कानून की नजर में लाउडस्पीकर का विरोध; सुप्रीम कोर्ट कर चुका है साफ- जबरन ऊंची आवाज मौलिक अधिकार का उल्लंघन

मौजूदा वक्‍त में मस्जिदों में लाउडस्पीकर बजाने को लेकर उपजे विवाद ने सियासी रंग अख्तियार कर लिया है लेकिन इसके वैज्ञानिक और कानूनी पहलू भी हैं जिसको नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। जानें ध्वनि प्रदूषण पर क्‍या कहता है कानून...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Sun, 17 Apr 2022 07:29 PM (IST) Updated:Mon, 18 Apr 2022 07:11 AM (IST)
कानून की नजर में लाउडस्पीकर का विरोध;  सुप्रीम कोर्ट कर चुका है साफ- जबरन ऊंची आवाज मौलिक अधिकार का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि जबरदस्ती ऊंची आवाज सुनने को मजबूर करना मौलिक अधिकार का हनन है।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। लाउडस्पीकर बजाने के विवाद में विरोध का पहला कारण अनचाहे शोर यानी ध्वनि प्रदूषण को लेकर है। सुप्रीम कोर्ट ध्वनि प्रदूषण पर रोक के मामले में दिए अपने फैसले में कह चुका है कि जबरदस्ती ऊंची आवाज यानी तेज शोर सुनने को मजबूर करना मौलिक अधिकार का हनन है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले, मौजूदा नियम कानून देखें तो तय सीमा से तेज आवाज में लाउडस्पीकर नहीं बजाया जा सकता।

सबसे अहम फैसला 18 जुलाई 2005 का

ध्वनि प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट का सबसे अहम फैसला 18 जुलाई, 2005 का है जिसमें कोर्ट ने कहा था कि हर व्यक्ति को शांति से रहने का अधिकार है और यह अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। लाउडस्पीकर या तेज आवाज में अपनी बात कहना अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में आता है, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी जीवन के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकती।

किसी को भी शोर करने का अधिकार नहीं

किसी को इतना शोर करने का अधिकार नहीं है जो उसके घर से बाहर जाकर पड़ोसियों और अन्य लोगों के लिए परेशानी पैदा करे। कोर्ट ने कहा था कि शोर करने वाले अक्सर अनुच्छेद 19(1)ए में मिली अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की शरण लेते हैं। लेकिन कोई भी व्यक्ति लाउडस्पीकर चालू कर इस अधिकार का दावा नहीं कर सकता।  

यह मौलिक अधिकार का उल्लंघन

अगर किसी के पास बोलने का अधिकार है तो दूसरे के पास सुनने या सुनने से इन्कार करने का अधिकार है। लाउडस्पीकर से जबरदस्ती शोर सुनने को बाध्य करना दूसरों के शांति और आराम से प्रदूषणमुक्त जीवन जीने के अनुच्छेद-21 में मिले मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। अनुच्छेद 19(1)ए में मिला अधिकार अन्य मौलिक अधिकारों को हतोत्साहित करने के लिए नहीं है।

तय मानकों से ज्‍यादा ना हो शोर  

फैसले में कोर्ट ने आदेश दिया था कि सार्वजनिक स्थल पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज उस क्षेत्र के लिए तय शोर के मानकों से 10 डेसिबल (ए) से ज्यादा नहीं होगी या फिर 75 डेसिबल (ए) से ज्यादा नहीं होगी, इनमें से जो भी कम होगा वही लागू माना जाएगा। जहां भी तय मानकों का उल्लंघन हो, वहां लाउडस्पीकर व उपकरण जब्त करने के बारे में राज्य प्रविधान करे।

तय हैं ध्वनि के मानक

आदेश तब तक लागू रहेंगे जब तक कोर्ट स्वयं इसमें बदलाव न करे या इस बारे में कानून न बन जाए। मालूम हो कि डेसिबल ध्वनि की तीव्रता मापने का मानक है। पर्यावरण संरक्षण कानून, 1986 के तहत ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने और तय मानकों के उल्लंघन पर सजा के प्रविधान दिए गए हैं। इसके तहत ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण नियम, 2000 बने हैं जिनमें ध्वनि के मानक तय हैं। सार्वजनिक स्थल पर लाउडस्पीकर के लिए पुलिस और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से इजाजत लेनी पड़ती है।

क्‍या हो आवाज की अधिकतम सीमा

विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक समारोह में रात 10 से 12 बजे तक लाउडस्पीकर बजाने के लिए विशेष इजाजत की जरूरत होती है जो अधिकतम 15 दिन के लिए ही मिल सकती है और आवाज की अधिकतम सीमा 75 डेसिबल हो सकती है।

पुलिस जब्‍त कर सकती है लाउडस्पीकर

लंबे समय तक सुप्रीम कोर्ट में ध्वनि प्रदूषण के मामले में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से पेश होते रहे वरिष्ठ वकील विजय पंजवानी कहते हैं कि कानून में ध्वनि की सीमा उल्लंघन पर धारा 15 में सजा का प्रविधान है, लेकिन ये प्रभावी ढंग से लागू नही होती। उल्लंघन पर पांच साल तक की कैद और एक लाख रुपये तक जुर्माने की सजा हो सकती है। लगातार उल्लंघन पर 5,000 रुपये रोज जुर्माने का प्रविधान है। ध्वनि प्रदूषण पर पुलिस परिसर में घुसकर लाउडस्पीकर जब्त कर सकती है।

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