जुलाई में दुनियाभर में 3.7 फीसदी घटे खाने-पीने की चीजों के दाम

अनाज, तिलहन, डेयरी उत्पाद, मांस और शकर के लिए खाद्य मूल्य सूचकांक में मासिक परिवर्तन मापने वाली एजेंसी खाद्य एवं कृषिष संगठन ([एफएओ)] ने यह आंक़़डा दिया है।

By Vikas JangraEdited By: Publish:Fri, 03 Aug 2018 06:37 PM (IST) Updated:Fri, 03 Aug 2018 06:37 PM (IST)
जुलाई में दुनियाभर में 3.7 फीसदी घटे खाने-पीने की चीजों के दाम
जुलाई में दुनियाभर में 3.7 फीसदी घटे खाने-पीने की चीजों के दाम
नई दिल्ली [एजेंसी]। संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एजेंसी ने कहा है कि जुलाई के दौरान दुनियाभर में खाने--पीने की चीजों की कीमतें 3.7 फीसदी घटी है, जो साल की सबसे तेज मासिक गिरावट है। भारत के हालात भी कमोबेश ऐसे ही हैं। अनाज, तिलहन, डेयरी उत्पाद, मांस और शकर के लिए खाद्य मूल्य सूचकांक में मासिक परिवर्तन मापने वाली एजेंसी खाद्य एवं कृषिष संगठन ([एफएओ)] ने यह आंक़़डा दिया है।

एफएओ ने कहा है कि जुलाई में गेहूं, मक्का और चावल के भाव में भारी गिरावट के कारण खाने--पीने की तमाम चीजों की कीमतें घटती हुई नजर आई। इस दौरान दुनियाभर में इनकी कीमतों के साथ ही मांग भी तुलनात्मक रप से कम रही। साल के पहले छह महीनों के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के भाव आम तौर पर कमजोर रहे। इसके साथ ही यूरोपीय संघ और रूस की चिंता ने महीने के अंत में निर्यात की संभावनाओं को अधिक धक्का पहुंचाया।

एफएओ के मुताबिक जुलाई के दौरान डेयरी मूल्य सूचकांक और शकर मूल्य सूचकांक में सबसे तेज गिरावट दर्ज की गई। एजेंसी ने 2018 में अनाज उत्पादन का कोई नया पूर्वानुमान नहीं दिया। अगला नया पूर्वानुमान 6 सितंबर को आएगा। भारत में तेल, शकर सस्ते एजेंसी के नतीजों के आधार पर आंकलन किया जाए तो भारत में सबसे ज्यादा गिरावट शकर और खाद्य तेलों की कीमतों में दर्ज की गई है। घरेलू बाजार में शकर के भाव पिछले 4 वषर्षो के न्यूनतम स्तर पर आने के बाद सरकारी प्रयासों की बदौलत कुछ ब़़ढे हैं।

फोटोः मनीवेब
खाद्य तेलों के मामले में स्थिति ज्यादा खराब है। सरकार की ओर से तीन बार आयात शुल्क ब़़ढाए जाने के बावजूद कीमतें निचले स्तर पर हैं। सस्ते आयात की वजह से भारतीय ऑयल प्लांट पूरी क्षमता पर काम नहीं कर पा रहे हैं और किसानों को उनकी उपज की उचित कीमत नहीं मिल पा रही है। शकर, गेहूं के खरीदार नदारद अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति के आकलन से स्पष्ट है कि दुनियाभर में शकर और गेंहू के खरीदार नदारद हैं। दूसरी ओर इनका उत्पादन लगातार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच रहा है। ऐसे में इनके उत्पादक देशों के लिए निर्यात चुनौती बन गई है।

भारत ने एक ओर जहां अपने किसानों को बचाने के लिए गेंहू के आयात पर 50 फीसदी शुल्क लगा रखा है, वहीं शकर निर्यात को प्रोत्साहन किया जा रहा है। लेकिन, दुनियाभर में जो हालात हैं, उससे दोनों ही स्थिति में कोई लाभ भारत को नहीं मिल पा रहा है। तेल, तिलहन उत्पादक परेशान खाद्य तेल और तिलहन के मुख्य उत्पादक देश दूसरी ही परेशानी से झूज रहे हैं।

मलेशिया और इंडोनेशिया में तेल का रिकॉर्ड उत्पादन और पिछले तीन वषर्षो का न्यूनतम निर्यात खासी चुनौती बनी हुई है जबकि चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वार के बावजूद ब्राजील में सोयाबीन की मांग का दबाव न बन पाना अन्य तिलहन उत्पादक देशों के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है। दरअसल, एफएओ की रिपोर्ट संकेत दे रही है कि आगामी 6 महीने तक तेजी की कोई गुंजाइश नहीं है।
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