बच्चों की दर्दभरी 'खामोशी', तीन साल में चाइल्ड हेल्पलाइन पर आए 1.36 करोड़ 'साइलेंट कॉल'

चाइल्ड हेल्पलाइन पर लगातार साइलेंट कॉल बढ़ रही हैं। इसी से आप अंदाजा लगा सकते है कि बाल शोषण व बाल अपराध का ग्राफ किस तेजी से बढ़ रहा है।

By Nancy BajpaiEdited By: Publish:Sat, 25 Aug 2018 10:18 AM (IST) Updated:Sat, 25 Aug 2018 10:42 AM (IST)
बच्चों की दर्दभरी 'खामोशी', तीन साल में चाइल्ड हेल्पलाइन पर आए 1.36 करोड़ 'साइलेंट कॉल'
बच्चों की दर्दभरी 'खामोशी', तीन साल में चाइल्ड हेल्पलाइन पर आए 1.36 करोड़ 'साइलेंट कॉल'

नई दिल्ली (जेएनएन)। चाइल्ड हेल्पलाइन पर लगातार 'साइलेंट कॉल' बढ़ रही हैं। इसी से आप अंदाजा लगा सकते है कि बाल शोषण व बाल अपराध का ग्राफ किस तेजी से बढ़ रहा है। बच्चों की सुरक्षा को लेकर यह गंभीर स्थिति का परिचायक है। पिछले तीन सालों में 1098 नंबर (चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर) पर मदद के लिए तीन करोड़ से भी ज्यादा कॉल्स आई हैं, जिसमें से 1.36 करोड़ 'साइलेंट कॉल्स ' थीं।

क्या होती हैं 'साइलेंट कॉल्स '?

'साइलेंट कॉल' मतलब मूक कॉल। साइलेंट कॉल उन कॉल्स को कहते हैं, जिनमें कॉलर बात नहीं करता है, बल्कि उस समय बैकग्राउंड में जो हो रहा होता है उसकी ध्वनि सुनाई देती है। इसका मतलब होता है कि उधर से बात करने वाला संकट में है, लेकिन बोलने की स्थिति में नहीं है और मदद चाहता है।

...ताकि कॉलर का विश्वास जीता जा सके

चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन की हरलीन वालिया कहती हैं, 'इन मूक कॉलों को 1098 के प्रबंधन की ओर से काफी गंभीरता से लिया जाता है।' आंकड़ों से पता चला है कि 2015-16 में मूक कॉल की संख्या 27 लाख से बढ़कर 2016-17 में 55 लाख से अधिक हो गई है। वालिया ने बताया कि 'साइलेंट कॉल' के मामले में हेल्पलाइन पर मौजूद शख्स को यह निर्देश दिए गए हैं कि वह कॉलर से इस तरह से बात करे, ताकि उसमें विश्वास पैदा हो और वह अपनी परेशानी आपसे साझा कर सके। 'साइलेंट कॉलर्स' ज्यादातर बच्चे या फिर युवा होते हैं, जो दोबारा फोन कर सकते हैं और किसी परेशानी या संकट में फंसे बच्चे की जानकारी किसी माध्यम से दे सकते हैं। वालिया ने बताया, 'ऐसा बहुत कम ही होता है कि जब बच्चा पहली बार में ही अपनी परेशानी बता सके। ऐसी स्थिति में काउंसलर उससे बात करके उस में विश्वास पैदा करता है। इस तरह काउंसलर की भी जिम्मेदारी होती है कि वह उस परिस्थिति में कॉलर के मन में विश्वास पैदा करने की कोशिश करे।'

कई बार इमोशनल सपोर्ट के लिए भी आते हैं कॉल 

सबसे दिलचस्प बात यह है कि कई कॉल इमोनशल सपोर्ट के लिए भी आते हैं। इसमें तनावग्रस्त परिवार की परिस्थिति जैसे कि पैरेंट्स का अलग होना और परिवार के अलग होने की समस्या को लेकर किए गए कॉल भी शामिल हैं। 3.4 करोड़ कॉल्स में से हेल्पलाइन ने केवल छह लाख मामलों में हस्तक्षेप किया है। यह आकंड़ा मदद के लिए फोन करने वालों की तुलना में बहुत छोटा है। इससे यह पता चलता है कि बहुत से बच्चों को मदद की जरूरत है। डाटा से पता चलता है कि मदद के लिए उठाए गए कदम (हस्तक्षेप) की संख्या पहले की तुलना में बढ़ी है।

  साल     कितने मामलों में हस्तक्षेप
    2015-16     1.7 लाख
    2016-17    2.1 लाख 
  2017-18    2.3 लाख

बता दें कि इन छह लाख मामलों में से दो लाख से ज्यादा दुर्व्यवहार से सुरक्षा (Protection for Abuse) की श्रेणी के थे। इस कारण की वजह से कम से कम 81,147 कॉलर्स ने अकेले 2017-18 के दौरान मदद मांगी है। हेल्पलाइन बाल संरक्षण सेवा योजना के दायरे में आती है, इसे महिला और बाल विकास मंत्रालय और एनजीओ चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन के माध्यम से लागू किया गया है जो जिलों में पार्टनर के रूप में कार्य करता है, ताकि जमीनी स्तर पर बच्चों तक पहुंचा जा सके। कॉल से अलग जहां हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है, सभी कॉलों को ब्लैंक, क्रैंक और अपमानजनक समेत अलग श्रेणी में रखा जाता है। जबकि मूक कॉल कैटगोरी में, बच्चे या वयस्क बोलने या फिर मदद मांगने में बारे में अपने मन को मना रहे होते हैं।

तीन सालों में 66,000 से अधिक कॉलों को किया हैंडल 

पिछले तीन सालों में हेल्पलाइन द्वारा 66,000 से अधिक कॉलों को हैंडल किया गया है, जहां कॉलर ने भावनात्मक समर्थन (इमोशनल सपोर्ट) और मार्गदर्शन मांगा। 2015-16 में इस तरह की कॉल 17,828 से बढ़कर अगले वर्ष 22, 9 26 होगई। 2017-18 में इसकी संख्या 25,724 पहुंच गई।

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