ब्रिटेन के नियामकों ने एस्ट्राजेनेका कोविड वैक्सीन के प्रतिकूल असर में नसों की बीमारी को किया शामिल

डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार मेडिसिंस एंड हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी (एमएचआरए) ने गुलियन बेरी सिंड्रोम नामक दुर्लभ बीमारी को एस्ट्राजेनेका कोविड वैक्सीन के प्रतिकूल असर वाली सूची में शामिल किया है। इसके कारण प्रतिरक्षा प्रणाली उत्तेजित हो जाती है और तंत्रिका कोशिकाओं पर हमले शुरू कर देती है।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Publish:Sun, 24 Oct 2021 05:26 PM (IST) Updated:Sun, 24 Oct 2021 05:26 PM (IST)
ब्रिटेन के नियामकों ने एस्ट्राजेनेका कोविड वैक्सीन के प्रतिकूल असर में नसों की बीमारी को किया शामिल
दुनियाभर में एस्ट्राजेनिका की 59.2 करोड़ खुराकें दी जा चुकी

नई दिल्ली, आइएएनएस। ब्रिटेन के नियामकों ने एस्ट्राजेनेका कोविड वैक्सीन के प्रतिकूल असर की सूची में नसों की एक दुर्लभ बीमारी को भी शामिल कर लिया है। इसके कारण पैर, हाथ व शरीर के अन्य अंग प्रभावित होते हैं।

डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, मेडिसिंस एंड हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी (एमएचआरए) ने गुलियन बेरी सिंड्रोम नामक दुर्लभ बीमारी को एस्ट्राजेनेका कोविड वैक्सीन के प्रतिकूल असर वाली सूची में शामिल किया है। इसके कारण प्रतिरक्षा प्रणाली उत्तेजित हो जाती है और तंत्रिका कोशिकाओं पर हमले शुरू कर देती है। ज्यादातर लोग इस बीमारी से पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, लेकिन पांच में से एक को यह बीमारी लंबे समय तक परेशान कर सकती है, जबकि 20 में से एक की मौत भी हो सकती है।

गुलियन बेरी सिंड्रोम के 833 मामले आए हैं सामने

यूरोपीयन मेडिसिन एजेंसी (ईएमए) ने पिछले महीने कहा था कि दुनियाभर में एस्ट्राजेनिका की 59.2 करोड़ खुराकें दी जा चुकी हैं और इस दौरान गुलियन बेरी सिंड्रोम के 833 मामले सामने आए हैं। नियामक ने जानसन एंड जानसन की एक खुराक वाली वैक्सीन के संभावित प्रतिकूल असर को सूची में पहले ही शामिल कर लिया था। इसकी प्रौद्योगिकी एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के समान है।

मिश्रित वैक्सीन को पाया गया बहुत अधिक प्रभावी

वहीं, दूसरी ओर पिछले दिनों कोरोना वायरस के खिलाफ मिश्रित वैक्सीन को बहुत अत्यधिक प्रभावी पाया गया है। स्वीडन में कराए गए नवीनतम अध्ययन में यह सामने आया है कि जिन लोगों को पहली डोज आक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की डोज लगाई गई थी और दूसरी डोज उन्हें एमआरएनए की दी गई तो नतीजे बेहतर मिले। आक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की ही दोनों डोज लगवाने वालों की तुलना में ऐसे लोगों को संक्रमण का खतरा बहुत कम था। लैंसेट पत्रिका में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है।

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