अगले हफ्ते होगा अयोध्या पार्ट टू का फैसला, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद मुकदमे ने पकड़ी रफ्तार

सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2017 में दो साल के भीतर मुकदमा निपटा कर फैसला सुनाने का आदेश दिया था। इसके बाद तीन बार समय बढ़ाया और अंतिम तिथि 30 सितंबर 2020 तय की थी। इसी तारीख पर फैसला आएगा जिसमें अब कुछ ही दिन बचे हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Thu, 24 Sep 2020 05:54 PM (IST) Updated:Thu, 24 Sep 2020 05:54 PM (IST)
अगले हफ्ते होगा अयोध्या पार्ट टू का फैसला, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद मुकदमे ने पकड़ी रफ्तार
तीन बार समय बढ़ाया और अंतिम तिथि 30 सितंबर 2020 तय की थी।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। अरसे से अटके राम जन्मभूमि मुद्दा का हल निकल आया और भव्य मंदिर का शिलान्यास हो चुका है। लेकिन अयोध्या में ढांचा विध्वंस मामले में 28 साल बाद अब अगले हफ्ते 30 सितंबर या उससे पहले फैसला आएगा। यह मुकदमें के निपटारे और फैसला सुनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की तय समयसीमा की अंतिम तारीख है। इस लंबे खिचे मुकदमें ने वास्तविक रफ्तार तब पकड़ी जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे निबटाने की समयसीमा तय की। सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2017 में दो साल के भीतर मुकदमा निपटा कर फैसला सुनाने का आदेश दिया था। इसके बाद तीन बार समय बढ़ाया और अंतिम तिथि 30 सितंबर 2020 तय की थी। इसी तारीख पर फैसला आएगा जिसमें अब कुछ ही दिन बचे हैं।

मुकदमें पर अगर निगाह डालें तो घटना की पहली प्राथमिकी उसी दिन 6 दिसंबर 1992 को श्रीराम जन्मभूमि सदर फैजाबाद पुलिस थाने के थानाध्यक्ष प्रियंबदा नाथ शुक्ल ने दर्ज कराई थी। दूसरी प्राथमिकी भी राम जन्मभूमि पुलिस चौकी के प्रभारी गंगा प्रसाद तिवारी की थी। मामले में विभिन्न तारीखों पर कुल 49 प्राथमिकी दर्ज कराई गईं। केस की जांच बाद में सीबीआइ को सौंप दी गई। सीबीआइ ने जांच करके 4 अक्टूबर 1993 को 40 अभियुक्तों के खिलाफ पहला आरोपपत्र दाखिल किया और 9 अन्य अभियुक्तों के खिलाफ 10 जनवरी 1996 को एक और आरोपपत्र दाखिल किया। सीबीआइ ने कुल 49 अभियुक्तों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया। 28 साल में 17 अभियुक्तों की मृत्यु हो गई अब सिर्फ 32 अभियुक्त बचे हैं जिनका फैसला आना है।

2001 में हाईकोर्ट का आया फैसला

केस के लंबे समय तक लंबित रहने के पीछे भी वही कारण थे जो हर हाईप्रोफाइल केस में होते हैं। अभियुक्तों ने हर स्तर पर निचली अदालत के आदेशों और सरकारी अधिसूचनाओं को उच्च अदालत में चुनौती दी जिसके कारण मुख्य केस की सुनवाई में देरी होती रही। अभियुक्त मोरेसर सावे ने हईकोर्ट में याचिका दाखिल कर मामला सीबीआइ को सौंपने की अधिसूचना को चुनौती दी। कई साल याचिका लंबित रहने के बाद 2001 में हाईकोर्ट का फैसला आया जिसमें अधिसूचना को सही ठहराया गया। इस बीच अभियुक्तों ने आरोपतय करने से लेकर कई मुद्दों पर हाइकोर्ट के दरवाजे खटखटाए जिससे देरी हुई।

सीबीआइ को लड़नी पड़ी लंबी कानूनी लड़ाई

पहले यह मुकदमा दो जगह चल रहा था। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित आठ अभियुक्तों के खिलाफ रायबरेली की अदालत में और बाकी लोगों के खिलाफ लखनऊ की विशेष अदालत में। रायबरेली में जिन आठ नेताओं का मुकदमा था उनके खिलाफ साजिश के आरोप नहीं थे। उन पर साजिश में मुकदमा चलाने के लिए सीबीआइ को लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी और अंत में सुप्रीम कोर्ट के 19 अप्रैल 2017 के आदेश के बाद 30 मई 2017 को अयोध्या की विशेष अदालत ने उन पर भी साजिश के आरोप तय किये और सारे अभियुक्तों पर एक साथ संयुक्त आरोपपत्र के मुताबिक एक जगह लखनऊ की विशेष अदालत में ट्रायल शुरू हुआ।

इस वजह से मुकदमे ने पकड़ी रफ्तार

अप्रैल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने आठ नेताओं के खिलाफ ढांचा ढहने की साजिश में मुकदमा चलाने को हरी झंडी देते समय और रायबरेली का मुकदमा लखनऊ स्थानांतरित करते वक्त ही केस में हो चुकी अत्यधिक देरी पर क्षोभ व्यक्त करते हुए साफ कर दिया था कि नये सिरे से ट्रायल शुरू नहीं होगा जितनी गवाहियां रायबरेली में हो चुकी हैं उसके आगे की गवाहियां लखनऊ में होंगी। मामले में रोजाना सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट का यह वही आदेश था जिससे इस मुकदमें ने रफ्तार पकड़ी। कोर्ट ने कहा था कि बेवजह का स्थगन नहीं दिया जाएगा और सुनवाई पूरी होने तक जज का स्थानांतरण नहीं होगा। इस आदेश के बाद मुकदमे की रोजाना सुनवाई शुरू हुई जिससे केस ने रफ्तार पकड़ी।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पहले जिस आदेश ने लगभग ठहरी सुनवाई को गति दी थी वह था इलाहाबाद हाईकोर्ट का 8 दिसंबर 2011 का आदेश जिसमें हाईकोर्ट ने रायबरेली के मकुदमें की साप्ताहिक सुनवाई का आदेश दिया था। लेकिन असली रफ्तार सुप्रीम कोर्ट के रोजाना सुनवाई के आदेश से आयी। इसके बावजूद मुकदमा दो साल में नहीं निबटा और सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कर रहे जज के आग्रह पर तीन बार समय सीमा बढ़ाई। 19 जुलाई 2019 को 9 महीने और 8 मई 2020 को चार महीने बढ़ा कर 31 अगस्त तक का समय दिया और अंत में तीसरी बार 19 अगस्त 2020 को एक महीने का समय और बढ़ाते हुए 30 सितंबर तक फैसला सुनाने की तारीख तय की थी।

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