राज्यसभा से इस्तीफा साबित हो सकता है माया का मास्टरस्ट्रोक, अगर...

मायावती द्वारा राज्यसभा से इस्तीफा दलित वोट बैंक को हासिल करने के लिए मास्टरस्ट्रोक भी साबित हो सकता है, लेकिन इसके लिए उन्हें खासी मेहनत भी करनी होगी।

By Digpal SinghEdited By: Publish:Tue, 18 Jul 2017 02:19 PM (IST) Updated:Wed, 19 Jul 2017 11:11 AM (IST)
राज्यसभा से इस्तीफा साबित हो सकता है माया का मास्टरस्ट्रोक, अगर...
राज्यसभा से इस्तीफा साबित हो सकता है माया का मास्टरस्ट्रोक, अगर...

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। 'लानत है। अगर मैं अपने कमजोर वर्ग की बात सदन में नहीं रख सकती तो मुझे सदन में रहने का अधिकार नहीं है।' यह बात बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को राज्यसभा में कही। बता दें कि संसद का मानसून सत्र सोमवार को ही शुरू हुआ था और आज संसद का पहला कार्यदिवस है। मायावती ने कहा- उन्हें सदन में बोलने नहीं दिया जा रहा है, इसलिए राज्यसभा में बने रहने का सवाल नहीं है और इसके बाद शाम होते होते सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।  

Laanat hai. Agar mai apne weaker sections ki baat sadan mein nahi rakh skti to mujhe house mein rehne ka adhikaar nahi hai: Mayawati pic.twitter.com/HrPFwBBYQc

— ANI (@ANI_news) July 18, 2017

मंगलवार को मायावती ने सदन की कार्यवाही शुरू होते ही सहारनपुर व उत्तर प्रदेश में दलितों के खिलाफ हिंसा का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, सहारनपुर में साजिश के तहत हिंसा हुई। उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार हो रहा है। मायावती ने इस मुद्दे पर राज्‍यसभा से वॉकआउट किया और कांग्रेस ने इस काम में उनका साथ दिया। उधर भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने मायावती के इस कृत्य को साल की शुरुआत में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में मिली हार की हताशा करार दिया। उन्होंने तो यहां तक कहा कि इस्तीफे की धमकी देकर उन्होंने चेयरमैन का अपमान किया और उन्हें इसके लिए माफी मांगनी चाहिए।

This is the reason I have decided to quit from Rajya Sabha, I am not being heard, not allowed to speak: Mayawati,BSP Chief pic.twitter.com/rbTPSVQJb1

— ANI (@ANI_news) July 18, 2017

मायावती के लिए आगे का रास्ता क्या?

अब इस्तीफा देने के बाद बड़ा सवाल ये है कि उनके लिए आगे का रास्ता क्या है? बता दें कि राज्यसभा में उनका कार्यकाल 2 अप्रैल 2018 तक है। यूपी में उनकी पार्टी के पास सिर्फ 19 सीटें हैं, इसलिए वह 2018 में भी दोबारा चुनकर राज्यसभा नहीं पहुंच सकतीं। वॉकआउट में मायावती का साथ देने वाली कांग्रेस ने अगर उन्हें समर्थन दिया तभी वह अगले साल उच्च सदन में पहुंच पाएंगी। लोकसभा में पार्टी का सूपड़ा साफ पहले ही हो चुका है। ऐसे में इस्तीफे के बाद उनके पास उत्तर प्रदेश में पार्टी के पुराने जनाधार को एक बार फिर से अपने पक्ष में लाने का ही काम रह जाएगा। ऐसे में वह 2019 लोकसभा और 2022 विधानसभा चुनाव के लिए अच्छे से तैयारी कर सकती हैं।

जानकार की राय

मायावती की राज्यसभा से इस्तीफे की धमकी के मामले में Jagran.com ने वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह से खास बात की। प्रदीप सिंह का कहना था कि मायावती इस्तीफा दे देंगी। उन्होंने कहा, 'मायावती से जो दलित वोट बैंक खिसक गया है उसे वापस पाने के लिए मायावती यह कर रही हैं।' मायावती सहारनपुर का नाम लेकर राज्यसभा से इस्तीफा देने की बात कही। लेकिन प्रदीप सिंह सवाल उठाते हैं कि इस घटना को दो महीने गुजर चुके हैं, मायावती ने दलित समाज के लिए क्या किया? क्या उन्होंने कोई आंदोलन खड़ा करने की कोशिश की? क्या उन्होंने इस मुद्दे पर दलितों के साथ बात की? नहीं! यह पूरी तरह से उनका राजनीतिक स्टंट है।

