तेजी से बढ़ रही है हिंदी की धमक, देश में हिंदी भाषियों की संख्या 25 फीसदी बढ़ी

हिंदी विरोध की धुरी माने जाने वाले तमिलनाडु में इनकी संख्या दोगुनी बढ़ गई है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sat, 14 Jul 2018 07:55 PM (IST) Updated:Sun, 15 Jul 2018 07:46 AM (IST)
तेजी से बढ़ रही है हिंदी की धमक, देश में हिंदी भाषियों की संख्या 25 फीसदी बढ़ी
तेजी से बढ़ रही है हिंदी की धमक, देश में हिंदी भाषियों की संख्या 25 फीसदी बढ़ी

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। हिंदी भले ही अदालती कार्यवाही और सरकारी कामकाज की भाषा नहीं पाई हो, लेकिन मातृभाषा के रूप में उसकी धमक बढ़ती जा रही है। जनगणना के भाषाई वितरण के ताजा आंकड़ों के अनुसार देश में हिंदी को मातृभाषा मानने वालों की संख्या में 25 फीसदी का इजाफा हुआ है और यह हिंदी भाषी राज्यों तक सीमित नहीं है। 60 के दशक में हिंदी विरोधी आंदोलन का सामना करने वाले दक्षिण के राज्यों में भी हिंदी को मातृभाषा मानने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।

2001 से 2011 के भाषाई आधार पर जारी जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक देश में लगभग 44 फीसदी जनसंख्या की मातृभाषा हिंदी है। 2001 का तुलना में इसमें 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इन आंकड़ों से यह भी साफ हो गया है कि हिंदी अब केवल हिंदी भाषी क्षेत्र की मातृभाषा नहीं रही है, बल्कि दक्षिण के राज्यों में रहने वाले बड़ी संख्या हिंदी भाषियों की हो गई है।

हिंदी विरोध की धुरी माने जाने वाले तमिलनाडु में इनकी संख्या दोगुनी बढ़ गई है। इसकी प्रमुख वजह यह माना जा रहा है कि बड़ी संख्या में हिंदी भाषी राज्यों से लोग रोजगार की तलाश में दक्षिण के राज्यों में जा रहे हैं। वैसे ये आंकड़े सिर्फ जनगणना के दौरान हिंदी को मातृभाषा बताने वालों की है। यदि हिंदी बोलने वाले और समझने वालों को इनमें जोड़ दिया जाएगा, तो यह सही मायने में देश की संपर्क बन चुकी है।

हिंदी की तरह मराठी और बांग्ला को मातृभाषा मानने वालों की संख्या भी बढ़ी है। बांग्ला मातृभाषा वाले अब बड़ी संख्या में तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक जैसे दक्षिण के राज्यों में जा बसे हैं। एक तरफ दक्षिण के राज्यों में हिंदी और बांग्ला भाषियों की संख्या दक्षिण के राज्यों में बढ़ रही है, वहीं उत्तरी भारत में दक्षिण की भाषाओं को बोलने वालों की संख्या में कमी आई है। इसे पिछले एक दशक के दौरान दक्षिण के राज्यों में हुए तेज आर्थिक विकास से जोड़कर देखा जा रहा है। वहां के स्थानीय लोगों आस-पास रोजगार अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। वहीं रोजगार की तलाश में हिंदी और बांग्लाभाषी दक्षिण का रुख कर रहे हैं।

जहां एक ओर हिंदी, मराठी और बांग्ला बोलने वालों की संख्या में तेज बढ़ोतरी हुई है, वहीं इस एक दशक में उर्दू बोलने वालों की संख्या में गिरावट आई है। खासतौर पर हिंदी भाषी इलाकों में यह गिरावट ज्यादा देखी जा रही है। माना जा रहा है कि रोजगार के अवसर कम होने और अधिकांश मुस्लिम युवाओं के मुख्य धारा के स्कूलों में जाने के कारण वे उर्दू को अपनी मातृभाषा नहीं मानते हैं और यह केवल मदरसों तक सिमट कर रह गई है। 

chat bot
आपका साथी