जानें आखिर किस मंशा से भारत ने प्रथम विश्‍व युद्ध में लिया था भाग, क्‍यों था कांग्रेस का समर्थन

प्रथम विश्‍व युद्ध में कुल 8 लाख भारतीय सैनिकों ने हिस्‍सा लिया, जिसमें करीब 47746 सैनिक मारे गये और 65000 घायल हुए।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Sat, 10 Nov 2018 03:55 PM (IST) Updated:Sun, 11 Nov 2018 10:39 AM (IST)
जानें आखिर किस मंशा से भारत ने प्रथम विश्‍व युद्ध में लिया था भाग, क्‍यों था कांग्रेस का समर्थन
जानें आखिर किस मंशा से भारत ने प्रथम विश्‍व युद्ध में लिया था भाग, क्‍यों था कांग्रेस का समर्थन

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। दुनिया के इतिहास में करीब चार वर्षों तक चले प्रथम विश्‍व युद्ध ने दुनिया का नक्‍शा बदल दिया था। यह युद्ध 28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 के बीच लड़ा गया। इस लड़ाई में दुनिया ने विनाश की उस तस्‍वीर को देखा जिसको दोबारा कोई नहीं देखना चाहेगा। इस लड़ाई में पांच करोड़ से अधिक लोगों की मौत हुई। इसमें यूरोप, एशिया और अफ्रीका जैसे तीन बड़े महाद्वीपों ने हिस्‍सा लिया और यह समुद्र से लेकर धरती और आकाश में लड़ा गया। यह एक ऐसा युद्ध था जिसमें घायलों की ही संख्‍या करोड़ों में थी। इस विश्व युद्ध के खत्‍म होते-होते चार बड़े साम्राज्य रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी (हैप्सबर्ग) और उस्मानिया ढह गए। यूरोप की सीमाएं फिर से निर्धारित हुई और इसके अंत तक अमेरिका दुनिया की महाशक्ति बनकर उभरा था।

अलग-अलग मोर्चे पर लड़े थे भारतीय जवान 
इस युद्ध में भारतीय जवान दुनिया में अलग-अलग मोर्चे पर लड़े थे। भारत के सिपाही फ्रांस और बेल्जियम , एडीन, अरब, पूर्वी अफ्रीका, गाली पोली, मिस्र, मेसोपेाटामिया, फिलिस्‍तीन, पर्सिया और स्‍लोवानिया समेत पूरे विश्‍व में विभिन्‍न लड़ाई के मैदानों में बड़े पराक्रम के साथ लड़े। गढ़वाल राईफल्स रेजिमेंट के दो सिपाहियों को संयुक्त राज्य का उच्चतम पदक विक्टोरिया क्रॉस भी मिला था। हालांकि युद्ध के शुरुआती दौर में जर्मनी नहीं चाहता था कि भारत इसमें शामिल हो। इसकी बजाए वह भारत को ब्रिटेन के खिलाफ उकसाने की कोशिश कर रहा था।

ब्रिटेन को कांग्रेस का समर्थन
लेकिन इन सभी के उलट कांग्रेस इस लड़ाई में शामिल होने को लेकर ब्रिटेन को समर्थन दे रही थी। इस लड़ाई में कुल 8 लाख भारतीय सैनिकों ने हिस्‍सा लिया, जिसमें करीब 47746 सैनिक मारे गये और 65000 घायल हुए। इस युद्ध का भारत की अर्थव्‍यवस्‍था पर बेहद नकारात्‍म प्रभाव हुआ और यह लगभग दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई।

ऐसे हुई विश्‍वयुद्ध की शुरुआत
इस युद्ध की शुरुआत 28 जून 1914, को सेराजेवो में ऑस्ट्रिया के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्चड्युक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्‍या से हुई थी। इसके एक माह के बाद आस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध घोषित कर दिया था। इस काम में उसको रूस, फ़्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने मदद की। जर्मनी ने फ्रांस की ओर बढ़ने से पूर्व तटस्थ बेल्जियम और लक्जमबर्ग पर हमला बोल दिया जिसके बाद ब्रिटेन ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।

