नि:स्वार्थ जन-सेवा के लिए आज भी जाने जाते हैं ललित नरायण मिश्र

राष्ट्र एवं बिहार की राजनीति के पुरोधा ललित नरायण मिश्र राजनीति में एक प्रखर नेता के रूप में जाने जाते थे। वह आज भी एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी पुरुष, जो अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता, धर्मनिरपेक्षता , प्रशासनिक दक्षता, राष्ट्र-भक्ति और नि:स्वार्थ जन-सेवा के लिए जन-जन में चर्चित हैं।

By Abhishake PandeyEdited By: Publish:Mon, 10 Nov 2014 12:05 PM (IST) Updated:Mon, 10 Nov 2014 12:51 PM (IST)
नि:स्वार्थ जन-सेवा के लिए आज भी जाने जाते हैं ललित नरायण मिश्र

नई दिल्ली। राष्ट्र एवं बिहार की राजनीति के पुरोधा ललित नरायण मिश्र राजनीति में एक प्रखर नेता के रूप में जाने जाते थे। वह आज भी एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी पुरुष, जो अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता, धर्मनिरपेक्षता , प्रशासनिक दक्षता, राष्ट्र-भक्ति और नि:स्वार्थ जन-सेवा के लिए जन-जन में चर्चित हैं।

ललित नरायण मिश्र का जन्म जन्म (दो फरवरी 1923) को सहरसा जिले के बसनपट़टी गांव में हुआ था। राजनीति में गहरी रूची रखने वाले मिश्र को श्रीकृष्ण सिन्हा राजनीति का ककहरा सिखाए। मिश्र पिछड़े बिहार को राष्ट्रीय मुख्यधारा के समकक्ष लाने के लिए सदा कटिबद्ध रहे। उन्होंने अपनी कर्मभूमि मिथिलांचल की राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए पूरी तन्मयता से प्रयास किया। विदेश व्यापार मंत्री के रूप में उन्होंने बाढ़ नियंत्रण एवं कोशी योजना में पश्चिमी नहर के निर्माण के लिए नेपाल-भारत समझौता कराया। उन्होंने मिथिला चित्रकला को देश-विदेश में प्रचारित कर उसकी अलग पहचान बनाई।

मिथिलांचल के विकास की कड़ी में ही ललित बाबू ने लखनऊ से असम तक लेटरल रोड की मंजूरी कराई थी, जो मुजफ्फरपुर और दरभंगा होते हुए फारबिसगंज तक की दूरी के लिए स्वीकृत हुई थी। रेल मंत्री के रूप में मिथिलांचल के पिछड़े क्षेत्रों में झंझारपुर-लौकहा रेललाइन, भपटियाही से फारबिसगंज रेललाइन जैसी 26 रेल योजनाओं के सर्वेक्षण की स्वीकृति उनकी कार्य क्षमता, दूरदर्शिता तथा विकासशीलता के ज्वलंत उदाहरण है।

ललित बाबू को अपनी मातृभाषा मैथिली से अगाध प्रेम था। मैथिली की साहित्यिक संपन्नता और विशिष्टता को देखते हुए 1962-64 में उनके पहल पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उसे 'साहित्य अकादमी' में भारतीय भाषाओं की सूची में सम्मिलित किया। अब मैथिली संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में चयनित विषयों की सूची में सम्मिलित है।

मिश्र कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद पहली दूसरी और पांचवी लोकसभा के सदस्य रहे। साथ हीं दो बार राज्य सभा सांसद रहे। उन्होंने 1964 से 1972 ई तक 1957 से 1960 तक योजना एवं श्रम मंत्री के रूप में सेवायें दी। तत्कालिन सरकार में वह उप गृह मंत्री व उप वित्त मंत्री भी रहे। उन्हें पहली बार विदेशी व्यापार मंत्रालय में सलाहकार नियुक्त किया था। रेलमंत्री के रूप में योगदान दे चूके मिश्र ने पटना विश्वविद्यालय से 1948 में एमए अर्थशास्त्र की पढ़ाई पूरी की। उनके परिवार में पत्नी स्व कामेश्वरी देवी, दो लड़कियां चार लड़के, एक पुत्र विजय मिश्र जो फिलहाल राजनीति में है।वहीं उनके छोटे भाई जगन्नाथ मिश्र बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। हाल ही में हुए विधानसभा के उपचुनाव में विजय मिश्र के पुत्र ऋषि मिश्र भी जदयू से दरभंगा के जाले विधानसभा से चुनाव जीते हैं।

2 जनवरी,1975 को बिहार के समस्तीपुर रेलवे स्टेशन के पास आयोजित समारोह में हुए बम धमाके में तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र गंभीर रूप से घायल हो गए थे और 3 जनवरी 1975 को उनकी मौत हो गई थी। इस मामले में 200 से अधिक गवाह थे।

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