केंद्र सरकार के सख्त रुख से अलगाववादी सकते में

पीएम मोदी ने मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के साथ बातचीत में साफ कर दिया कि हालात सामान्य होने के बाद रियासत के चुने हुए प्रतिनिधियों से बातचीत होगी।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Publish:Wed, 03 May 2017 10:43 PM (IST) Updated:Wed, 03 May 2017 10:43 PM (IST)
केंद्र सरकार के सख्त रुख से अलगाववादी सकते में
केंद्र सरकार के सख्त रुख से अलगाववादी सकते में

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। कश्मीर मुद्दे पर केंद्र सरकार के कड़े रुख अपनाने और हालात सामान्य होने से पूर्व किसी तरह की वार्ता से इन्कार किए जाने के बाद अलगाववादी खेमा सकते में है। उनमें मतभेद भी शुरू हो गए हैं। वह अब बीच का रास्ता तलाशने में जुट गए हैं।

गौरतलब है कि कश्मीर में बीते एक साल से कट्टरपंथी सैय्यद अली शाह गिलानी, उदारवादी हुर्रियत प्रमुख मीरवाइज मौलवी उमर फारूक और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के चेयरमैन मुहम्मद यासीन मलिक समेत सभी प्रमुख अलगाववादी एकजुट नजर आ रहे हैं। जुलाई 2016 में आतंकी बुरहान की मौत के बाद इन लोगों ने पहले मिलकर पांच माह तक कश्मीर में सिलसिलेवार बंद कर राष्ट्रविरोधी प्रदर्शनों को हवा दी थी। उसके बाद मौजूदा वर्ष अप्रैल में श्रीनगर व अनंतनाग लोकसभा उपचुनाव के बहिष्कार के लिए लोगों को उकसाते हुए वादी में कानून व्यवस्था का वातावरण बिगाड़ा।

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अलगाववादी खेमा प्रदर्शनों में लगातार बढ़ रही स्थानीय युवकों की भीड़ और मजहब के नाम पर लोगों से मिल रहे समर्थन को जीत मान कर केंद्र को कश्मीर मुद्दे पर पूरी तरह ब्लैकमेल करने पर उतरा आया था। वह संकेत देने लगा था कि पाक के साथ बातचीत और कश्मीरियों को आत्मनिर्णय के अधिकार के बाद ही वह हालात सामान्य बनाने के लिए स्थानीय युवकों को उकसाना बंद करेंगे। इसी नीति के तहत उसने केंद्र की ट्रैक-टू डिप्लोमेसी पर काम कर रही टीम के सदस्यों से भी मिलने से इन्कार किया। अलगाववादी खेमे की यह नीति उस पर उल्टा असर करने लगी है।

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पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के साथ बातचीत में साफ कर दिया कि हालात सामान्य होने के बाद रियासत के चुने हुए प्रतिनिधियों से बातचीत होगी। केंद्र के रवैये से अलगाववादी खेमे में एकजुटता भंग होने लगी है। मीरवाइज ने अपना रवैया कुछ नरम कर दिया और कहा कि बातचीत ही कश्मीर समस्या का समाधान है। कट्टरपंथी सैय्यद अली शाह गिलानी बातचीत को लेकर राजी नहीं हैं। उन्होंने बातचीत को तैयार नजर आ रहे मीरवाइज व अन्य अलगाववादियों को परोक्ष रूप से धमकाते हुए कहा कि नई दिल्ली के साथ बातचीत व्यर्थ है।

नईम अहमद खान और शब्बीर शाह सरीखे वरिष्ठ अलगाववादी, जिन्हें सैय्यद अली शाह गिलानी ने अपने नेतृत्व वाली हुर्रियत में बीते साल अहम जिम्मेदारियां सौंपी थीं, बीते एक सप्ताह से अलग लाइन पर चल रहे हैं। दोनों गिलानी की कट्टर नीतियों के उल्ट बातचीत के रास्ते को अपनाने पर जोर दे रहे हैं।

अलगाववादी खेमे में आए बदलाव से कश्मीर विशेषज्ञ भी हैरान हैं। वरिष्ठ पत्रकार बशीर अहमद ने कहा कि बीते 28 साल में पहली बार केंद्र ने कश्मीर मुद्दे पर दो टूक नीति अपनाई है। इससे अलगाववादी खेमे का हताश होना जायज है। उन्हें लग रहा था कि इस समय वह कुछ भी कर सकते हैं और केंद्र उनके आगे झुक जाएगा।

हुर्रियत की सियासत पर नजर रखने वाले इमरान ने कहा कि बीते साल से जारी ¨हसक प्रदर्शनों और श्रीनगर संसदीय सीट के उपचुनाव में लोगों की नाममात्र की भागेदारी के बावजूद केंद्र ने जो रवैया अपनाया है, वह हैरान करने वाला है। इससे हुर्रियत नेताओं में खलबली मची हुई है।

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