...अगर अब भी नहीं चेते तो दिल्ली में लाखों को लील लेगा जलजला

दिल्ली से सटे हरियाणा के रोहतक में आज सुबह भूकंप ने दस्तक दी। भूकंप से किसी तरह के जानमाल का नुकसान नहीं हुआ लेकिन ये एक बड़े खतरे का संकेत है।

By Lalit RaiEdited By: Publish:Fri, 02 Jun 2017 11:50 AM (IST) Updated:Fri, 02 Jun 2017 09:50 PM (IST)
...अगर अब भी नहीं चेते तो दिल्ली में लाखों को लील लेगा जलजला
...अगर अब भी नहीं चेते तो दिल्ली में लाखों को लील लेगा जलजला

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । दिल्ली और एनसीआर में अंधेरा धीरे धीरे छंट रहा था। लेकिन जमीन के अंदर जबरदस्त हलचल एक बड़े खतरे की तरफ इशारा कर रही थी। दिल्ली से सटे रोहतक में जमीन में सिर्फ 22 किमी नीचे प्लेटों के कंपन ने इमारतों को हिला दिया। ये शुक्र था कि किसी तरह के जानमाल का नुकसान नहीं हुआ लेकिन ये एक आहट है, एक सवाल है कि अगर अब भी नहीं चेते तो लाखों लोगों का काल के गाल में समा जाना निश्चित है।


अल सुबह साढ़े चार का वक्त था। कुछ लोग जॉगिंग पर निकले थे तो बहुत सारे लोग नींद की आगोश में थे। रोहतक में जमीन के अंदर से जबरदस्त तनाव था, और वो तनाव जब ऊर्जा के तौर पर पृथ्वी की उपरी हिस्से में पहंचा तो इमारतें और इमारतों के अंदर सामान हिलने लगे। लोगों को अहसास हो चुका था कि भुकंप ने दस्तक दी है। रिक्टर स्केल पर पांच की तीव्रता लोगों को दहशत में लाने के लिए पर्याप्त थी। लेकिन एक अच्छी खबर ये रही कि दिल्ली और एनसीआर के किसी भी इलाके से किसी तरह के नुकसान की खबर नहीं आई। सुबह करीब साढ़े आठ बजे एक बार रिक्टर स्केल पर 3.2 तीव्रता के भूकंप ने दस्तक दी जिसके बाद लोग एक बार फिर दहशत में आ गए।


भूकंप के कारण 

प्राचीन काल से ही भूकंप मानव जाति के लिए एक समस्या बनकर दस्तक देता रहा है। प्राचीन काल में इसे दैवी प्रकोप समझा जाता रहा है। अरस्तू (384 ई. पू.) का विचार था कि जमीन के अंदर की वायु जब बाहर निकलने का प्रयास करती है, तब भूकंप आता है। 16वीं और 17वीं शताब्दी में लोगों का अनुमान था कि पृथ्वी के अंदर रासायनिक कारणों से तथा गैसों के विस्फोटन से भूकंप होता है। 1874 ई में वैज्ञानिक एडवर्ड जुस ने अपनी खोजों के आधार पर कहा था कि  भूकंप भ्रंश की सीध में भूपर्पटी के खंडन या फिसलने से होता है । ऐसे भूकंपों को  टेक्टोनिक भूकंप (Tectonic Earthquake) कहते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं।

सामान्य उद्गम भूकंप- उद्गम केंद्र की गहराई 48 किमी तक हो।

मध्यम उद्भूगम  उद्गम केंद्र की गहराई 48 से 240 किमी हो।

गहरा उद्गम (Deep Focus), जबकि उद्गम केंद्र की गहराई 240 से 1200 किमी तक हो।

इनके अलावा दो प्रकार के भूकंप और होते हैं ज्वालामुखीय (Volcanic) और निपात (Collapse)।

 एक खतरा पांच जोन

- भूकंप की आशंका के आधार पर देश को पांच जोन में बांटा गया है।

- उत्तर-पूर्व के सभी राज्य, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से जोन-5 में आते हैं। यह हिस्सा सबसे ज्यादा संवेदनशील कहा जा सकता है।

- उत्तराखंड के कम ऊंचाई वाले हिस्सों से लेकर उत्तर प्रदेश के ज़्यादातर हिस्से और दिल्ली जोन-4 में आते हैं। इन्हें भी कम संवेदनशील नहीं कहा जा सकता है।

- लेकिन यह एक मोटा वर्गीकरण है। दिल्ली में कुछ इलाके हैं, जो जोन-5 की तरह खतरे वाले हो सकते हैं। इस प्रकार दक्षिण राज्यों में कई स्थान ऐसे हो सकते हैं जो जोन-4 या जोन-5 जैसे खतरे वाले हो सकते हैं।

-दूसरे जोन-5 में भी कुछ इला़के हो सकते हैं, जहां भूकंप का खतरा बहुत कम हो और वे जोन-2 की तरह कम खतरे वाले हों।