अप्रैल 2018 में यूपी के ये नेता होंगे राज्यसभा से रिटायर

नरेश अग्रवाल (सपा) 

मुंजाद अली (बसपा) 

जया बच्चन (सपा) 

विनय कटियार (भाजपा) 

मायावती (बसपा)

किरणमय नंदा (सपा)

चौधरी मुन्ववार सलीम (सपा)

आलोक तिवारी (सपा)

प्रमोद तिवारी (कांग्रेस)

दर्शन सिंह यादव (सपा)


दलित वोटों के लिए मायावती का मास्टर स्ट्रोक 

मायावती का आरोप है कि यूपी में दलितों के खिलाफ अत्याचार हो रहा है। अगर वह इस मुद्दे को लेकर इस्तीफा दे देती हैं तो यह उनका मास्टर स्ट्रोक भी साबित हो सकता है। क्योंकि उनका कार्यकाल पूरा होने में अब करीब 9 महीने बचे हैं। अगर वह अपना कार्यकाल पूरा भी करती हैं तो उनके पास राज्य में इतने भी विधायक नहीं हैं कि वह दोबारा चुनकर संसद के उच्च सदन में पहुंच सकें। ऐसे में दलितों के खिलाफ अत्याचार के मुद्दे पर कुर्बानी देकर वह पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उनसे छिटके दलित वोटों को एक बार फिर से अपनी झोली में लाने की कोशिश कर सकती हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा एक भी सीट नहीं जीत पायी थी, जबकि विधानसभा चुनाव में उसकी झोली में सिर्फ 19 सीटें आयीं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिहाज से मायावती अगर दलित वोटों को एकजुट करने के लिए इस्तीफे की अपनी बात पर कायम रहती हैं तो यह उनका मास्टर स्ट्रोक भी साबित हो सकता है। वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह का कहना है कि यह मास्टरस्ट्रोक भी तभी साबित हो सकता है, जब वह दलित समाज को यह समझाने में कामयाब रहीं कि उन्होंने उनके लिए कुर्बानी दी।

मायावती की राजनीति

मायावती की राजनीति के केंद्र में हमेशा दलित ही रहे हैं। दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों को लंबे वक्त तक मायावती के रूप में अपना एक प्रतिनिधि दिखता रहा। लेकिन जिस तरह से मायावती ने उत्तर प्रदेश की सत्ता में रहते हुए खुद के, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर, कांशीराम और हाथी के स्टैच्यू राज्यभर में लगवाए उससे वह आम जनता से कटती चली गईं। इसके अलावा उनके ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने भी मायावती के कद को कम किया। जिस दलित की राजनीति मायावती करती रही हैं, वह कहीं पीछे छूट गया और मायावती के लिए दलित की नहीं दौलत की देवी जैसे शब्द इस्तेमाल होने लगे। कभी दलितों के वोट हासिल करने के लिए मायावती और उनके राजनीतिक गुरु कांशीराम ने 'तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार' जैसे नारे दिए तो बाद में मायावती ने सर्व समाज को साथ जोड़ने के लिए 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु-महेश है' और 'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' जैसे नारे भी बुलंद किए। लेकिन मायावती से धीरे-धीरे दलित जनाधार खिसकता चला गया और अगड़ी जातियां मायावती के पुराने तेवरों के चलते कभी उन्हें अपना नहीं पायीं।

मायावती और बसपा के दिन लद गए

प्रदीप सिंह का मानना है कि मायावती का राजनीति करियर अब ढलान पर है। Jagran.Com से बात करते हुए उन्होंने कहा कि 2007 में मायावती और बसपा अपने चरम पर थे, लेकिन इसके बाद उनका ढलान शुरू हो गया। वह कहते हैं कि अगर सत्ता में रहते हुए मायावती ने 2007-2012 के बीच दलितों और यूपी के लिए अच्छा काम किया होता तो जनता उनके साथ होती। 2012 में सत्ता से बाहर होने के बाद 2014 में जनता ने उन्हें बुरी तरह से हराया और पार्टी लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीती। 2017 में भी उनका वोटबैंक लौटकर नहीं आया और जिस तरह की राजनीति वह करती हैं, उसके लौटने की उम्मीद भी नहीं है।

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