दागी राजनीति का दामन नहीं छोड़ रहे, बिहार चुनाव में भाग्य आजमा रहे 32 फीसद दागी प्रत्याशी

राजनीति का अपराधीकरण रोकने और दागियों को चुनाव से बाहर करने के लिए भले ही कई कानून बने और सुप्रीम कोर्ट के क्रांतिकारी आदेश आए लेकिन सच्चाई यही है कि दागी राजनीति का दामन नहीं छोड़ रहे। इसका उदाहरण बिहार विधानसभा चुनाव है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 04 Nov 2020 06:58 PM (IST) Updated:Wed, 04 Nov 2020 06:58 PM (IST)
दागी राजनीति का दामन नहीं छोड़ रहे, बिहार चुनाव में भाग्य आजमा रहे 32 फीसद दागी प्रत्याशी
दागी उम्मीदवारों की संख्या पिछले चुनाव से भी ज्यादा।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। राजनीति का अपराधीकरण रोकने और दागियों को चुनाव से बाहर करने के लिए भले ही कई कानून बने और सुप्रीम कोर्ट के क्रांतिकारी आदेश आए, लेकिन सच्चाई यही है कि दागी राजनीति का दामन नहीं छोड़ रहे। इसका उदाहरण बिहार विधानसभा चुनाव है, जिसमें इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले ज्यादा दागी मैदान में हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार भाग्य आजमा रहे 32 फीसद प्रत्याशी दागी यानी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले हैं। 25 फीसद के खिलाफ गंभीर अपराधों के मामले लंबित हैं। 2015 में यह आंकड़ा 30 और 23 फीसद था। इतना ही नहीं, बिहार चुनाव में इस बार 243 में से 217 निर्वाचन क्षेत्र यानी 89 फीसद रेड अलर्ट श्रेणी में आते हैं। यहां तीन या इससे अधिक ऐसे प्रत्याशी हैं।

एडीआर ने उम्मीदवारों के हलफनामे का विश्लेषण कर जारी की रिपोर्ट

राजनीति में अपराधियों पर आईना दिखाने वाली रिपोर्ट गैरसरकारी संस्था एडीआर ने उम्मीदवारों के हलफनामे का विश्लेषण कर जारी की है। इसी साल 13 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को उम्मीदवारों का आपराधिक ब्योरा वेबसाइट पर सार्वजनिक करने का आदेश दिया था। इसके साथ ही राजनीतिक दल अगर आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति को टिकट देते हैं तो उन्हें वेबसाइट पर यह बताने के लिए भी कहा था कि उन्होंने ऐसे व्यक्ति को टिकट क्यों दिया और बेदाग को टिकट क्यों नहीं दिया।

2015 की तुलना में इस बार आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों की संख्या बढ़ी

एडीआर के संस्थापक और ट्रस्टी जगदीप छोकर ने बताया कि 2015 की तुलना में इस बार आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों की संख्या बढ़ी है। हर पार्टी में दागी उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हुई है। चुनाव में कुल 3733 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें 3722 का एडीआर ने विश्लेषण किया है। 3722 में से 1201 आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं। 915 प्रत्याशियों के खिलाफ गंभीर मामले लंबित हैं।

दागियों को टिकट: भाजपा 70 फीसद, राजद 70 फीसद, कांग्रेस 64 फीसद, एलजेपी 52 फीसद

मुख्य दलों पर निगाह डाली जाए तो 2015 में भाजपा ने 61 फीसद दागियों को टिकट दिया था इस बार यह आंकड़ा 70 फीसद है। राजद ने पिछली बार 60 फीसद दागियों को टिकट दिया था और इस बार 70 फीसद दागियों को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने पिछली बार 56 फीसद और इस बार 64 फीसद दागियों को टिकट दिया है। एलजेपी ने पिछली बार 50 फीसद दागी उतारे थे और इस बार 52 फीसद हैं। बसपा ने पिछले चुनाव में 29 फीसद दागियों को खड़ा किया था और इस बार 37 फीसद दागियों को टिकट दिया है। सिर्फ जदयू एक मात्र दल है, जिसके दागी उम्मीदवारों के अनुपात में कमी आई है। पिछले चुनाव में जदयू ने 57 फीसद दागियों को टिकट दिया था जबकि इस बार 49 फीसद ऐसे प्रत्याशी मैदान में हैं।

पार्टियों ने टिकट देने का कारण जिताऊ उम्मीदवार बताया

कोर्ट ने कहा था कि दागियों को टिकट देने का कारण बताना होगा और जिताऊ होना कोई आधार नहीं होगा, लेकिन ज्यादातर दलों ने टिकट देने का कारण उम्मीदवार का जिताऊ होना बताया है। एक दल ने तो यह कहा कि उम्मीदवार ने कोरोना के दौरान अच्छा काम किया। एडीआर ने राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए कई सिफारिशें रिपोर्ट में की हैं।

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