जानिए-कैसे आया था 2G स्पेक्ट्रम घोटाले का आंकड़ा, क्यों फंसे ए राजा और कनिमोझी

2010 में भारत के महालेखाकार और नियंत्रक (कैग) की रिपोर्ट में वर्ष 2008 में आवंटित किए गए स्पेक्ट्रम पर सवाल उठाए गए। जिसमें यह सामने आया कि स्पेक्ट्रम की नीलामी की बजाए 'पहले आओ, पहले पाओ' की नीति पर लाइसेंस को बांटा गया।

By Nancy BajpaiEdited By: Publish:Thu, 21 Dec 2017 01:37 PM (IST) Updated:Thu, 21 Dec 2017 01:50 PM (IST)
जानिए-कैसे आया था 2G स्पेक्ट्रम घोटाले का आंकड़ा, क्यों फंसे ए राजा और कनिमोझी
जानिए-कैसे आया था 2G स्पेक्ट्रम घोटाले का आंकड़ा, क्यों फंसे ए राजा और कनिमोझी

नई दिल्ली (जेएनएन)। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला देश के सबसे बड़े घोटाले में से एक है, जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाया। लेकिन आज कोर्ट के फैसले ने इस घोटाले के अस्तित्व पर असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है।

2010 में भारत के महालेखाकार और नियंत्रक (कैग) की रिपोर्ट में वर्ष 2008 में आवंटित किए गए स्पेक्ट्रम पर सवाल उठाए गए। जिसमें यह सामने आया कि स्पेक्ट्रम की नीलामी की बजाए 'पहले आओ, पहले पाओ' की नीति पर लाइसेंस को बांटा गया।

2जी पर कैग रिपोर्ट
- 2011 में तत्कालीन कैग प्रमुख विनोद राय ने अपनी रिपोर्ट में 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन पर सवाल उठाए
- 2008 में आवंटित किए गए स्पेक्ट्रम में अनिमितताएं थीं: कैग
- नियमों को अनदेखा कर 'पहले आओ, पहले पाओ' पर स्पेक्ट्रम बेचे गए
- इससे सरकार को 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था
- कैग का कहना था कि अगर नीलामी से स्पेक्ट्रम आवंटित किए जाते तो सरकारी खजाने को नुकसान नहीं होता
- इस आवंटत के तहत 2जी स्पेक्ट्रम के लिए 122 लाइसेंस दिए गए थे


ए राजा पर लगे ये आरोप
इस घोटाले में तत्कालीन टेलिकॉम मंत्री ए राजा पर आरोप लगा कि उन्होंने आवंटन के नियमों में बदलाव करने के लिए टेलिकॉम कंपनियों से कमीशन लिया। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि ए राजा ने इस बदलाव के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी सलाह को भी दरकिनार करते हुए कुछ टेलिकॉम ऑपरेटर को फायदा पहुंचाने का काम किया था। आरोप में यह भी कहा गया था कि ए राजा ने लाइसेंस के लिए आवेदन की तारीख में बदलाव किया और 2008 में हुए इस आवंटन के लिए 2001 के दर से एंट्री फीस वसूली जिसके चलते केन्द्रीय खजाने को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ा। मामले की जांच कर रही सीबीआई ने सीएजी के 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपए के नुकसान से इतर 30, 984 करोड़ रुपए के नुकसान की बात कही। इसके बाद 2012 में ए राजा के कार्यकाल में आवंटित सभी टेलिकॉम लाइसेंस को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द करते हुए राजा के खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश दिया था। हालांकि इससे पहले नवंबर 2010 में ए राजा ने टेलिकॉम मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। सीबीआई की जांच के बीच राजा को फरवरी 2011 में जेल भेज दिया गया, जहां से उन्हें 15 महीने के बाद रिहाई मिल पाई।

'कनिमोझी' यह राजनीतिक गलियारों का वह नाम है, जो कल तक सिर्फ तमिलनाडु की राजनीति तक सीमित था। लेकिन 2010 में एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए के 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला के कारण यह नाम पूरे देश में चर्चित हो गया। 


कनिमोझी पर ये आरोप
डीएमके प्रमुख एम करुणानिधी की बेटी कनिमोझी पर भी 2जी घोटाले में आरोप लगा था। आरोपों के मुताबिक कनिमोझी के संबंध उस कलाइगनार टीवी से है, जिसपर 2जी आवंटन में स्वान टेलीकॉम प्राइवेट लिमिटेड से कमीशन लेने का आरोप लगा था। शाहिद बलवा और डीबी रियल्टी लिमिटेड के विनोद गोइनका स्वान टेलिकॉम के प्रमोटर थे। सीबीआई ने 2015 में कोर्ट को बताया था कि स्वान टेलिकॉम को कमीशन के फ्रंट के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि स्वान टेक्नोलॉजी की फंडिग अनिल अंबानी के रिसायंस एडीएजी से 14 सर्कल में 2जी लाइसेंस प्राप्त करने के लिए की गई थी। इसके चलते रिलायंस एडीएजी के तीन कर्मचारी- दोशी, सुरेन्द्र पिपारिया और हरि नायर को भी मामले में आरोपी बनाया गया था।


2जी घोटाला भारत का उन सबसे बड़े घोटालों में से एक रहा, जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को नुकसान पहुंचाया। जिसकी आंच तत्कालीन प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री तक जा पहुंची थी, लेकिन आज कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि अगर सभी आरोपी बरी होते हैं, तो फिर घोटाला किसने किया?

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