- मध्य भारत अपेक्षाकृत कम खतरे वाले हिस्से जोन-3 में आता है,

- जबकि दक्षिण भारत के ज़्यादातर हिस्से सीमित खतरे वाले जोन-2 में आते हैं।

- इस मामले में बिहार ही एक ऐसा राज्य है, जहां लगभग सभी भूकंपीय जोन हैं। इसकी जांच के लिए भूकंपीय माइक्रोजोनेशन की जरूरत होती है। माइक्रोजोनेशन वह प्रक्रिया है जिसमें भवनों के पास की मिट्टी को लेकर परीक्षण किया जाता है और इसका पता लगाया जाता है कि वहां भूकंप का खतरा कितना है।

रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता और प्रभाव

0 से 1.9 - सिर्फ सीज्मोग्राफ से ही पता चलता है।

2 से 2.9 -  हल्का कंपन।

3 से 3.9- कोई ट्रक आपके नजदीक से गुजर जाए, ऐसा असर।

4 से 4.9 - खिड़कियां टूट सकती हैं। दीवारों पर टंगी फ्रेम गिर सकती हैं।

5 से 5.9-  फर्नीचर हिल सकता है।

6 से 6.9 - इमारतों की नींव दरक सकती है। ऊपरी मंजिलों को नुकसान हो सकता है।

7 से 7.9- इमारतें गिर जाती हैं। जमीन के अंदर पाइप फट जाते हैं।

8 से 8.9 - इमारतों सहित बड़े पुल भी गिर जाते हैं।

9 और उससे ज्यादा पूरी तबाही। कोई मैदान में खड़ा हो तो उसे धरती लहराते हुए दिखाई देगी। यदि समुद्र नजदीक हो तो सुनामी आने की पूरी संभावना।

भूकंप से कैसे करें बचाव

भूकंप आने के पहले

भूकंप आने से पहले तैयारी कर लेने से आपके घर और कारोबार को होने वाली क्षति कम करने और आपको जीवित बचने में मदद मिलती है।एक घरेलू आपातकालीन योजना तैयार करें। अपने घर में अपने आपातकालीन बचाव वस्‍तुएं व्यवस्थित करें और इनका सही रखरखाव बनाए रखें, साथ ही एक साथ ले जाने योग्‍य गेटअवे किट (बचाव किट) भी तैयार करें। गिरने, ढंकने और अपने आपको थामने का अभ्यास करें। अपने घर में, स्‍कूल या कार्यस्थल में सुरक्षित जगहों को पहचानें।सुरक्षा और धनराशि के संदर्भ में अपनी घरेलू बीमा पॉलिसी की जांच करें।यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपका घर अपनी नीवों पर सुरक्षित है, किसी योग्य विशेषज्ञ से सलाह लें।भारी फर्नीचर वस्तुओं को फर्श या दीवार से मजबूती से जोड़ कर रखें।

भूकंप आने के दौरान

यदि आप किसी भवन के अंदर हैं तो कुछ कदम से अधिक न चलें, खुद को गिराएं, ढंकें और थामे रखें। कम्‍पन थम जाने तक अंदर ही रहें और बाहर तभी निकलें जब आप यह निश्चित कर लें कि अब ऐसा करना सुरक्षित है।यदि आप किसी एलिवेटर पर हैं  तो खुद को गिराएं, ढंकें और थामे रखें। कंपन थमने पर नजदीकी फर्श पर जाने की कोशिश करें यदि आप सुरक्षित रूप से ऐसा कर सकें। यदि आप बाहर हैं, तो इमारतों, पेड़ों, स्ट्रीट लाइट और बिजली की लाइन के पास न जाएं। यदि आप किसी बीच पर तट के निकट हैं तो खुद को गिराएं, ढंकें और थामे रखें और यदि सुनामी की संभावना हो तो तत्काल ऊंची जमीन की ओर जाएं। यदि आप वाहन चला रहे हैं, तो किसी खुली जगह तक जाएं, रूकें और वहीं ठहरें और अपनी सीटबेल्‍ट को तब तक कसे रखें जब तक कि कंपन बंद न हो जाए। एक बार कंपन थमने के बाद आगे बढ़ें और उन पुलों या ढलानों पर न जाएं जो क्षतिग्रस्त हो चुके हों । यदि आप किसी पर्वतीय क्षेत्र में या अस्थिर ढलानों या खड़ी चट्टानों पर हैं, तो मलबा गिरने या भूस्खलन होने के प्रति सचेत रहें।

भूकंप  आने के बाद

अपने स्थानीय रेडियो केन्द्रों का प्रसारण सुनें जहां आपातस्थिति प्रबंधन कर्मचारी, आपके समुदाय और परिस्थिति के लिए सबसे जरूरी सलाह देंगे। भूकंप के बाद के झटके महसूस करने के लिए तैयार रहें।यदि चोट लगी हो तो अपनी जांच करें और आवश्यक होने पर प्राथमिक चिकित्सा प्राप्त करें। अगर संभव हो तो  दूसरों की मदद करें।  यदि आपको गैस की गंध आती है या आप कोई धमाके या सरसराहट की आवाज़ सुनते हैं, तो एक खिड़की खोलें, हर एक को जल्‍दी से बाहर निकालें और गैस बंद कर दें।


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