हौसले की जमीन पर उगा दी लाखों की फसल

दोनों पैरों से अक्षम किसान ने लीज पर जमीन लेकर टमाटर की खेती से कमाए लाखों ...

By Srishti VermaEdited By: Publish:Thu, 13 Jul 2017 10:22 AM (IST) Updated:Thu, 13 Jul 2017 10:22 AM (IST)
हौसले की जमीन पर उगा दी लाखों की फसल
हौसले की जमीन पर उगा दी लाखों की फसल

लोहरदगा (गफ्फार अंसारी)। यह एक ऐसे व्यक्ति के सबल और सक्षम बनने की कहानी है, जिसके पास जमीन
नहीं थी, लेकिन खेती करने का जज्बा था। पैसे नहीं थे, लेकिन आंखों में सपने थे। यही कारण रहा कि देखते ही देखते मुश्किलें छू-मंतर हो गईं और हौसले की जमीन पर लाखों की फसल लहलहा गई। हम बात कर रहे
हैं झारखंड में लोहरदगा जिले के सेन्हा प्रखंड के जोगना गांव निवासी किसान जितेंद्र मुंडा की। बचपन से ही दोनों पैरों से अक्षम होने के बावजूद 28 साल के जितेंद्र न सिर्फ जिंदगी की दौड़ में विजेता बने हैं, बल्कि आसपास के किसानों के लिए प्रेरणा का स्नोत भी बने हैं। यह सफल गाथा देशभर के उन किसानों के लिए सीख है जो आर्थिक तंगी से हिम्मत हार आत्महत्या कर लेते हैं।

पेंशन के पैसे से जुटाई पूंजी

जितेंद्र बताते हैं कि वह दिव्यांग होने के साथ ही गरीब भी थे। शुरू से ही कुछ कर दिखाने की तमन्ना थी। ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, इसलिए खेती करने की सोची। सबसे पहले हर महीने मिलने वाली 600 रुपये दिव्यांग पेंशन की राशि से पैसे बचाकर 6 हजार रुपये जमा किए। इससे दो एकड़ जमीन लीज पर ली। फिर गांव के ही अन्य किसानों से रुपये उधार लेकर इस जमीन पर 20 हजार रुपये की पूंजी से टमाटर लगाया। जी-तोड़ मेहनत रंग लाई और हजारों की पूंजी को लाख में बदलते देर नहीं लगी। जितेंद्र अब तक एक लाख रुपये से अधिक के टमाटर बेच चुके हैं। अपने उधार चुकता कर चुके हैं। सरकारी योजना के तहत मिली ट्राई साइकिल से ही वह अपने टमाटर को बाजार लेकर जाते हैं। जितेंद्र ने अपने खेत में गांव के 4-5 लोगों को रोजगार भी दिया है।

बढ़ी कमाई: जितेंद्र खेती से एक सीजन में 50 हजार रुपये से अधिक  कमाई करते हैं। वह साल में दोनों सीजन खेती करते है। टमाटर के साथ गोभी की खेती से उनकी कमाई में इजाफा हुआ है। इस बार उन्होंने 17,500 किग्रा टमाटर का उत्पादन किया। बाजार में 20 से 30 रुपये प्रति किग्रा की दर से टमाटर को बेचा। 

मुश्किलों से पाया पार: पहले गांव में ही एक हजार रुपये से बिस्किट और चॉकलेट की दुकान खोली, लेकिन उनका मन नहीं लगा। इसके बाद खेती करने की ठानी। परिवार में जितेंद्र के अलावा उनके माता-पिता, एक भाई व एक बहन हैं जो उनके काम में सहयोग करते हैं।

खेती से गांव में लोगों को खुशहाल होते देखा। इसलिए खेती को चुना और परिवार वालों ने भी मेरा साथ दिया।
-जितेंद्र मुंडा

अक्षम होने के बाद जब जितेंद्र खेती कर लाख रुपए कमा सकते हैं तो हम लोग क्यों नहीं। उनकी प्रेरणा से हम
लोगों ने भी खेती करने को ठान ली।- मोहन मुंडा, ग्रामीण

इसहौसले से प्रेरणा लेकर हम लोगों ने भी खेती की ओर कदम बढ़ा दिया है। इससे अच्छी आमदनी भी हो रही है।
-पहरू मुंडा, ग्रामीण

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