कोर्ट देखे कि वे कौन लोग हैं जो देश की भौगोलिक स्थिति बदलना चाहते हैं

रोहिंग्याओं की तरफदारी की इतनी जनहित याचिकाएं आ रही हैं ऐसे में कोर्ट को देखना चाहिए कि वे कौन लोग हैं जो देश की भौगोलिक स्थिति बदलना चाहते हैं।

By Manish NegiEdited By: Publish:Mon, 19 Mar 2018 09:33 PM (IST) Updated:Mon, 19 Mar 2018 10:40 PM (IST)
कोर्ट देखे कि वे कौन लोग हैं जो देश की भौगोलिक स्थिति बदलना चाहते हैं
कोर्ट देखे कि वे कौन लोग हैं जो देश की भौगोलिक स्थिति बदलना चाहते हैं

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थियों को देश में प्रवेश और मूलभूत सुविधाएं देने की मांग करने वाली जनहित याचिकाओं पर केन्द्र सरकार ने गंभीर सवाल उठाए। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राष्ट्र की संप्रभुता सर्वोपरि है। रोहिंग्याओं की तरफदारी की इतनी जनहित याचिकाएं आ रही हैं ऐसे में कोर्ट को देखना चाहिए कि वे कौन लोग हैं जो देश की भौगोलिक स्थिति बदलना चाहते हैं। देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा और अस्थिरता पैदा करना चाहते हैं। सरकार ने ये भी कहा कि चिकित्सा आदि की सुविधा नागरिकों और गैर नागरिकों सभी को समान रूप से मिलती हैं इसके बारे में कोर्ट को अलग से आदेश देने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने सरकार का बयान स्वीकार करते हुए रोहिंग्याओं को मूलभूत सुविधाएं देने के बारे में अंतरिम आदेश देने से इन्कार कर दिया। कोर्ट ने मामले को 9 अप्रैल को अंतिम सुनवाई के लिए लगाने का आदेश दिया है।

सोमवार को सुनवाई के दौरान रोहिंग्याओं की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार ने मिर्च पाउडर और स्टेनगन के हमले के आरोपों से तो इन्कार किया है लेकिन कहा है कि पासपोर्ट एक्ट के तहत किसी को भी वैध यात्रा दस्तावेज के बिना देश में प्रवेश नहीं दिया जा सकता। इसका मतलब है कि सरकार मान रही है कि वो घुसने की कोशिश कर रहे रोहिंग्याओं को वापस धकेलती है, क्योंकि जनसंहार के भय से शरण के लिए भाग रहे रोहिंग्याओं के पास पासपोर्ट नहीं होता। उन्हें मानवीय अधार पर उन्हें प्रवेश दिया जाना चाहिए। भूषण ने कहा कि सरकार ने हलफनामें में स्वीकार किया है कि रोहिंग्याओं को भी नागरिकों के समान ही चिकित्सा आदि की सुविधा मिलती है तो फिर कोर्ट इसी आधार पर रोहिंग्याओं को चिकित्सा और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं देने का अंतरिम आदेश दे।

लेकिन केन्द्र की ओर से पेश एएसजी तुषार मेहता ने इसका जबरदस्त विरोध किया। मेहता ने कहा कि जब सरकार ने हलफनामा दाखिल कर कहा है कि सभी को समान रूप से चिकित्सा सुविधाएं दी जाती हैं तो मामला यहीं खत्म हो जाता है। इसमें कोर्ट के आदेश की जरूरत नहीं है। मेहता ने कहा कि राष्ट्र की संप्रभुता सर्वोपरि है। ये देश हित का मामला है। समझ नहीं आता कि याचिकाकर्ता क्या चाहते हैं। इतनी सारी जनहित याचिकाएं दाखिल हो रही हैं ऐसे में कोर्ट को देखना चाहिए कि वे कौन लोग हैं जो देश की भौगोलिक स्थिति बदलना चाहते हैं। मेहता ने कहा कि बांग्लादेश और म्यामार के साथ हमारी सीमा कई जगह से खुली है जिससे घुसपैठ होती है। सरकार इसका हल राजनयिक स्तर पर निकालने की कोशिश कर रही है। कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए।

तभी रोहिंग्याओं की तरफदारी करते हुए कांग्रेस के नेता और पूर्व कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने कहा कि ये ठीक है कि देश की संप्रभुता सर्वोपरि है लेकिन जीवन का मौलिक अधिकार भी महत्वपूर्ण है। कोर्ट देखे कि मानवाधिकारों के संरक्षण में भारत कहां खड़ा है। लेकिन रोहिंग्याओं का विरोध करने वाले भी कम नहीं थे। वकील महेश जेठमलानी और अश्वनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि पहले केस की मेरिट पर विचार होना चाहिए। देखा जाए कि सरकार का इस बारे मे कोई दायित्व बनता भी है कि नहीं। उपाध्याय की याचिका में एक वर्ष के भीतर रोहिंग्या और बांग्लादेशी सहित सभी घुसपैठियों की पहचान कर वापस भेजे जाने की मांग की गई है। 

कैम्पों में रह रहे रोहिंग्याओं को सुविधाओं पर मांगी रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, हरियाणा और जम्मू के कैम्पों में रह रहे रोहिंग्याओं को मूलभूत सुविधाएं जैसे पीने का पानी, टायलेट और शिक्षा जैसी सुविधाएं न मिलने के आरोपों पर केन्द्र सरकार से दो सप्ताह में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट में दाखिल याचिका में कैंपों में रह रहे रोहिंग्याओं को मूलभूत सुविधाएं न मिलने का आरोप लगाया गया है। 

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