अब शारीरिक दूरी का नया पैमाना, लोगों के बीच हो आठ मीटर का गैप, छींकने पर बढ़ जाता है ड्रॉपलेट्स का विस्तार क्षेत्र

अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की अमेरिकी शोध पत्रिका में प्रकाशित इस शोध में बताया गया है कि ड्रॉपलेट्स हवा में 23 से 27 फीट या 7-8 मीटर दूर तक जा सकती हैं।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Wed, 01 Apr 2020 09:59 PM (IST) Updated:Wed, 01 Apr 2020 10:29 PM (IST)
अब शारीरिक दूरी का नया पैमाना, लोगों के बीच हो आठ मीटर का गैप, छींकने पर बढ़ जाता है ड्रॉपलेट्स का विस्तार क्षेत्र
अब शारीरिक दूरी का नया पैमाना, लोगों के बीच हो आठ मीटर का गैप, छींकने पर बढ़ जाता है ड्रॉपलेट्स का विस्तार क्षेत्र

नई दिल्ली, एजेंसियां। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization यानी WHO) और यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (US Center for Disease Control and Prevention, CDC) की ओर से जारी दिशा-निर्देश अब नाकाफी मालूम पड़ रहे हैं। एक ताजा शोध के मुताबिक, कोरोना संक्रमित व्यक्ति (coronavirus infected person) के खांसने पर कफ के साथ जो मुंह से हवा निकलती है या छींक आती है, उसकी ड्रॉपलेट्स के जरिए वायरस आठ मीटर (27 फीट) की दूरी तक जाता है।

सांस छोड़ने भर से संक्रमित कर सकता है यह वायरस

यह वायरस मरीज के सांस छोड़ने भर से भी संक्रमित कर सकता है। अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की अमेरिकी शोध पत्रिका में प्रकाशित इस शोध में बताया गया है कि डब्ल्यूएचओ और सीडीसी की कोरोना को लेकर जारी गाइडलाइंस का आधार अभी तक 1930 के पुरातन मॉडल पर आधारित था। अभी तक लोगों को संक्रमण से बचने के लिए अधिकतम डेढ़ मीटर की दूरी बनाए रखने को कहा जाता रहा है।

7-8 मीटर दूर तक जा सकती हैं ड्रॉपलेट्स 

शोधकर्ता और एमआइटी की एसोसिएट प्रोफेसर लाइडिया बॉरॉबा ने चेताया है कि सभी आकार की ड्रॉपलेट्स (छोटी बूंदें) हवा में 23 से 27 फीट या 7-8 मीटर दूर तक जा सकती हैं। कफ और छींकों के स्वरूप पर कई सालों तक शोध कर चुकी शोधकर्ता का कहना है श्वसन प्रणाली से होकर गुजरने वाले कफ और गैस के गुबार या फूंक में समाहित इन सूक्ष्म ड्रॉपलेट्स में सार्स, कोविड-19 के कोरोना वायरस हो सकते हैं।

इसलिए असफल हो रही सोशल डिस्‍टेंसिंग 

मौजूदा मानक के मुताबिक कोरोना के संक्रमण से बचाव में शारीरिक दूरी के लिए छह फीट (दो मीटर) की दूरी को उचित बताया गया है। शोधकर्ता के अनुसार मौजूदा गाइडलाइंस ड्रॉपलेट्स के आकार की मनमानी अवधारणा पर आधारित हैं। इसीलिए इस घातक वैश्विक महामारी का संक्रमण सीमित करने में असफल साबित हो रही हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि पुराने निर्देशों का आधार दो श्रेणियों में हैं-छोटी या बड़ी ड्रॉपलेट्स।

बढ़ जाता है प्रसार क्षेत्र 

अध्‍ययन में पाया गया है कि जब व्यक्ति छींकता, खांसता या जोर से सांस छोड़ता है तो इन ड्रॉपलेट्स का विस्तार क्षेत्र या प्रसार क्षेत्र बढ़ जाता है। खांसी या छींक सौ फीट प्रति सेकेंड की रफ्तार से भी आ सकती है। एमआइटी की वैज्ञानिक ने कुछ हालिया शोधों का हवाला देते हुए बताया कि छींक और कफ में हवा का तीव्र झोंका होता है जिसमें शरीर के अंदर से निकली हवा के साथी ही विभिन्न आकार की सैकड़ों नन्ही बूंदें भी होती हैं।

देर तक हवा में बनी रहती हैं ड्रॉपलेट्स 

वैज्ञानिक ने कहा कि इस फूंक या मुंह या नाक से निकली हवा के झोंके में तीव्र गति से गैस भी निकलती है जो बूंदों को नमी और गरमाहट देती है। इससे ये नन्ही बूंदें बाहरी वातावरण में विलुप्त होने से बच जाती हैं। इस गैस के गुबार में अटकीं बूंदें अधिक समय तक हवा में बनी रहती हैं। इस आधार पर इन ड्रॉपलेट्स का अस्तित्व हवा में इस आधार पर तय होता है कि वह उस गुबार में कैद हैं या वातावरण में अलग-थलग होकर विलुप्त हो गई हैं। इसलिए हवा में यह कुछ सेकेंड से लेकर कुछ मिनट तक बनी रह सकती हैं। यही नहीं कफ या छींक के साथ हवा में आने वाली यह सूक्ष्म बूंदें जब किसी सतह पर गिरती हैं तो उनके अंश हवा में कई घंटे तक बने रह सकते हैं। 

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