ऐसे पूरा हुआ ऑपरेशन 'एक्स'

देश के सफलतम खुफिया अभियानों में अब ऑपरेशन 'एक्स' का नाम भी शुमार हो गया है। लेकिन, इसे मुकाम तक पहुंचाना आसान नहीं था। किसी बॉलीवुड फिल्म की तर्ज पर इसे अमलीजामा पहनाने में हर कदम फूंक-फूंक कर उठाया गया।

By Edited By: Publish:Wed, 21 Nov 2012 06:18 PM (IST) Updated:Wed, 21 Nov 2012 11:20 PM (IST)
ऐसे पूरा हुआ ऑपरेशन 'एक्स'

मुंबई [भूपेन पटेल/अकेला]। देश के सफलतम खुफिया अभियानों में अब ऑपरेशन 'एक्स' का नाम भी शुमार हो गया है। लेकिन, इसे मुकाम तक पहुंचाना आसान नहीं था। किसी बॉलीवुड फिल्म की तर्ज पर इसे अमलीजामा पहनाने में हर कदम फूंक-फूंक कर उठाया गया।

सत्रह जांबाज अधिकारियों ने 31 घंटों में इस अभियान को पूरा किया। इसके लिए छह वाहन इस्तेमाल हुए। मुंबई पुलिस के सूत्रों ने बताया कि सैकड़ों निर्दोषों के हत्यारे अजमल कसाब से जुड़ा होने के कारण यह बेहद संवेदनशील अभियान था। मुंबई पुलिस आयुक्त डॉ सत्यपाल सिंह ने अभियान को पूरा करने के लिए टीम में बेहद विश्वसनीय अधिकारियों को चुना था। इनमें ज्यादातर वही थे जिनकी कोशिशों से कसाब के लिए फांसी का फंदा तैयार हुआ था।

अभियान की शुरुआत

सोमवार रात सत्यपाल सिंह ने पुलिस महानिदेशक [कानून और व्यवस्था] देवेन भारती, 26/11 हमलों की चार्जशीट तैयार करने वाले इंस्पेक्टर रमेश महाले और पुलिस उपायुक्त प्रवीण पटेल को फोन पर ऑपरेशन एक्स की जानकारी दी। भारती को अभियान की निगरानी के निर्देश दिए गए। महाले और पाटिल को उस टीम के साथ चलने को कहा गया जिसे कसाब को पुणे ही यरवदा जेल तक पहुंचाना था।

आर्थर रोड जेल पहुंचा दल

करीब 17 पुलिसकर्मियों और कुछ जेल अधिकारियों की एक टीम छह वाहनों में मंगलवार को दोपहर 12 बजे आर्थर रोड जेल पहुंची। करीब साढ़े बाहर बजे टीम कसाब को लेकर यरवदा जेल के लिए रवाना हुई। अभियान की शुरुआत होते ही भारती समेत सभी अधिकारियों ने अपने मोबाइल फोन स्विच ऑफ कर दिए, ताकि कोई उनसे संपर्क न कर सके। कसाब को पहले विमान से पुणे लाने की योजना थी। लेकिन, बाद में इसे स्थगित कर दिया गया। टीम ने माना कि उसे सड़क मार्ग से ही ले जाना सुरक्षित रहेगा।

बुर्के में था कसाब

छह वाहनों के काफिले में कसाब को तीसरी गाड़ी में बुर्का पहनाकर बैठाया गया था। पूरे सफर के दौरान वह बहुत शात था। उसकी गाड़ी के आगे और पीछे दो-दो गाड़ियां चल रही थीं, जिसमें अत्याधुनिक हथियारों से लैस फोर्स वन कमांडो और अन्य अधिकारियों की टीम चल रही थी। अंतिम गाड़ी में पाटिल चल रहे थे। गाड़ियों का यह काफिला यरवदा जेल तक बिना रुके चला।

अंतिम पड़ाव

मंगलवार को सुबह करीब 9 बजे जेल अधिकारियों ने कसाब को बता दिया था कि उसे फांसी दी जाएगी। वह शांत तो था लेकिन रात भर सो नहीं सका और खाना-पीना छोड़ दिया। बुधवार को फांसी वाले दिन उसने सफेद कपड़े पहने और नमाज पढ़ी। मरने से पहले उसने केवल यही इच्छा जताई, 'इस बारे में मेरी अम्मी तक खबर पहुंचा दो।' सुबह करीब साढ़े सात बजे वह फांसी के फंदे से झूल गया। करीब 7.40 बजे भारती ने महाराष्ट्र के गृह मंत्री आरआर पाटिल को एसएमएस भेजा-'ऑपरेशन एक्स सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।' [मिड-डे]

आजादी के बाद देश में पहली बार किसी विदेशी को फांसी

नई दिल्ली। अजमल कसाब पहला ऐसा विदेशी है जिसे देश को आजादी मिलने के बाद भारत में फंासी दी गई है। वैसे, देश में अंतिम बार धनंजय चटर्जी को 2004 में फांसी पर लटकाया गया था। धनंजय को दुष्कर्म और हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी। धनंजय से भी पहले 1995 में आटो शंकर नामक शख्स को फांसी दी गई थी।

भारत में अब तक फांसी पर लटकाने जाने वालों की संख्या को लेकर विवाद है। सरकारी आंकड़ों में यह तादाद 52 बताई जाती है, जबकि गैर सरकारी आंकड़ों में संख्या काफी अधिक है। सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी की मानें तो आजादी के बाद से भारत में केवल 55 लोगों को फांसी दी गई है, लेकिन इनमें से कोई भी विदेशी नागरिक नहीं था। यह पूछे जाने पर कि क्या भारत में विदेशियों को फांसी दिए जाने को लेकर कोई विशेष कानून है, उन्होंने कहा कि नहीं।

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