सियासी बॉक्स आफिस पर हिट की गारंटी नहीं रुपहले पर्दे की चमक

रजनीकांत ने जहां नये साल की पूर्व संध्या पर अपनी पार्टी बना तमिलनाडु की राजनीति में उतरने की ताल ठोक दी है। तो दूसरे तमिल सुपर स्टार कमल हासन भी सियासत में आने की तैयारी कर रहे हैं।

By Tilak RajEdited By: Publish:Mon, 01 Jan 2018 08:58 PM (IST) Updated:Tue, 02 Jan 2018 07:48 AM (IST)
सियासी बॉक्स आफिस पर हिट की गारंटी नहीं रुपहले पर्दे की चमक
सियासी बॉक्स आफिस पर हिट की गारंटी नहीं रुपहले पर्दे की चमक

नई दिल्ली, संजय मिश्र। तमिल फिल्मों के सुपर स्टार रजनीकांत के राजनीति में उतरने के ऐलान ने सियासी गलियारे में सरगर्मी जरूर बढ़ा दी है। मगर दक्षिणी राज्यों में रुपहले पर्दे के सितारों के सियासी मंच पर फ्लाप होने के बीते कुछ सालों के उदाहरणों को देखते हुए रजनीकांत हों या फिर कमल हासन जैसे स्टार इनके लिए राजनीति में पांव जमाना आसान नहीं होगा। तमिल फिल्मों के स्टार विजयकांत और तेलुगू फिल्मों के सुपरस्टार चिरंजीवी के राजनीति में फिसड्डी साबित होने के हालिया वाकये से साफ है कि स्टार होने भर से ही सियासी बॉक्स आफिस पर सफलता की गारंटी नहीं मिल जाती।

रजनीकांत ने जहां नये साल की पूर्व संध्या पर अपनी पार्टी बना तमिलनाडु की राजनीति में उतरने की ताल ठोक दी है। तो दूसरे तमिल सुपर स्टार कमल हासन भी सियासत में आने की तैयारी कर रहे हैं। हासन ने कुछ समय पहले विकल्प तलाशने के लिए आम आदमी पार्टी के प्रमुख दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात भी की थी। हालांकि आप से हासन की सियासी बात नहीं बनी थी और वे भी अपनी पार्टी बना राजनीति में दांव अजमाने की योजना बना रहे हैं।

मगर इन दोनों सुपर स्टारों के लिए एमजी रामचंद्रन और जयललिता के इतिहास को दुहराना कठिन काम है। खासकर यह देखते हुए कि बीते 12 साल में तमाम प्रयत्‍‌नों के बावजूद विजयकांत अपनी पार्टी डीएमडीके को तो दूर खुद को भी तमिलनाडु की राजनीति में स्थापित नहीं कर पाये। 2005 में डीएमडीके बनाने के बाद से विजयकांत ने गठबंधन करने से लेकर अकेले चुनाव लड़ने के सारे प्रयोग कर डाले मगर कोई खास छाप नहीं छोड़ पाये। पिछले विधानसभा चुनाव में तो उनकी पार्टी का ऐसा सफाया हुआ कि राज्य स्तरीय पार्टी के रुप में उनकी मान्यता पर भी संकट आ गया।

तमिलनाडु में एमजीआर के दौर में ही एक और बड़े सितारे शिवाजी गणेशन ने भी पार्टी बनाकर राजनीति में हाथ आजमाया मगर उन्हें भी निराशा मिली। एमजीआर के बाद रुपहले पर्दे से सियासत में चमक बिखरने में जयललिता को कामयाबी मिली। हालांकि उनकी इस सफलता में एमजीआर से निकटता के कारण उनकी विरासत का फायदा मिला।

इसी तरह आंध्रप्रदेश में सिनेमा से आकर सियासत में अपना मुकाम बनाने वाले एनटी रामाराव के करिश्मे को दोहराने की कोशिश 2008 में चिरंजीवी ने की। तेलगू सुपरस्टार चिरंजीवी ने प्रजा राज्यम के नाम से नई पार्टी बनायी और धूम धड़ाके के साथ 2009 का लोकसभा व विधानसभा चुनाव लड़ा। मगर उनकी पार्टी को विधानसभा में बमुश्किल 20 सीटें ही मिल सकी। चिरंजीवी को जल्द ही राजनीति में केवल स्टार वैल्यू के सहारे कामयाबी नहीं मिलने की हकीकत का अहसास हो गया और 2011 में ही उन्होंनेकांग्रेसका दामन थाम केंद्र में मंत्री बनना मुनासिब समझा।

चिरंजीवी ने अपनी पार्टी का भी कांग्रेस में विलय कर दिया। हालांकि चिरंजीवी का प्रयोग नाकाम होने के बावजूद तेलगू स्टार और उनके छोटे भाई कल्याण कुमार जनसेना पार्टी बनाकर इस समय आंध्र की राजनीति में अपनी जगह बनाने की कसरत कर रहे हैं। तमिल व तेलगू के इन सितारों की तरह कन्नड़ फिल्मों के मशहूर अभिनेता उपेंद्र ने भी सियासत में मुंह की खायी। कर्नाटक प्रज्ञावंता जनता पक्ष नाम से बनायी गई उपेंद्र की पार्टी विधानसभा में भी दस्तक नहीं दे सकी।

दक्षिण के रुपहले पर्दे के सितारों की बीते सालों के नाकाम प्रयोगों के बाद भी रजनीकांत के लिए अन्नाद्रमुक के आपसी कलह में उम्मीद की गुंजाइश जरूर दिख रही है। जयललिता के निधन के बाद अन्नाद्रमुक में विरासत की लड़ाई चरम पर है और इस आशंका को नकारा नहीं जा रहा कि आपसी कलह की वजह से अन्नाद्रमुक सियासी हाशिये पर जा सकती है। ऐसे में द्रमुक के मुकाबले रजनीकांत की पार्टी अन्नाद्रमुक वाली जगह ले सकती है। हालांकि कमल हासन की संभावित सियासी इंट्री से भी तमिल राजनीति की सुपर स्टार सियासत कुछ और नया रंग ले सकती है।

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