कोयला घोटाले पर सरकार के झूठ का पर्दाफाश

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। कोयला घोटाले ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी पूरी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। कोयले की कालिख से सरकार और सीबीआइ दोनों का मुंह धुंआ हो गया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने दोनों के ही झूठ को पकड़ लिया है। जांच में सरकार की दखलंदाजी से मामला सीबीआइ की निष्पक्षता और स्वायत्तता तक पहुंच गया है। शीर्ष अदालत ने कानून मंत्री, कोयला मंत्रालय व प्रधानमंत्री कार्यालय [पीएमओ] के अधिकारियों को स्थिति रिपोर्ट दिखाने और यह बात कोर्ट से छुपाने पर गहरी नाराजगी जताई। कोर्ट ने पूरे प्रकरण को चिंताजनक बताते हुए सीबीआइ से उसके कामकाज और राजनीतिक आकाओं से जांच साझा करने के क्षेत्राधिकार व नियम कानूनों पर जवाब-तलब किया है। कोर्ट ने कहा कि अब सीबीआइ को राजनीतिक दखल से मुक्त करना हमारी प्राथमिकता होगी।

By Edited By: Publish:Tue, 30 Apr 2013 10:16 AM (IST) Updated:Tue, 30 Apr 2013 10:05 PM (IST)
कोयला घोटाले पर सरकार के झूठ का पर्दाफाश

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। कोयला घोटाले ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी पूरी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। कोयले की कालिख से सरकार और सीबीआइ दोनों का मुंह धुंआ हो गया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने दोनों के ही झूठ को पकड़ लिया है। जांच में सरकार की दखलंदाजी से मामला सीबीआइ की निष्पक्षता और स्वायत्तता तक पहुंच गया है। शीर्ष अदालत ने कानून मंत्री, कोयला मंत्रालय व प्रधानमंत्री कार्यालय [पीएमओ] के अधिकारियों को स्थिति रिपोर्ट दिखाने और यह बात कोर्ट से छुपाने पर गहरी नाराजगी जताई। कोर्ट ने पूरे प्रकरण को चिंताजनक बताते हुए सीबीआइ से उसके कामकाज और राजनीतिक आकाओं से जांच साझा करने के क्षेत्राधिकार व नियम कानूनों पर जवाब-तलब किया है। कोर्ट ने कहा कि अब सीबीआइ को राजनीतिक दखल से मुक्त करना हमारी प्राथमिकता होगी।

शीर्ष अदालत ने कहा, 'सीबीआइ को मंत्री से कोई निर्देश नहीं लेना है। उसने हमारा विश्वास तोड़ा है। उसकी जांच की विश्वसनीयता संदेह में आ गई है।' मंगलवार को सीबीआइ ने कानून मंत्री और अधिकारियों को रिपोर्ट दिखाने के बाद रिपोर्ट में किए गए बदलाव और मूल रिपोर्ट का पूरा ब्योरा सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंप दिया। सुप्रीम कोर्ट के ताजा रुख के बाद संप्रग सरकार के लिए यह तीसरा मौका है, जब शीर्ष अदालत से लेकर संसद तक उसकी फजीहत हो रही है। इससे पहले 2जी घोटाला और सीवीसी पीजे थामस की नियुक्ति के मामले में भी सरकार को फजीहत झेलनी पड़ी थी।

मंगलवार को न्यायमूर्ति आरएम लोधा, न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर व न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की पीठ ने सीबीअंाइ निदेशक से हलफनामे में अपने पांच सवालों के जवाब के साथ ही चल रही जांच की रिपोर्ट साझा करने के बारे में जांच एजेंसी के मैनुअल और दिशा-निर्देश में दी गई प्रक्रिया बताने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने रिपोर्ट देखने वाले कोयला मंत्रालय व पीएमओ के संयुक्त सचिव स्तर के दोनों अधिकारियों के नाम भी पूछे हैं। इसके अलावा जांच में लगे डीआइजी व एसपी रैंक के अधिकारियों का नाम और ब्योरा भी मांगा है। सीबीआइ निदेशक को 6 मई तक हलफनामा दाखिल करना होगा। मामले की अगली सुनवाई 8 मई को होगी।

