कोरोना महामारी से उबर रही देश की अर्थव्यवस्था, तीसरी लहर ना आई तो तेजी से बदलेंगे हालात
कोरोना महामारी के बावजूद देश की इकोनामी सुधर रही है। अगर कोरोना की तीसरी लहर नहीं आती है तो वित्त वर्ष 2022-23 तक अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के नकारात्मक प्रभावों से उबर सकती है। देश के राजकोषीय घाटे में सुधार आ रहा है।
सतीश सिंह। कोरोना महामारी के बावजूद राजकोषीय घाटे में सुधार आ रहा है। चालू वित्त वर्ष में सरकार का लक्ष्य राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.8 प्रतिशत रखने का है, जिसे सरकार हासिल भी कर सकती है। पिछले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 9.5 प्रतिशत रहा था। राजकोषीय घाटे में सुधार आने का कारण चालू वित्त वर्ष में ज्यादा राजस्व का संग्रहित होना है। सरकार चालू वित्त वर्ष में बजट अनुमान का 37 प्रतिशत राजस्व संग्रहित कर चुकी है, वहीं विगत साल सरकार बजट अनुमान का केवल 11 प्रतिशत राजस्व ही संग्रहित कर पाई थी। इतना ही नहीं, वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान भी सरकार ने बजट अनुमान का सिर्फ 20 प्रतिशत राजस्व ही संग्रहित किया था।
अर्थव्यवस्था में सुधार आने की वजह से लाखों की संख्या में नए खुदरा निवेशक हाल में शेयर बाजार से जुड़े हैं। मार्च, 2020 के स्तर से बीएसई शेयर सूचकांक में लगभग 2.3 गुना का उछाल आ चुका है। वैसे तो शेयर सूचकांकों में उछाल आने के अनेक कारण हैं, लेकिन खुदरा निवेशकों की शेयर बाजार में बढ़ती भागीदारी एक महत्वपूर्ण कारण है। अन्य कारणों में वैश्विक निवेशकों की लगातार लिवाली, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नरम मौद्रिक नीति को कायम रखना, फेडरल रिजर्व बैंक के द्वारा ब्याज दरों में बदलाव नहीं करना आदि महत्वपूर्ण हैं। प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी) संग्रह सितंबर महीने में पूरे साल के लिए निर्धारित लक्ष्य से अधिक रहने की संभावना है, जिसका करण शेयर बाजार में खुदरा निवेशकों की भागीदारी का बढ़ना है। खुदरा निवेशक उन्हें माना जाता है, जिनकी शेयरधारिता मूल्य दो लाख रुपये तक की होती है।
सोलह सितंबर को एसटीटी संग्रह 12,000 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जबकि बजट में लक्ष्य 12,500 करोड़ रुपये के संग्रह का था। एसटीटी एक प्रत्यक्ष कर है, जो किसी स्टाक एक्सचेंज के जरिये किए जाने कर योग्य प्रतिभूतियों के लेनदेन के मूल्य पर देय होता है। यह प्रतिभूतियों के लेनदेन के कुल कारोबार का 0.1 प्रतिशत वसूल किया जाता है।लगभग सभी प्रकार के करों के संग्रह में कोरोना महामारी के बावजूद हाल के महीनों में जबर्दस्त उछाल आया है, लेकिन वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में उल्लेखनीय वृद्धि होने की वजह से केंद्र सरकार ने प्रत्यक्ष कर के छमाही लक्ष्य को पहले ही प्राप्त कर लिया है। जीएसटी संग्रह औसतन हर महीने 1.15 लाख करोड़ रुपये हो रहा है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में अग्रिम कर संग्रह में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक वृद्धि हुई है। गौरतलब है कि अग्रिम कर का भुगतान साल के अंत में एक बार करने के बजाय कुल चार किस्तों में किया जाता है।
पिछले साल की तुलना में सकल कर संग्रह 47 प्रतिशत से बढ़कर 6.45 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जिसमें 3.58 लाख करोड़ रुपये निगम कर है, वहीं एसटीटी और व्यक्तिगत आयकर 2.86 लाख करोड़ रुपये है।कर संग्रह में बढ़ोतरी के अनेक कारण हैं, जैसे उच्च एसटीटी संग्रह, आइटी और फार्मा कंपनियों के शेयरों में उछाल, एफआइआइ के साथ साथ घरेलू निवेशकों द्वारा खुलकर निवेश करना, बाजार में नकदी की तरलता का बना रहना, ऋण ब्याज दरों का कम होना आदि। अग्रिम कर जमा करने की जो रफ्तार है, उससे पता चलता है कि राजस्व संग्रह में अभी मजबूती बनी रहेगी। राजस्व संग्रह ज्यादा होने से सरकार पूंजीगत व्यय को बढ़ा सकती है, ताकि अर्थव्यवस्था में और भी मजबूती आए।
बहरहाल जीएसटी के नियमों को सरल एवं लचीला बनाने से कर चोरी में कमी आ रही है। सरकार द्वारा बैड बैंक को जल्द शुरू करने के प्रयासों से फंसे कर्ज (एनपीए) की वसूली की आस बढ़ी है, दूरसंचार उद्योग के लिए राहत पैकेज की घोषणा करने और वाहन क्षेत्र के लिए उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन योजनाओं को लागू करने से बाजार पर सकारात्मक असर पड़ा है। अगर कोरोना महामारी की तीसरी लहर नहीं आती है तो वित्त वर्ष 2022-23 तक अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के नकारात्मक प्रभावों से उबर सकती है।
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)