इस दिसंबर में रिकॉर्ड तोड़ ठंड पड़ने के पीछे जानें क्‍या हैं खास वजह, नहीं मिलेगी जल्‍द राहत

देश के उत्‍तर भारत में इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है। इसकी वजह से कई जगहों पर जनजीवन तक अस्‍त व्‍यस्‍त हो गया है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Sun, 29 Dec 2019 05:03 PM (IST) Updated:Tue, 31 Dec 2019 01:49 AM (IST)
इस दिसंबर में रिकॉर्ड तोड़ ठंड पड़ने के पीछे जानें क्‍या हैं खास वजह, नहीं मिलेगी जल्‍द राहत
इस दिसंबर में रिकॉर्ड तोड़ ठंड पड़ने के पीछे जानें क्‍या हैं खास वजह, नहीं मिलेगी जल्‍द राहत

नई दिल्‍ली [एजेंसी]। पूस की रात अपनी सर्दी के लिए जानी जाती हैं। लेकिन इस बार रातों के साथ दिन भी सर्दी का रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं। जनजीवन सिकुड़ गया है। अलबत्ता तो घर में ही ठंड लग रही है, ऐसे में बहुत जरूरी होने पर ही लोग बाहर निकल रहे हैं। दो लोगों के मिलने पर बातचीत की शुरुआत सर्दी के प्रकोप से ही हो रही है। सोशल मीडिया पर भी इसकी ही चर्चाएं छिड़ी हुई हैं। ऐसे में इस बार कई सालों का रिकॉर्ड तोड़ रही सर्दी की वजहों पर पेश है एक नजर:

10 डिग्री से नीचे तापमान अमूमन प्रति वर्ष दिसंबर के दूसरे सप्ताह से जनवरी के दूसरे सप्ताह तक उत्तर एवं उत्तर पश्चिमी भारत में कड़ाके की ठंड पड़ती है। कुछ स्थानों पर तापमान दो से 4 डिग्री तक गिर जाता है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी यूपी में दिसंबर महीने में अधिकतम तापमान 16 से 18 डिग्री से अधिक नहीं पहुंचता। दिल्ली, उत्तरी राजस्थान का तापमान इस महीने में 20 से 22 के आसपास रहता है। लेकिन इस बार अधिकांश क्षेत्रों में तापमान 10 डिग्री से भीनीचे चला गया है।

कितनी सर्द है यह ठंड

सर्दी की तीव्रता तय करने के लिए मौसम विभाग के कुछ पैमाने हैं। दिन में जब अधिकतम तापमान सामान्य से कम से कम 4.5 डिग्री सेल्सियस कम हो तो उसे ठंडा दिन माना जाता है। लेकिन जब यह गिरावट कम से कम 6.5 डिग्री हो जाए तो इसे गंभीर सर्दी की स्थिति कहते हैं।

1901 के बाद इतनी सर्द रही दिल्ली

27 दिसंबर तक दिल्ली में औसत अधिकतम तापमान 20 से कम ही रहा। दिल्ली में 118 वर्षों का रिकार्ड टूट गया है। इतने दिनों में ऐसा चार बार ही हुआ है। मौसम विभाग का कहना है कि दिल्ली के लिए 1901 से अबतक का दूसरा सबसे ठंडा महीना दिसंबर है। 1901 के दिसंबर में यहां का अधिकतम औसत तापमान 17.3 था। दिल्ली में 14 से 27 दिसंबर के बीच लगातार 14 दिन काफी ठंडे रहे। 1997 के बाद से यह सबसे लंबी अवधि है। उस वर्ष लगातार 13 दिन शीतलहर की चपेट में रहे।

स्थिति अस्वाभाविक नहीं है

मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह की सर्दी में कुछ भी असामान्य नहीं है। सामान्यत: उत्तर और उत्तरपूर्व भारत में पश्चिमी हिस्से और पश्चिमी विक्षोभ की वजह से ठंडी हवाएं आती हैं। पश्चिमी विक्षोभ भूमध्यसागर से नमीयुक्त हवा लेकर आता है। इस वजह से उत्तरी और उत्तर पश्चिमी हिस्से में बारिश भी होती है। ठंड की तीव्रता जम्मू कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और आसपास के क्षेत्र की बर्फवारी पर भी निर्भर करती है। ये स्थितियां हर वर्ष समान नहीं रहतीं। बदलती रहती हैं। इसी के हिसाब से ठंड भी कम या ज्यादा पड़ती है।

बहुत नीचे स्तर पर बनने वाले बादल

भारत और पाकिस्तान के बड़े भूभाग में निचले स्तर पर छाये घने बादलों ने भी मौसम को सर्द करने में अहम भूमिका निभाई है। इसी वजह से तापमान में इतनी गिरावट दर्ज की जा रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार सिंधु-गंगा के मैदानी भूभाग में ऐसे बादलों का बनना चकित करता है। 1997 से ही ऐसे बादल देखे जा रहे हैं। ये बादल तीन सौ से चार सौ मीटर की ऊंचाई पर बनते हैं। ये सूर्य की रोशनी को व्यापक स्तर पर रोक देते हैं। इसका नतीजा असामान्य ठंड के रूप में सामने आता है।

प्रचंड सर्दी की वजह

जलवायु परिवर्तन: मौसम विज्ञानियों के अनुसार दिसंबर में ऐसी असामान्य सर्दी पड़ने की वजहों में से एक जलवायु परिवर्तन भी है। इसके चलते पूरी दुनिया में लू और शीतलहर की असामान्य हालत पैदा हुई है। आने वाले समय में स्थिति और विषम होगी। भारत के अलग-अलग इलाकों में बेमौसम बारिश से मौसम विज्ञानी भी हैरान थे। वैज्ञानिकों का कहना है कि अनिश्चितता की स्थिति ऐसी हो गई कि मौसम को भांपना मुश्किल हो गया है। इसके कारण लोगों को भी परेशानी झेलनी पड़ रही है।

पश्चिमी विक्षोभ: सर्दी की एक वजह यह भी है। अक्सर सामान्य से गंभीर पश्चिमी विक्षोभ की स्थितियां बन रही हैं। इसके अलावा उत्तर पश्चिमी की तरफ से हवाएं काफी नीचे के स्तर से बहने के कारण ठंड में इजाफा होता गया। इसके साथ दिसंबर में हर पश्चिमी विक्षोभ के बाद पैदा हुए धुंध, कुहासा और बारिश ने इसे बढ़ाने का काम किया।

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