विकास के पीछे विनाश की आहट, भारत में मौत के पीछे ये है पांचवां बड़ा कारण

भारत में प्रदूषण के नाम पर न जनता वोट देती है न ही सियासी दल इस मुद्दे पर लोगों से समर्थन मांगते हैं।

By Lalit RaiEdited By: Publish:Wed, 29 Nov 2017 10:26 AM (IST) Updated:Wed, 29 Nov 2017 10:32 AM (IST)
विकास के पीछे विनाश की आहट, भारत में मौत के पीछे ये है पांचवां बड़ा कारण
विकास के पीछे विनाश की आहट, भारत में मौत के पीछे ये है पांचवां बड़ा कारण

नई दिल्ली [शशांक द्विवेदी] । तकरीबन 10 दिनों तक जानलेवा धुंध और वायु प्रदूषण की चपेट में रहने के बाद दिल्ली में फिलहाल आसमान साफ है। वायु प्रदूषण का स्तर भी घटा है, लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण को लेकर सरकारें अभी चेती नहीं हैं और भविष्य में फिर ऐसी नौबत न आए इस दिशा में कुछ होता हुआ नहीं दिख रहा है। स्थिति सामान्य होते ही हम भूल गए कि पिछले दिनों वायु प्रदूषण केचलते लोग ठीक से सांस तक नहीं ले पा रहे थे। शायद तभी वायु प्रदूषण कम करने के लिए सरकारी स्तर पर कोई ठोस नीति या कार्ययोजना नहीं बन पाई।
विकास के पीछे विनाश की आहट
कथित विकास के पीछे विनाश की आहट सुनाई पड़ने लगी है। असल में प्रदूषण के नाम पर न जनता वोट देती है न राजनीतिक दल इसे कम करने के नाम पर वोट मांगते हैं। अधिकांश राजनीतिक दलों के एजेंडे में पर्यावरण संबंधी मुद्दा है ही नहीं, न ही उनके चुनावी घोषणापत्र में न ही इसका जिक्र होता है। राजनीतिक पार्टियां विकास की बातें करती हैं, लेकिन ऐसे विकास का क्या फायदा जो लगातार विनाश को आमंत्रित कर रहा हो। वास्तव में पर्यावरण का मुद्दा राजनीतिक पार्टियों के साथ आम आदमी की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर होना चाहिए। अब भी अगर हमने इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया तो आने वाला समय भयावह होगा। फिलहाल देश के सभी बड़े शहरों में वायु प्रदूषण अपने निर्धारित मानकों से बहुत ऊपर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली का वातावरण बेहद जहरीला हो गया है। इसकी गिनती दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहर के रूप में होने लगी है। यदि वायु प्रदूषण रोकने के लिए शीघ्र कदम नहीं उठाए गए तो इसके गंभीर परिणाम सामने आएंगे। सेंटर कंट्रोल रूम फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट के अनुसार दिल्ली की हवा में पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) 2.5 और पीएम10 की सघनता क्रमश: 478 एवं 713 तक पहुंच गई थी।

डराते हैं ये आंकड़े
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने वायु गुणवत्ता सूचकांक 460 दर्ज किया जो काफी खराब स्तर पर है। सबसे ज्यादा मौजूदगी पीएम 2.5 और कार्बन मोनोऑक्साइड की थी। लोगों ने अपनी आंखों में जलन और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत की थी जिससे स्थिति की गंभीरता का पता चला। केंद्र संचालित सफर यानी सिस्टम फॉर एयर क्वाविटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च की पीएम 2.5 की रीडिंग भी 400 से ज्यादा थी। यह भी गंभीर श्रेणी में आता है। कुछ वर्षो पहले तक बीजिंग की गिनती दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में होती थी, लेकिन चीन की सरकार ने इस समस्या को दूर करने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए। इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। पर्यावरण विज्ञान से जुड़ी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरमेंट ने पिछले दिनों राजधानी के विभिन्न स्थलों व सार्वजनिक परिवहन के अलग-अलग साधनों में वायु प्रदूषण को लेकर हुए अध्ययन पर कहा कि बस, मेट्रो, ऑटो व पैदल चलने वाले दिल्ली में सबसे अधिक जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर हैं। दिल्ली की हवा बद से बदतर होती जा रही है। बीती सर्दी में यह खतरनाक स्तर तक पहुंच गई थी।

वायू प्रदूषण मौत का पांचवां बड़ा कारण
एक अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण भारत में मौत का पांचवां बड़ा कारण है। हवा में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम10 जैसे छोटे कण मनुष्य के फेफड़े में पहुंच जाते हैं। इससे सांस व हृदय संबंधित बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे फेफड़ा का कैंसर भी हो सकता है। दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण वाहनों की बढ़ती संख्या है। साथ ही थर्मल पावर स्टेशन, पड़ोसी राज्यों में स्थित ईंट भट्ठा आदि से भी दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अध्ययन बताता है कि हम वायु प्रदूषण की समस्या को दूर करने को लेकर कितने लापरवाह हैं।

(लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डिप्टी डायरेक्टर हैं)
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