India Russia China Trilateral News: आइए जानते हैं भारत और चालबाज चीन के लिए आखिर क्यों जरूरी है रूस

India Russia China Trilateral News पिछले सात दशकों से रूस के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। इस रणनीतिक साझेदार का सबसे मजबूत स्तंभ रक्षा सौदे हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 24 Jun 2020 09:20 AM (IST) Updated:Wed, 24 Jun 2020 02:46 PM (IST)
India Russia China Trilateral News: आइए जानते हैं भारत और चालबाज चीन के लिए आखिर क्यों जरूरी है रूस
India Russia China Trilateral News: आइए जानते हैं भारत और चालबाज चीन के लिए आखिर क्यों जरूरी है रूस

नई दिल्‍ली, जेएनएन। India Russia China Trilateral News भारत और चीन के मध्य उपजे हालातों में रूस अचानक से बीच में आ गया है। विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने मंगलवार को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के मध्य वीडियो कांफ्रेंसिंग की मेजबानी की। इससे पूर्व जयशंकर और वांग के मध्य 17 जून को बेहद तनावपूर्ण माहौल में बातचीत हुई थी।

वहीं बुधवार को मॉस्को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और उनके चीनी समकक्ष वेई फेंग की मेजबानी करेगा, जो कि विजय दिवस परेड में भाग लेंगे। आइए जानते हैं कि पिछले कुछ दशकों में रूस और चीन के संबंध कैसे बढ़े हैं और मॉस्को ने वर्तमान संकट में कैसा काम किया है। साथ ही जानते हैं कि भारत और चीन के लिए आखिर क्यों जरूरी है रूस।

चीन के साथ बेहतर होते रिश्ते : पिछले कुछ वर्षों में रूस और चीन के संबंध बेहतर हुए हैं। मॉस्को और बीजिंग का साथ महत्वपूर्ण है, खासकर तब से जब पिछले कुछ महीनों में चीन वॉशिंगटन के निशाने पर है, जबकि रूस उसके साथ खड़ा नजर आया है। यहां तक की कोविड-19 महामारी के वक्त भी। नई दिल्ली का मानना है कि पश्चिमी देशों, खासकर मॉस्को और बीजिंग के प्रति अमेरिका के दृष्टिकोण ने उन्हें वापस करीब ला दिया है। हालिया दिनों में रूस ने चीन के साथ सुर मिलाए हैं। इनमें कोविड-10 पर प्रतिक्रिया, हांगकांग और हुवेई पर रूस ने चीन का साथ दिया है। हालांकि दोनों देश एक दूसरे से नजरें नहीं मिलाते हैं। क्रीमिया को रूस के हिस्से के रूप में चीन मान्यता नहीं देता है, वहीं दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावे को लेकर रूस तटस्थ रुख अपनाता रहा है।

राजनयिक स्तर पर दो बार बात : गलवन संकट के पहले और बाद में भारत और रूस के मध्य दो बार राजनयिक स्तर पर बातचीत हुई है। इस महीने की शुरुआत में 6 जून को लेफ्टिनेंट जनरल स्तरीय वार्ता से पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने वास्तविक नियंत्रण रेखा की स्थिति से रूसी राजदूत निकोले कुदाशेव को अवगत कराया था। वहीं 15 जून को गलवन घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के मध्य झड़प के बाद 17 जून को रूस में भारत के राजदूत डी बाला वेंकटेश ने रूस के उप विदेश मंत्री इगोर मोर्गुलोव के साथ बातचीत की थी।

शुरुआत में ठीक नहीं थे संबंध : 1949 में माओत्से तुंग ने चीन पर नियंत्रण स्थापित करने के बाद पहली मॉस्को यात्रा की। इस दौरान रूसी नेतृत्व से मिलने के लिए उन्हें हफ्तों तक इंतजार करना पड़ा था। शीतयुद्ध के समय 1961 में चीन और सोवियत संघ दोनों दुनिया भर में कम्युनिस्ट आंदोलन के नियंत्रण के लिए प्रतिस्पद्र्धा कर रहे थे। वहीं 1969 में संक्षिप्त सीमा युद्ध हुआ। हालांकि माओ की मौत के बाद 1976 में यह दुश्मनी कम होने लगी, लेकिन 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद दोनों देशों के मध्य संबंध बहुत अच्छे नहीं थे।

इसलिए एक-दूसरे की जरूरत : शीतयुद्ध के बाद दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों ने नया रणनीतिक आधार बनाया है। रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार चीन है और रूस में सबसे बड़ा एशियाई निवेशक भी है। चीन रूस को कच्चे माल के बड़े गोदाम और उपभोक्ता वस्तुओं के बढ़ते बाजार के रूप में देखता है। 2014 में पश्चिम के कठोर प्रतिबंधों के कारण रूस, चीन के नजदीक आया। हालिया वर्षों में चीन और रूस के मध्य एक गठबंधन का विकास हुआ है, जिसे पश्चिमी विशेषज्ञ सुविधा के लिए मित्रता का नाम देते हैं।

रूस की स्थिति तब और अब : 2017 में डोकलाम विवाद के दौरान बीजिंग में रूसी राजनयिकों को चीन की सरकार ने कुछ जानकारी दी थी। उस वक्त यह पर्दे में छिपी रही। 1962 में रूस की स्थिति भारत के लिए सहायक नहीं थी, वहीं 1971 के युद्ध में रूस भारत के साथ था। गलवन संकट के दौरान रूस ने बहुत ही नपा तुला जवाब दिया है। रूसी राजदूत कुदाशेव ने ट्वीट किया कि हम एलएसी पर संघर्ष को रोकने के लिए किए जा रहे सभी प्रयासों का स्वागत करते हैं। राष्ट्रपति के प्रवक्ता दमित्र पेसकोव ने कहा है कि इस संकट को दोनों देश स्वयं हल कर सकते हैं। उन्होंने जोर दिया कि चीन और भारत रूस के करीबी सहयोगी हैं।

भारत और रूस : पिछले सात दशकों से रूस के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। कुछ क्षेत्रों में यह संबंध और प्रगाढ़ हुए हैं, लेकिन इस रणनीतिक साझेदार का सबसे मजबूत स्तंभ रक्षा सौदे हैं। यद्यपि नई दिल्ली ने अन्य देशों से रक्षा उपकरण खरीदे हैं, लेकिन आज भी बड़ा हिस्सा वह रूस से ही खरीदता है। अनुमान है कि रूस से भारत की 60 से 70 फीसद रक्षा आपूर्ति होती है। भारत को रक्षा उपकरणों के स्पेयर पाट्र्स की जरूरत है। पीएम मोदी ने सिर्फ दो नेताओं पुतिन और शी जिनपिंग के साथ अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में भाग लिया हैं। भारत ने यह फैसला सिर्फ रूस के लिए लिया क्योंकि वह मानता है कि सीमा के मुद्दे पर बीजिंग के रुख में परिवर्तन रूस ही ला सकता है। चीन और भारत के बीच तनाव के इस दौर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस से रक्षा खरीद पर चर्चा करेंगे।

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