हर निर्णय की तरह खुश रहने का भी निर्णय हमारा है: अम्मा श्री माता अमृतानंदमयी देवी

कुछ लोगों को जानने की चाह है कि खुश रहने के पीछे रहस्य क्या है। अगर ख़ुशी के पीछे कोई रहस्य है तो यह कि यह जगत की वस्तुओं में नहीं बल्कि हमारे अपने भीतर है। हम स्वयं आनंद का स्रोत हैं। यदि सुख वस्तुओं में होता तो सबको इनसे ही मिल गया होता! हमें यह सत्य समझना चाहिए कि सुख वस्तुओं में नहीं हम में ही है।

By Jagran NewsEdited By: Babli Kumari Publish:Tue, 19 Mar 2024 10:29 PM (IST) Updated:Tue, 19 Mar 2024 10:29 PM (IST)
हर निर्णय की तरह खुश रहने का भी निर्णय हमारा है: अम्मा श्री माता अमृतानंदमयी देवी
अम्मा श्री माता अमृतानंदमयी देवी (जागरण फोटो)

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बच्चो, हर निर्णय की तरह खुश रहने का भी निर्णय है:"जीवन में कुछ भी हो,मैं सदा खुश रहूंगी/रहूंगा। क्योंकि मैं अकेला नहीं हूं। सारा जगत,ईश्वर की शक्ति मेरे साथ है।" हम हंसें या रोयें,दिन तो बीत ही जायेंगे। इसलिए मुस्कुराने और वर्तमान क्षण में खुश रहने की कोशिश करें। 

कुछ लोगों को जानने की चाह है कि खुश रहने के पीछे रहस्य क्या है। अगर ख़ुशी के पीछे कोई रहस्य है तो यह कि यह जगत की वस्तुओं में नहीं बल्कि हमारे अपने भीतर है। हम स्वयं आनंद का स्रोत हैं। यदि सुख वस्तुओं में होता तो सबको इनसे ही मिल गया होता! लेकिन देखने में आता है कि कुछ लोग सिगरेट प्रेमी हैं तो कुछ लोग उस कमरे में रह भी नहीं सकते जहां कोई धूमपान करता हो। सुख सिगरेट में होता तो सभी सिगरेट प्रेमी होते ना! सुख आइसक्रीम में होता तो सबको हर समय और,और आइसक्रीम की ही चाह होती। लेकिन दो बार के बाद तीसरी,चौथी या पांचवीं आइसक्रीम खाने का आग्रह करो तो यही आइसक्रीम दुःख का स्रोत बन जाती!

सुख वस्तुओं में नहीं, हम में ही है

असल में, हमारा वस्तुओं पर सुख को आरोपित करना वैसा ही है जैसे कुत्ता सोचे कि सूखी हड्डी में उसे खून का स्वाद आ रहा है। जबकि स्वाद आता है उसे अपने ही घायल मसूढ़ों से रिसते खून का। भ्रमित कुत्ता हड्डी को चबाये जाता है। यूं खून बह जाने से वो मर भी सकता है। हमें यह सत्य समझना चाहिए कि सुख वस्तुओं में नहीं, हम में ही है। हम सुख का स्रोत हैं। इस ज्ञान से ही हम अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण पाने में सहायता मिलती है। इस सत्य को आत्मसात करने पर,हम अधिक शांत हो जायेंगे और वो आंतरिक आनंद की अनुभूति में सहायक होगी। 

अपने भीतर की शांति बढ़ाने के लिए कुछ और बातों का अभ्यास कर सकते हैं हम,जैसे: 

1) संतोष का अभ्यास करें। इसका मतलब यह नहीं कि अपनी महत्वाकांक्षा पर लगाम लगाएं या धन कमाना बंद कर दें बल्कि जो अपने पास है,उसमें संतुष्ट रहें। 

2) निस्स्वार्थता का अभ्यास करें। केवल लेते न रहें बल्कि दें भी। जितना चाहो,उतना धन कमाओ लेकिन जितना हो सके,उतना समाज को लौटाना भी सीखो। अपने परिवार से ऊपर उठ कर सकल विश्व को अपना परिवार मानो।   

3) धर्म का पालन करो--सत्य,दया,दूसरों को आदर-सम्मान देने जैसे गुणों भरा जीवन हो। कोई भी कर्म करने से पहले स्वयं से प्रश्न करें."क्या मैं चाहूंगा कि कोई और मेरे साथ ऐसा करे?"

4) फलोन्मुख होने की बजाय कर्म-उन्मुख बनो। जब किसी कर्म के विशेष फल की चिंता होगी तो यह न केवल उस कर्म में तुम्हें अपनी पूरी शक्ति लगाने से रोकेगी बल्कि फल को भी प्रभावित करेगी। जबकि कर्म को पूरी एकाग्रता के साथ करोगे तो तुम उस कर्म में अपनी पूरी शक्ति झोंक दोगे,जिसके चलते तुम्हारा कर्म उत्तम होगा। 

5) अपने तर्क और श्रद्धा-विश्वास को बराबर महत्त्व दो:वस्तुनिष्ठ बाह्य जगत और आत्मनिष्ठ आंतरिक जगत,जीवन का गूढ़तर पक्ष! दिल और दिमाग में संतुलन लाओ। 

6) हर रोज़ थोड़ा सा समय ध्यान में बैठो और ईश-कृपा के लिए,पूर्ण के आशीष और सहायतार्थ प्रार्थना करो,जिसके हम छोटे से अंश हैं। 

बच्चो,यदि हममें ये आदतें आ जाएं हमारा सत्स्वरूप सुख बाहर व्यक्त होने लगेगा। यह हमारे दिलों में और दूसरों के साथ हमारे व्यवहार में जगमगा उठेगा। 

।। ॐ लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु।।

-अम्मा,श्री माता अमृतानंदमयी देवी

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