यहां पर भी विपक्ष ने नहीं छोड़ी राजनीति करने में कोई कसर

भारत छोड़ो आंदोलन की 71वीं वर्षगांठ पर भी विपक्ष ने राजनीति करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जबकि इस दिन राष्ट्रीय सहमति के कुछ विषय का चयन होना चाहिए था।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Thu, 17 Aug 2017 11:11 AM (IST) Updated:Thu, 17 Aug 2017 11:17 AM (IST)
यहां पर भी विपक्ष ने नहीं छोड़ी राजनीति करने में कोई कसर
यहां पर भी विपक्ष ने नहीं छोड़ी राजनीति करने में कोई कसर

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

भारत छोड़ो आंदोलन की 71वीं वर्षगांठ देश के लिए अहम है। इस दिन राष्ट्रीय सहमति के कुछ विषय का चयन होना चाहिए था। उनके प्रति संकल्प का भाव होना चाहिए था जिससे खास तौर पर युवा पीढ़ी उन राष्ट्रीय मूल्यों को समझ सके जिसकी स्थापना हमारे स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानियों ने की थी। यह गनीमत थी की लोकसभा और राज्यसभा ने इस संबंध में अलग-अलग संकल्प पारित किए। मगर उसके पहले विपक्षी नेताओं ने राजनीति करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मतलब भारत छोड़ो आंदोलन की यह वर्षगांठ उनके लिए अलग से कोई महत्व नहीं रखती थी।

संसद के बाहर विरोध की इसी मानसिकता का प्रदर्शन किया गया। बिहार में तेजस्वी यादव, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और अनेक स्थानों पर कांग्रेस ने प्रदर्शन के लिए इस दिन को चुना। कांग्रेस के नेता संसद और सड़क पर ऐसे बोल रहे थे जैसे आजादी में यही अंग्रेजों से मोर्चा ले रहे थे। तेजस्वी यादव महात्मा गांधी की दुहाई दे रहे थे। वह जनादेश सम्मान यात्रा पर निकले हैं। अखिलेश यादव ने देश बचाओ देश बनाओ का नारा बुलंद किया। मगर यह नहीं बताया कि सपा के शासन में उत्तर प्रदेश को कितना विकसित बनाया गया। क्षेत्रीय दलों की एक सीमा होती है। यह क्यों न माना जाए कि सपा ने जानबूझकर प्रदेश की जगह देश को बचाने की बात कही। प्रदेश बचाने या बनाने की बात करते तो उनके ऊपर ज्यादा सवाल उठते।

तेजस्वी कहते हैं कि जिस समय का भ्रष्टाचार का मामला बताया जा रहा है तब वह बच्चे थे। बात ठीक है लेकिन आज तो बड़े हैं। विधायक हैं, उपमुख्यमंत्री रहे हैं। अब उन्हें संपत्ति का पूरा ज्ञान है। इसका उपयोग भी करते हैं। उन्होंने अपने माता-पिता की गैराज वाली फोटो अवश्य देखी होगी। वह कितनी साधारण स्थिति में थे। इसका भी अनुमान होगा। बच्चे थे तो नहीं समझे लेकिन अब तो पूछना चाहिए था कि इतनी दौलत, संपत्ति का मालिकाना हक कैसे मिल गया। जहां तक जनादेश की बात है तो नीतीश कुमार का राजद पर ज्यादा उपकार था। यह नीतीश की साफ छवि का प्रभाव था जिसने राजद को एक बार फिर उभरने का अवसर दिया। तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला। अन्यथा राजद धीरे-धीरे बिहार की राजनीति में आप्रासांगिक होती जा रही थी।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का अपने प्रदेश से बाहर कोई महत्व नहीं है। मगर भारत छोड़ो के दिन उन्होंने भी भाजपा को भगाने, हटाने के लिए रैली निकाली। जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है। भाजपा पश्चिम बंगाल में कभी उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज नहीं कर सकी थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षो में भाजपा का गिरा हुआ जनाधार बढ़ा है। विधानसभा चुनाव में भाजपा को दस प्रतिशत वोट मिले। इसमें ममता की नींद उड़ी है। वह भाजपा को हटाने की बात कर रही है, भाजपा की जड़े अनेक प्रदेश में लगातार गहरी होती जा रही हैं। आज विपक्ष में जितने भी नेता शीर्ष पर सक्रिय हैं, उनमें से किसी की स्वतंत्रता संग्राम में सहभागिता नहीं थी, लेकिन संसद में इनका भाषण ऐसा था जैसे इन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर भारत छोड़ने में जान की बाजी लगा दी थी।

यह भी पढ़ें: मोदी का जलवा कायम, लाल किला से दिखाया नए भारत का स्‍वप्‍न

लोकसभा में सोनिया गांधी बोलीं कि उस दौर में ऐसे संगठन थे। जिनका आजादी में कोई योगदान नहीं था। यही बात राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद ने कही। इन्हें पता होना चाहिए कि कांग्रेस के प्राय: सभी राष्ट्रीय और प्रांतीय नेता आंदोलन शुरू होने के पहले जेलों में बंद कर दिए गए थे। आंदोलनकारियों में संघ की भी अहम भूमिका थी। उन्होंने आंदोलन कारियों की अपरोक्ष सहायता पहुंचाने का भी कार्य किया था। सोनिया गांधी सहित कई विपक्षी नेता तीन वर्ष से रटे राग को इस अवसर पर भी ले आए। कहा कि लोकतांत्रिक, बहुलतावादी और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। मतदाता उन्हें विजयी बना दें, तो लोकतंत्र मजबूत हो जाता है, बहुलतावादिता और धर्मनिरपेक्षता आ जाती है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

chat bot
आपका साथी