कर्नाटक HC के न्यायाधीश ने दुष्कर्म पीड़िता पर टिप्पणी हटाई, आरोपित को अग्रिम जमानत पर की थी टिप्पणी

कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति कृष्ण दीक्षित ने अपने फैसले में एक दुष्कर्म पीडि़ता के खिलाफ की गई विवादास्पद टिप्पणी को हटा दिया है।

By Shashank PandeyEdited By: Publish:Sun, 05 Jul 2020 03:05 PM (IST) Updated:Sun, 05 Jul 2020 03:05 PM (IST)
कर्नाटक HC के न्यायाधीश ने दुष्कर्म पीड़िता पर टिप्पणी हटाई, आरोपित को अग्रिम जमानत पर की थी टिप्पणी
कर्नाटक HC के न्यायाधीश ने दुष्कर्म पीड़िता पर टिप्पणी हटाई, आरोपित को अग्रिम जमानत पर की थी टिप्पणी

बेंगलुरु, आइएएनएस। कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति कृष्ण दीक्षित ने अपने फैसले में एक दुष्कर्म पीडि़ता के खिलाफ की गई विवादास्पद टिप्पणी को हटा दिया है। विधि विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि राज्य सरकार के आवेदन पर न्यायाधीश ने टिप्पणी हटा दी। 22 जून को आरोपित को अग्रिम जमानत देते हुए उन्होंने दुष्कर्म पीड़िता के खिलाफ विवादित टिप्पणी थी। इस पर देशभर के वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा आपत्ति जताई गई थी। संशोधित आदेश में जज ने कहा कि वे फैसले की पृष्ठ संख्या चार पर पाराग्राफ संख्या तीन (सी) की अंतिम चार पंक्तियों को समाप्त करना उचित समझते हैं, जैसा कि राज्य सरकार के आवेदन में मांग की गई है।

न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणियों से मामले की जांच और इसके संभावित ट्रायल पर प्रभाव नहीं पड़ेगा। जस्टिस दीक्षित ने कहा, प्रतिवादी (राज्य सरकार) के आवेदन को ध्यान में रखते हुए.. और यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता-अभियुक्तों को कोई आपत्ति नहीं है, मैं उचित मानता हूं याचिकाकर्ता नागेश्वरप्पा की मांग के अनुसार फैसले की अंतिम चार पंक्तियों को हटा दिया जाए। विवादास्पद टिप्पणी के खिलाफ वकीलों और नागरिक समूहों ने चिंता व्यक्त की थी। अधिवक्ता अपर्णा भट्ट ने पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और जस्टिस आर भानुमति, इंदु मल्होत्रा और इंदिरा बनर्जी को पत्र लिखा था। उन्होंने सभी अदालतों को सलाह देने की मांग की थी कि यौन अपराध के पीड़ितों के आचरण पर टिप्पणी करने से परहेज किया जाए।

इससे पहले सुनवाई में अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध दुष्कर्म, धोखाधड़ी और धमकी देने के आरोप वाकई गंभीर हैं। लेकिन, अकेली गंभीरता किसी नागरिक को स्वतंत्रता से वंचित करने का आधार नहीं हो सकती है, जब पुलिस की ओर से कोई प्रथमदृष्टया मामला ही नहीं है। अदालत ने शिकायतकर्ता के उस कथित पत्र का भी संज्ञान लिया कि यदि समझौता हो जाता है, तो वह अपनी शिकायत वापस ले लेगी। इसके बाद अदालत ने कुछ शर्तो के साथ आरोपित को जमानत दे दी। 

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