजदूत नैंसी पावेल की मोदी से गांधीनगर जाकर हुई मुलाकात अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भी बढ़ती उनकी धमक का सुबूत है। अन्य विकसित देश या यूरोपीय मुल्क पहले ही मोदी की हनक स्वीकार कर चुके हैं।

ब्रांड मोदी का जन्मझोलाधारी खांटी संघ स्वयंसेवक से ब्रांड मोदी ऐसे ही तैयार नहीं हुआ। कुशल व जिद्दी राजनेता, सख्त प्रशासक की छवि तो मोदी के फैसलों से बनी। साथ ही मोदी ने जनता के बीच खासतौर से युवाओं और महिलाओं की अभिरुचियों के मुताबिक अपने पूरे व्यक्तित्व पर भी सुविचारित रणनीति के साथ काम किया। पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से हिंदुस्तान के सबसे चर्चित राजनेता बने मोदी जब 1984-85 में संघ से भाजपा में भेजे गए तो उनकी वेशभूषा स्वयंसेवकों से कुछ बहुत अलग नहीं थी। पैरों में बेहद सामान्य चप्पल और सफेद ढीले-ढाले मोटी खादी वाले कुर्ते में क्लीन शेव और सिर पर कम होते बाल वाले नरेंद्र मोदी संघ के खांटी प्रचारक ही नजर आते रहे।

यूं हुआ कायापलटउनका कायांतरण शुरू हुआ 1991 में जब तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक एकता यात्रा निकाली। मोदी इस यात्रा के प्रबंधक और सारथी थे। उस समय प्रमुखता से मोदी की अखबारों में फोटो छपनी शुरू हुई थी। बस इसके साथ ही मोदी का ढीला कुर्ता और मोटा खद्दर बदला। राजनीति की मुख्य धारा में आने के बाद मोदी ने दाढ़ी-मूंछ बढ़ा ली थी। इस यात्रा के दौरान शरीर पर फिटिंग के कुर्ते के साथ-साथ महंगे चश्मे मोदी के व्यक्तित्व के अंग बन गए। बाद में 1998 में जब दिल्ली में संगठन महामंत्री बनाया गया तो उनकी अदाएं सब देखते ही रह गए। युवाओं व नई पीढ़ी को सबसे ज्यादा लुभाने वाली आधुनिक प्रौद्योगिकी का जैसा इस्तेमाल मोदी अपनी मार्केटिंग में करते हैं, वैसा देश में फिलहाल कोई नेता नहीं करता। सोशल मीडिया फेसबुक और ट्विटर में उनके लाखों फॉलोअर हैं।

शिखर पर अकेलेनरेंद्र मोदी की टीम में कोई नंबर दो तक नहीं है। आम तौर पर सभी नेताओं के यहां खास निजी लोग होते हैं जो उस नेता से जुड़े अलग-अलग कामों को अंजाम देते हैं। कोई उसका रणनीतिकार, कोई उसका आर्थिक प्रबंधक और कोई प्रशासनिक दूत होता है। कई बड़े नेता अपनी निजी टीम में प्रशासनिक अधिकारियों को रखते हैं। कई के यहां यह दायित्व उनके परिवार वाले संभालते हैं। लेकिन नरेंद्र मोदी के यहां कोई नहीं। गुजरात में कोई भी व्यापारी इस बात की पुष्टि कर देगा की अगर कोई संकट या काम हो तो हर मर्ज की एक ही दवा है नरेंद्र मोदी। यह बात भी आम मध्यमवर्ग को भाती है कि रतन टाटा और मुकेश अंबानी जैसे लोग मोदी की तारीफ करें और उन्हें प्रधानमंत्री पद के लायक बताएं।

मार्केटिंग गुरुकहा जाता है कि नरेंद्र मोदी को महज मार्केटिंग आती है और कुछ नहीं। यह बात मोदी के कई और राजनीतिक शत्रु भी कहते हैं कि वह स्वकेंद्रित हैं, आत्ममुग्ध हैं और पूरे समय केवल अपनी छवि की चिंता करते हैं। मोदी सार्वजनिक स्थानों पर अपनी तस्वीर को लेकर बहुत संवेदनशील हैं। गुजरात सरकार ने दुनिया की सर्वाधिक कुशल और महंगी जनसंपर्क कंपनियों की सेवाएं ली हैं।

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