'बीज बचाओ आंदोलन' के संयोजक विजय जड़धारी ने बिना खेत जोते तैयार की गेहूं की फसल

बीज बचाओ आंदोलन के संयोजक विजय जड़धारी ने अपने खेतों में बिना हल चलाए गेहूं की फसल तैयार की है और इससे बंपर उत्पादन मिलने की भी उम्मीद है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 07 May 2020 12:50 PM (IST) Updated:Thu, 07 May 2020 03:58 PM (IST)
'बीज बचाओ आंदोलन' के संयोजक विजय जड़धारी ने बिना खेत जोते तैयार की गेहूं की फसल
'बीज बचाओ आंदोलन' के संयोजक विजय जड़धारी ने बिना खेत जोते तैयार की गेहूं की फसल

रघुभाई जड़धारी, चंबा (टिहरी)। जुताई और खाद के बिना फसल अच्छा उत्पादन दे, इस बात पर सहज विश्वास तो नहीं होता, लेकिन ऐसा संभव कर दिखाया 'बीज बचाओ आंदोलन' के संयोजक विजय जड़धारी ने। उन्होंने अपने खेतों में बिना हल चलाए गेहूं की फसल तैयार की है और इससे बंपर उत्पादन मिलने की भी उम्मीद है। उत्तराखंड में अपनी तरह का यह पहला प्रयोग है और इसे नाम दिया गया है 'जीरो बजट' खेती।

बिना जुताई किए गेहूं की फसल की उगाई : टिहरी जिले के ग्राम जड़धार (चंबा) निवासी विजय जड़धारी ने इस बार ग्राम नागणी स्थित अपने खेतों में नया प्रयोग करते हुए बिना जुताई (हल चलाए बिना) किए गेहूं की फसल उगाई है। फसल पककर तैयार है और जल्द उसकी कटाई की जाएगी। जड़धारी बताते हैं कि उन्होंने बीते नवंबर में धान की फसल लेने के बाद खाली हुए खेतों में गेहूं की बुआई की और फिर खेतों को धान के पराली से ढक दिया। खास बात यह कि उन्होंने खेतों की जुताई नहीं की। कुछ समय बाद धान का पराली खेतों में ही सड़ गई और गेहूं अंकुरित हो गए। वर्तमान में उनके खेतों में गेंहू की फसल लहलहा रही है। फसल को देखकर लग रहा है कि नए तरीके से की गई खेती से इस बार बंपर उत्पादन मिलेगा।

जड़धारी बताते हैं कि उन्होंने प्रयोग के तौर पर करीब पांच नाली (10800 वर्ग फीट) सिंचित भूमि में गेंहू की फसल उगाई है। यह प्रयोग सफल रहा, इसलिए अब वह अन्य किसानों को भी इस तरीके से गेहूं की खेती करने के गुर सिखाएंगे। सबसे अच्छी बात यह कि प्रतिकूल मौसम का भी उनकी फसल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

ऐसे होती है बिना जुताई के खेती : जड़धारी के अनुसार नए तरीके से गेहूं की फसल उगाने के लिए खाली खेत में बीज डाल दिए जाते हैं। इसके लिए खेत में हल नहीं लगाया जाता। सिर्फ खेत में उगे खरपतवार, घास आदि को ही हटाया जाता है। बीज बोने के बाद धान की पराली से खेत को पूरी तरह ढक दिया जाता है। कुछ समय बाद पराली सड़ जाती है और गेहूं अंकुरित हो जाते हैं। सड़ी हुई पराली खाद का काम करती है। कुछ माह बाद फसल तैयार हो जाती है। जिले में अपनी तरह का यह पहला प्रयोग है, जो सफल रहा है। बताया कि वर्तमान में लोग बैल नहीं पाल रहे हैं। ऐसे में बिना हल चलाए खेती करने का यह प्रयोग भविष्य के लिए उपयोगी साबित हो सकता है। इसे 'जीरो बजट' खेती भी कह सकते हैं।

भविष्य की उम्मीद प्रकृति के अनुरूप खेती : खेती में किए गए जड़धारी के इस प्रयोग की औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय भरसार के रानीचौरी परिसर के वैज्ञानिक डॉ. राजेश बिजल्वाण ने भी सराहना की है। उन्होंने कहा कि यह तरीका प्रकृति के अनुरूप खेती करने का है। अच्छी बात यह कि इसमें कोई लागत भी नहीं आती। पहाड़ के लिए यह प्रयोग वरदान साबित हो सकता है।

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