झूमेगी हरियाली... 2020 के आपदा ने बताया- प्रकृति से बढ़कर कुछ नहीं

इस साल महामारी ने काफी कुछ सिखाया है विशेषकर प्रकृति के बारे में। कम आयु के किशोरों के जीवनकाल का यह पहला मौका था जब उन्हें किताबों में लिखा आसमानी नीला रंग परिलक्षित हुआ। इंसानी विचरण कम होते ही जीव-जंतु सड़कों और रिहायशी इलाकों में टहलने लगे।

By Monika MinalEdited By: Publish:Mon, 28 Dec 2020 12:07 PM (IST) Updated:Mon, 28 Dec 2020 12:07 PM (IST)
झूमेगी हरियाली... 2020 के आपदा ने बताया- प्रकृति से बढ़कर कुछ नहीं
पर्यावरण से जुड़ी उम्मीदों की पृष्ठभूमि आपदा से हुई तैयार

नई दिल्‍ली [डॉ अनिल प्रकाश जोशी]। वर्ष 2021 में हमारी पर्यावरण से जुड़ी उम्मीदों की पृष्ठभूमि आपदा वाले 2020 ने तैयार की है। आपदा ने बता दिया कि प्रकृति से बढ़कर कुछ नहीं। यही सर्वश्रेष्ठ और सर्वशक्तिमान है। भारत की जीवनशैली का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा उसकी जल व वायु से संबंधित है। यह हमारी सनातन समझ रही है। जैसे ही महामारी ने मानवता को आंख दिखानी शुरू की, हम प्रकृति की शरण में गए। उसके रक्षाकवच से हम सुरक्षित हुए तो पूरी दुनिया ने हमारा अनुसरण किया और खान-पान से लेकर अपनी हर जरूरत के लिए प्रकृति की गोद में जा बैठी।

क्षणिक समय के लिए लगे लाकडाउन ने आसमानी छटा पर प्रदूषण के ग्रहण को छांट डाला। हवा तो सुधरी ही, गगन भी नीला दिखने लगा। कम आयु के किशोरों के जीवनकाल का यह पहला मौका था जब उन्हें किताबों में लिखा आसमानी नीला रंग परिलक्षित हुआ। इंसानी विचरण कम होते ही जीव-जंतु सड़कों और रिहायशी इलाकों में टहलने लगे। भाव निर्विघ्न था। इंसान इन्हें किसी अनहोनी की तरह देख रहा था। भारत के गांव सदियों पहले अपने आप में आत्मनिर्भर थे। उनकी जो भी आवश्यकताएं होती थीं उनकी आपूर्ति स्थानीय संसाधनों से ही होती थी।

ऐसी आत्मनिर्भरता दो बड़े उद्देश्यों की आपूर्ति भी करती है जिसमें आर्थिक व पारिस्थितिकी भी जुड़ी है। बीत रहे वर्ष से सबक सीखे लोगों के आचार-विचार और व्यवहार में आया बदलाव इस क्षेत्र में भी उम्मीदें जगाने वाला है। पिछले 2-3 दशकों से लगातार शहरों में भीड़ की बाढ़ से हवा प्रदूषित हो रही है। अगर गांव के लोग आत्मनिर्भर होंगे तो शहरों पर दबाव कम पड़ेगा। इससे वहां का भी प्राकृतिक संसाधन संतुलित रहेगा। संसाधनों पर आधारित खासतौर पर खेतीबाड़ी के नये प्रयोगों से हम भारत की दिशा बदल देंगे। आने वाले समय में दुनिया का सबसे बड़ा उद्योग खेतीबाड़ी ही होने वाला है। 

प्रकृति के साथ तारतम्य बैठाने वाले खेतीबाड़ी से जुड़े उद्योगों का ही भविष्य सुनहरा होगा। आपदा के इस साल ने हमें बता दिया है कि प्रकृति और पर्यावरण ही हमारे प्रतिपालक हैं। लिहाजा पर्यावरण और उसके संरक्षण से जुड़ी उम्मीदें नए साल में ज्यादा विस्तार लेंगी। हरियाली झूमेगी, जैव विविधता गाएगी और पारिस्थितिकी हमारी आर्थिकी को मजबूती देगी।

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