अमेरिका के शामिल होने की ये थी वजह 
अगस्त 1917 के मध्य तक इस युद्ध में कई देश शामिल हो चुके थे। 1917 के बाद अमेरिका मित्र राष्ट्रों की ओर से इस युद्ध में शामिल हो गया था। इस युद्ध में अमेरिका के कूदने की वजह उस जर्मनी द्वारा इंग्‍लैंड के लुसिटिनिया जहाज को डुबो देना थी। इसमें कुछ अमेरिकी नागरिक सवार थे। इस घटना से गुस्‍साए अमेरिका ने भी ब्रिटेन की तरफ से इस युद्ध में शामिल होने की घोषणा कर दी थी। 1918 ई. में ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका ने मिलकर जर्मनी आदि राष्ट्रों को पराजित किया। जर्मनी और आस्ट्रिया की प्रार्थना पर 11 नवंबर 1918 को युद्ध समाप्ति की घोषणा की गई। लेकिन तब तक करोड़ों लोग इस युद्ध की वजह से अपनी जान गंवा चुके थे।

ऐसे बदल गया दुनिया का नक्‍शा  दुनिया के चार देशों में राजशाही का अंत हुआ। इनमें जर्मनी, तुर्की, ऑस्ट्रिया-हंगरी और रूस शामिल हैं। इस युद्ध ने लोगों को अन्य विचारधाराओं के करीब जाने में मदद की। रूस में बोल्शेविक विचारधारा सत्ता में आई तो इटली और जर्मनी में फासीवाद को लोगों ने हाथोंहाथ लिया। उपनिवेशवाद की ताबूत में आखिरी कील साबित हुई यह जंग। लोगों में राष्ट्र प्रेम की भावना का संचार हुआ और दक्षिणपूर्वी एशिया, पश्चिम एशिया और अफ्रीका के कई देशों में उपनिवेशवाद को उखाड़ फेंकने की शुरुआत हो गई। दुनिया के आर्थिक संतुलन में भी बदलाव हुआ। जंग के चलते संपन्न यूरोपीय देश कर्ज के दलदल में फंस गए। अमेरिका बड़ी औद्योगिक ताकत बनकर उभरा और दुनिया को अपने डॉलर के तिलिस्म से नजरबंद करने लगा। कई देशों में महंगाई सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती गई। अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो गई। जर्मनी की अर्थव्यवस्था को सबसे बड़ा झटका इसलिए लगा क्योंकि जीते हुए देशों को इसे भारी-भरकम राशि चुकानी पड़ी। सैनिकों का पूरी दुनिया में भ्रमण के चलते महामारियों ने अपना रौद्र रूप दिखाया। एनफ्लूएंजा ने आसानी से पांव पसारे और दुनिया में 2.5 करोड़ लोगों बदल गई दुनिया जंग किसी मसले का हल नहीं है, लेकिन अगर इसे टाला नहीं जा सकता तो इसके ज्यादातर दुष्परिणामों के साथ कुछ सुपरिणाम भी सामने आते हैं। प्रथम विश्व युद्ध के मामले में भी यही हुआ।  सामाजिक जीवन में भी बदलाव इसी जंग की देन रही। पुरुषों के जंग में शामिल होने के चलते महिलाओं ने कारोबार संभाल लिया। मशीनीकरण और ज्यादा से ज्यादा उत्पादन के दबाव में श्रम कानूनों को लागू करने का रास्ता साफ किया। लोगों के बीच अच्छा जीवन जीने की चाहत बढ़ी। इसी युद्ध के बाद दुनिया में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसे संगठन की जरूरत महसूस की गई जो देशों के बीच शांति और सुरक्षा की पैरोकारी कर सके। लिहाजा लीग ऑफ नेशंस की बुनियाद पड़ी। कालांतर में यही संस्था संयुक्त राष्ट्र के रूप में सामने आई। युद्ध के दौरान यातायात और संचार माध्यमों की दिक्कत को देखते हुए इसमें शोध तेजी से किए जाने लगे। अपने दुश्मन पर बढ़त बनाने की प्रतिस्पर्धा ने उत्प्रेरक का काम किया। 

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