देसी प्रजातियों से बहुरेंगे पूर्वी राज्यों के चावल किसानों के दिन, अनुसंधान संस्थान करेगा मदद

पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, असम और छत्तीसगढ़ की देसी प्रजातियों के धान की फसल में स्वास्थ्य के लिहाज से कई प्रमुख तत्व हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 13 Dec 2018 07:42 PM (IST) Updated:Thu, 13 Dec 2018 07:42 PM (IST)
देसी प्रजातियों से बहुरेंगे पूर्वी राज्यों के चावल किसानों के दिन, अनुसंधान संस्थान करेगा मदद
देसी प्रजातियों से बहुरेंगे पूर्वी राज्यों के चावल किसानों के दिन, अनुसंधान संस्थान करेगा मदद

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। देसी प्रजातियों के बूते पूर्वी राज्यों के चावल किसानों के दिन बहुरेंगे। इसके लिए बनारस में स्थापित अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान का रीजनल रिसर्च सेंटर वरदान साबित होगा, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 29 दिसंबर को करेंगे। यह रिसर्च सेंटर पूर्वी राज्यों की देसी प्रजातियों को विकसित व मूल्यवर्धित करेगा। इस किस्म के चावल की जबर्दस्त निर्यात मांग है, जिसके लिए यह सेंटर मुफीद साबित होगा।

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पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, असम और छत्तीसगढ़ की देसी प्रजातियों के धान की फसल में स्वास्थ्य के लिहाज से कई प्रमुख तत्व हैं। इसमें सूक्ष्म तत्वों की कमी को पूरा करने की क्षमता है। टाईप टू मधुमेह, दिल की बीमारी और मोटापा जैसी समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए भी इसके चावल फायदेमंद साबित होंगे।

पूर्वाचल के लिए वरदान साबित होगा रीजनल राइस रिसर्च सेंटर

फिलीपींस में स्थापित अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान का बनारस में यह पहला रिसर्च सेंटर खोला गया है, जिसमें कुल 55 कृषि वैज्ञानिकों की नियुक्ति की गई है। इनमें एक तिहाई वैज्ञानिक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विदेशी हैं। रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक व निदेशक डाक्टर उमाशंकर सिंह ने बताया कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए यह सेंटर वरदान साबित होगा।

उन्होंने बताया कि पूर्वी क्षेत्र की प्रमुख प्रजाति काला नमक, सोना चूर, राजरानी, बादशाह भोग, राम भोग, तुलसी भोग और जीरा-32 जैसी देसी प्रजातियों को पहले चरण में लिया गया है। इन प्रजातियों के जीन में हुए घालमेल को ठीक कर उसे परिमार्जित किया जाएगा। साथ ही इन्हीं प्रजातियों में आयरन और जिंक जैसे सूक्ष्म तत्वों का समावेश का समावेश कर उन्हें मूल्यवर्धित किया जाएगा।

डाक्टर सिंह ने बताया कि काला नमक चावल के बारे में बताया कि इसका इतिहास ढाई हजार साल पुराना है। पंतनगर कृषि विश्व विद्यालय ने एक बार 70 जगहों से काला नमक को संग्रहित किया, लेकिन मात्र दो या तीन में ही 95 फीसद तक शुद्धता मिली।

मूल्यवर्धन करने से यह चावल बहुत महंगा बिकेगा। बनारस के इस साऊथ एशिया एंड अफ्रीकी रीजनल सेंटर में देसी प्रजातियों के धान को इकट्ठा कर उसकी जांच की जाएगी।

भारत और बांग्लादेश के चावल में आर्सेनिक कैडमियम जैसे घातक हैवी मेटल पाये जाते हैं। चावल के साथ पराली में भी हैवी मेटल मिलने का असर दुधारू पशुओं पर भी पड़ रहा है। यह रिसर्च सेंटर इस तरह की समस्या का भी निदान करेगा। इस सेंटर का लाभ दक्षिण एशियाई देशों के साथ अफ्रीकी देशों को मिलेगा। यहां के किसानों को जहां लाभ मिलेगा, वहीं कुपोषण जैसी समस्या से निपटने में भरपूर मदद मिलेगी।

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