दाखिले के मामले में नहीं विचार कर सकता कैट

कैट ने याचिका खारिज करते हुए 15 पेज के आदेश में कहा कि एम्स के प्रवेश प्रास्पेक्टस में जो योग्यता शर्तें दी गई हैं वो पीजी कोर्स में दाखिले के संबंध में हैं।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Publish:Mon, 26 Jun 2017 10:21 PM (IST) Updated:Mon, 26 Jun 2017 10:21 PM (IST)
दाखिले के मामले में नहीं विचार कर सकता कैट
दाखिले के मामले में नहीं विचार कर सकता कैट

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सेन्ट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्युनल (कैट) दाखिले से संबंधी मामलों पर सुनवाई नहीं कर सकता भले ही उस दाखिले के साथ नौकरी की शर्ते क्यों न जुड़ी हों। कैट ने एम्स में डेन्टल के पीजी कोर्स में प्रवेश लेने वाले एक जूनियर रेजीडेंट डाक्टर की याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया। कैट ने कहा कि जूनियर रेजीडेंट नौकरी में नहीं माना जा सकता उसकी नौकरी पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में दाखिले से जुड़ी है और प्रवेश की सारी शर्तें देखने से भी साफ होता है कि नौकरी सिर्फ पढ़ाई के कोर्स के परिणाम स्वरूप है। इस तरह के विवाद एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्युनल एक्ट के प्रावधानों में नहीं आते।

कैट ने ये आदेश एमडीएस करने वाले जूनियर रेजिडेंट डाक्टर गोविन्द रावत की याचिका खारिज करते हुए सुनाया है। रावत ने एम्स के पीजी कोर्स में प्रवेश लेने के करीब एक साल बाद इस्तीफा दे दिया था। जिस पर एम्स ने नियमों का हवाला देते हुए बीच में कोर्स छोड़ने पर रावत से पांच लाख रुपये हर्जाना मांगा है।

रावत ने याचिका में एम्स का हर्जाने का आदेश रद करने की मांग की थी। साथ ही इस्तीफे को गलत बताते हुए आगे कोर्स जारी रखने का आदेश मांगा था। दूसरी ओर एम्स के वकील आरके गुप्ता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि ये विवाद नौकरी का नहीं बल्कि दाखिले का है और एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्युनल एक्ट की धारा 14 के तहत कैट को दाखिले से जुड़े विवाद सुनने का अधिकार ही नहीं है। कैट सिर्फ नौकरी और भर्ती से जुड़े विवाद ही सुन सकता है।

कैट ने याचिका खारिज करते हुए 15 पेज के आदेश में कहा कि एम्स के प्रवेश प्रास्पेक्टस में जो योग्यता शर्तें दी गई हैं वो पीजी कोर्स में दाखिले के संबंध में हैं न कि नौकरी के संबंध में। चयन का तरीका भी पीजी प्रवेश के लिए उम्मीदवार की काबिलियत आंकना है। यहां तक कि जूनियर रेजीडेंट के लिए जो वेतन प्रस्तावित है वो भी तीन साल के लिए है जो कि पीजी कोर्स की अवधि है। कैट ने कहा कि पीजी कोर्स में प्रवेश एकेडेमिक एक्सरसाइज है। रेजिडेंट डाक्टर की अवधि सिर्फ कोर्स की परिणति है। अगर उम्मीदवार कोर्स जारी रखने में असमर्थ है तो उसकी नौकरी अपने आप खत्म हो जाती है। ये नौकरी नही है जिसके लिए उम्मीदवार का चयन हुआ हो। पीजी कोर्स में दाखिले से संबंधित विवाद को नौकरी विवाद नहीं कहा जा सकता जिसे धारा 14 के तहत कैट सुन सकती हो।

क्या है मामला

एम्स ने 2015 में मेडिकल के पीजी कोर्स में दाखिले का नोटिस निकाला। नोटिस में अन्य शर्तो के साथ साफ कहा गया था कि अगर कोई उम्मीदवार दाखिला लेने के छह महीने के भीतर कोर्स छोड़ता है तो उसे एक लाख रुपये मुआवजा देना होगा और अगर कोई छह महीने के बाद बीच में कोर्स छोड़ता है तो उसे पांच लाख रुपये हर्जाना देना होगा।

गोविन्द रावत ने 7 जनवरी 2015 को डेंटल का प्रोस्थोडोन्टिक्स कोर्स ज्वाइन किया। इसके बाद 21 जनवरी 2016 को उसने इस्तीफा भेजकर कोर्स जारी रखने में असमर्थता जताई। इस बीच उसने मध्यप्रदेश भिंड में जिला अस्पताल में नौकरी ज्वाइन कर ली। एम्स ने इस्तीफा स्वीकार करते हुए बीच में कोर्स छोड़ने पर पांच लाख रुपए हर्जाना मांगा। जिसके खिलाफ रावत ने कैट में याचिका की थी।

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