संप्रग के भूमि कानून में ही दिखी राह

भूमि अधिग्रहण कानून-2013 के 'मंजूरी' वाले प्रावधान उद्योगों की राह में बाधा नहीं बनेंगे। सड़क, रेल, बिजली और सस्ते आवास सहित ढांचागत क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए भूस्वामियों की मंजूरी के बिना भी जमीन का अधिग्रहण किया जा सकेगा। संप्रग के बनाए हुए 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में ही

By Sudhir JhaEdited By: Publish:Mon, 10 Aug 2015 09:45 PM (IST) Updated:Mon, 10 Aug 2015 10:04 PM (IST)
संप्रग के भूमि कानून में ही दिखी राह

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भूमि अधिग्रहण कानून-2013 के 'मंजूरी' वाले प्रावधान उद्योगों की राह में बाधा नहीं बनेंगे। सड़क, रेल, बिजली और सस्ते आवास सहित ढांचागत क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए भूस्वामियों की मंजूरी के बिना भी जमीन का अधिग्रहण किया जा सकेगा। संप्रग के बनाए हुए 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में ही ऐसे प्रावधान हैं, जिसके तहत ऐसी परियोजनाओं के लिए भूस्वामियों की मंजूरी की जरूरत नहीं पड़ेगी।

सूत्रों ने बताया कि सरकार ने 'भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुन:अधिवास में पारदर्शिता और उचित मुआवजा का अधिकार कानून-2013' पर विधि विशेषज्ञों से परामर्श किया है। इस दौरान यह बात सामने आई है। इस कानून की धारा दो की उपधारा एक के तहत सरकार भूस्वामियों की मंजूरी के बिना जमीन का अधिग्रहण कर सकती है और इसका इस्तेमाल उद्योग लगाने के लिए किया जा सकता है। इस धारा के तहत सरकार जिस जमीन का अधिग्रहण करेगी, उस पर निजी स्कूल, अस्पताल और होटल छोड़कर सार्वजनिक उपयोग का अन्य कोई भी निजी उद्योग लग सकता है।

सूत्रों ने कहा कि वास्तविकता यह है कि इस कानून की धारा दो की उपधारा एक के तहत जमीन अधिग्रहण के लिए भूस्वामियों की 'मंजूरी' का जिक्र ही नहीं है। यही वजह है कि सरकार अब यह मानकर चल रही है कि 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में अधिक बदलाव करने की जरूरत नहीं है।

सूत्रों ने कहा कि 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून की धारा दो की उपधारा दो के तहत पीपीपी और निजी परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण करने के लिए 'मंजूरी' का प्रावधान किया है, लेकिन इस धारा मंे विसंगति है। इसकी वजह से धारा दो की उपधारा एक के तहत अधिगृहीत की गई भूमि पर भूस्वामियों की मंजूरी लेने वाला उपबंध लागू नहीं हो सकता।

सूत्रों के अनुसार, 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून की धारा दो की उपधारा दो में एक जगह अंग्रेजी शब्द 'आल्सो' का इस्तेमाल किया गया है, जो पूरी तरह अनुपयुक्त और भ्रामक है। इस शब्द की वजह से ही धारा दो की उपधारा एक का गलत अर्थ निकल रहा है।

सरकार ने अध्यादेश जारी कर 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में जो नई धारा 10ए जोड़ी है उसे भी हटाकर राज्यों पर छोड़ा जा सकता है। राज्य अपनी जरूरत के अनुसार इस संबंध में प्रावधान कर सकते हैं। इसी तरह सामाजिक प्रभाव आकलन की प्रक्रिया पूरी करने की अवधि अधिकतम 52 महीने को भी राज्य सरकारें अपनी-अपनी जरूरत के अनुसार तय कर सकती हैं।

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