इससे पहले कोर्ट ने पिछले दिनों के घटनाक्रम पर चिंता जताते हुए कहा कि सुनवाई तो कोयला ब्लॉक आवंटन में हुई अनियमितताओं पर चल रही थी, लेकिन ताजा घटनाक्रम ने मामले का रुख मोड़ दिया है। अब वे पहले सीबीआइ की स्वायत्तता पर सुनवाई करेंगे। सीबीआइ जांच हर हाल में निष्पक्ष और स्वतंत्र होनी चाहिए। उस पर किसी भी तरह का बाहरी दबाव नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई रिपोर्ट देखने की इच्छा जताता भी है तो सीबीआइ जांचकर्ता है और वह स्वतंत्र होकर निर्णय ले सकती है। जांच एजेंसी को सरकार की कठपुतली बने रहने के बजाय भरोसा हासिल करने के लिए कुछ करना होगा। कोर्ट ने कहा, 'पंद्रह साल पहले विनीत नारायण मामले में सीबीआइ की स्वायत्तता के लिए दिए गए फैसले को लागू किया जाए और उस फैसले में जो पहलू कम स्पष्ट है उस पर भी विचार किया जा सकता है।' सीबीआइ के वकील यूयू ललित ने कोर्ट से कहा वह सभी सवालों का जवाब 6 मई को हलफनामे में देंगे।

कौन सच बोल रहा रावल या वाहनवती

नई दिल्ली। कौन सच बोल रहा है यह तय करना मुश्किल है? एडिशनल सॉलिसिटर जनरल हरिन रावल [जिन्होंने मंगलवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया] ने अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती को लिखे पत्र में आरोप लगाया है कि अटॉर्नी जनरल ने सीबीआइ की स्टेटस रिपोर्ट देखी थी। जबकि, अटॉर्नी जनरल ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि न तो उन्होंने स्टेटस रिपोर्ट देखी थी और न ही रिपोर्ट का ड्राफ्ट देखा था।

वाहनवती ने यह बात कोयला घोटाला मामले में याचिकाकर्ता संस्था के वकील प्रशांत भूषण की दलील के जवाब में कही। प्रशांत भूषण ने कहा, कानून मंत्री ने रिपोर्ट का ड्राफ्ट देखा था। अटॉर्नी जनरल कह रहे हैं कि उन्होंने रिपोर्ट नहीं देखी ऐसे में अटॉर्नी जनरल ने भी ड्राफ्ट ही देखा होगा। इस पर वाहनवती ने खड़े होकर कहा कि उन्होंने न तो रिपोर्ट देखी और न ही उसका ड्राफ्ट देखा था।

लेकिन, रावल का उन्हें एक दिन पहले लिखा गया पत्र उनके बयान से उलट कहानी कहता है। पत्र में इसका जिक्र है कि अटॉर्नी जनरल ने स्टेटस रिपोर्ट देखी थी और उन्होंने ही रावल को कानून मंत्री के दफ्तर में बुलाया था। रावल ने पत्र में पूरे घटनाक्रम का सिलसिलेवार ब्योरा देते हुए कहा है कि न सिर्फ रिपोर्ट देखी गई बल्कि अटॉर्नी जनरल और कानून मंत्री ने कुछ बदलाव के भी सुझाव दिए, जिनमें से कुछ को सीबीआइ ने स्वीकार कर लिया था।

पत्र में यह भी लिखा है कि वह बार-बार कोर्ट में कही गई अपनी बात दोहराते रहे कि सक्षम अधिकारी की ओर से हलफनामा दाखिल होना चाहिए। लेकिन, हलफनामे की जगह सीलबंद लिफाफे में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का फैसला कर लिया गया और वे मूकदर्शक थे। अटॉर्नी जनरल के कहने पर ही उन्होंने कोर्ट के समक्ष मामले का जिक्र करते हुए हलफनामे के बजाए सीलबंद कवर में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने की अनुमति मांगी थी और उस समय कोर्ट में अटॉर्नी जनरल भी मौजूद थे।

रावल का आरोप है कि स्टेटस रिपोर्ट देखने के बावजूद 12 मार्च की सुनवाई में अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट में रिपोर्ट नहीं देखे जाने की बात कही जिसके कारण उन्हें (रावल) भी शर्मिदा होना पड़ा और कोर्ट में वही स्टैंड लेना पड़ा जो अटॉर्नी जनरल ने लिया था। रावल ने इस पत्र में यह भी कहा है कि अटॉर्नी जनरल के कारण उन्हें परेशानी झेलनी पड़ी और उन्हें [रावल] बलि का बकरा बनाया गया।

मंगलवार को अटॉर्नी जनरल के कोर्ट में दिए गए बयान के बाद रावल ने संपर्क करने पर दैनिक जागरण से कहा कि उन्होंने पत्र में पूरा ब्योरा दिया है और उसमें जो भी कहा है वह सच है।

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