आठ चीजों से होता दुनिया का आधा प्रदूषण, इस तरह 40 फीसद कम हो सकता है उत्सर्जन

सप्लाई चेन से कार्बन उत्सर्जन कम करने से प्रदूषण के मामले में बड़े बदलाव आ सकते हैं। इससे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग जीती जा सकती है। दुनिया का 90 फीसद व्यापार छोटे और मध्यम इंटरप्राइजेज से आता है जो सप्लाई चेन के साथ मिलकर काम करते हैं।

By Vineet SharanEdited By: Publish:Mon, 25 Jan 2021 10:45 AM (IST) Updated:Mon, 25 Jan 2021 11:07 AM (IST)
आठ चीजों से होता दुनिया का आधा प्रदूषण, इस तरह 40 फीसद कम हो सकता है उत्सर्जन
प्रोफेशनल सर्विस में वर्चुअल मीटिंग करके 10 फीसद प्रदूषण कम किया जा सकता है।

नई दिल्ली, जेएनएन। दुनिया में सामान की आवाजाही के कारण काफी प्रदूषण होता है। 8 सामान की सप्लाई चेन दुनिया में 50 फीसद प्रदूषण का कारण है। ये हैं- फूड, कंस्ट्रक्शन, फैशन, एफएमसीजी, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो, प्रोफेशनल सर्विस (बिजनेस ट्रैवल और ऑफिस) और दूसरे फ्रेट की सप्लाई चेन। अगर इनसे होने वाले प्रदूषण को कम करने के उपाय किए जाएं तो सामान की कीमत में मात्र 1 से 4 फीसद तक की वृद्धि हो सकती है, लेकिन दुनिया से प्रदूषण का बोझ काफी कम हो जाएगा। यह दावा किया गया है, डब्ल्यूईएफ (वर्ल्ड इकोनामी फोरम) की नई रिपोर्ट में। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के साथ मिलकर बनाई गई इस रिपोर्ट का नाम है- नेट जीरो चैलेंज : द सप्लाई चेन अपरच्यूनिटी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सप्लाई चेन से कार्बन उत्सर्जन कम करने से प्रदूषण के मामले में बड़े बदलाव आ सकते हैं। इससे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग जीती जा सकती है। दुनिया का 90 फीसद व्यापार छोटे और मध्यम इंटरप्राइजेज से आता है, जो सप्लाई चेन के साथ मिलकर काम करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, किसी कंपनी को चलाने की तुलना में उत्पाद को उपभोक्ता तक पहुंचाने में ज्यादा कार्बन उत्सर्जन होता है। इसलिए सप्लाई चेन से उत्सर्जन कम करना ज्यादा फायदेमंद होगा।

किस सप्लाई चेन से कितना वैश्विक उत्सर्जन होता है

भोजन की सप्लाई चेन 25 फीसद कार्बन उत्सर्जन का कारण है। वहीं निर्माण (सीमेंट, स्टील और प्लास्टिक आदि) से 10 फीसद, फैशन से 5 फीसद, एफएमसीजी से 5, इलेक्ट्रॉनिक्स से 5 फीसद, ऑटो से 2 फीसद, प्रोफेशनल सर्विस से (बिजनेस ट्रैवेल ऑफिस) 2 फीसद और अन्य फ्रेट से 5 फीसद उत्सर्जन होता है।

बेहद कम कीमत पर 40 फीसद प्रदूषण कम होगा

इस प्रदूषण को 40 फीसद तक कम करने के लिए जो तकनीक अपनाई जाएगी, उससे वस्तुओं के मूल्य पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। उदाहरण के लिए, ऑटोमोटिव जैसे कार के दाम में करीब 2 फीसद की इससे वृद्धि होगी। वहीं फैशन (जैसे कपड़े) के मूल्य में 2 फीसद, खाने की कीमतों में 4 फीसद, निर्माण की लागत में 3 फीसद और इलेक्ट्रॉनिक्स की कीमत में सिर्फ 1 फीसद का उछाल आएगा। लेनजिंग के सीईओ स्टीफन डोबोकजी कहते हैं कि हमें उपभोक्ताओं को भी जागरूक करना होगा कि कैसे ग्रीन प्रोडक्ट खरीदना एक बेहतर विकल्प है। थोड़ी ज्यादा कीमत देकर वे बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं।

किस सेक्टर में क्या करना होगा

फूड-प्लास्टिक की पैकेजिंग को कम करना होगा और बिना जंगलों को काटे खेती करनी होगी।

निर्माण-किसी इमारत आदि के टूटने से जो विध्वंस अपशिष्ट निकलता है, उसके सीमेंट, एल्यूमीनियम या प्लास्टिक को रिसाइकिल करना होगा। हर स्तर पर अक्षय ऊर्जा और कम उत्सर्जन वाले ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देना होगा।

फैशन और अन्य- सिलाई, कताई के लिए कम ऊर्जा खपत करने वाली मशीनरी का इस्तेमाल करना होगा। इसी तरह बाकी सेक्टर्स में भी प्लास्टिक या उत्पाद की रिसाइकलिंग करके अक्षय ऊर्जा से होने वाले उत्सर्जन में भारी गिरावट लाई जा सकती है। वहीं प्रोफेशनल सर्विस में वर्चुअल मीटिंग करके 10 फीसद प्रदूषण कम किया जा सकता है।

कंपनी को क्या करना होगा

रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की बड़ी कंपनियां भी डाटा हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही हैं, जिससे प्रदूषण कम करने का लक्ष्य बनाया जा सके। सप्लाई चेन में उत्सर्जन काफी भीतर तक है, इसलिए सिर्फ एक कंपनी और कुछ लोगों के प्रयास से सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, बल्कि उद्योग के स्तर पर सभी को साथ मिलकर काम करना पड़ेगा।

ग्रीन हाउस गैस प्रोटोकॉल के मुताबिक, उत्सर्जन को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहले में फैसिलिटी यानी संयंत्रों में इसे नियंत्रित करना होगा, जिसमें ऑनसाइट ईंधन दहन शामिल है। दूसरे हिस्से में थर्ड पार्टी की सहायता से हीट/कूलिंग की खरीद की जा सकती है और बिजली और स्टीम से होने वाले उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। तीसरे चरण में वैल्यू चेन उत्सर्जन को कम करना होगा। वहीं प्रोडक्ट के डिजाइन, कच्चे माल को मंगाने की रणनीति बदलकर बिके हुए उत्पाद का इस्तेमाल करके, सप्लायर और सेक्टर के दूसरे साथियों के साथ मिलकर काम करके उत्सर्जन को घटाया जा सकता है। वहीं रिसाइकिलिंग, मैटेरियल और प्रोसेस की क्षमता बढ़ाने, अक्षय ऊर्जा, अक्षय उष्मा, प्राकृतिक उपाय, ईंधन में बदलाव जैसे उपाय भी करने होंगे।  

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