Corona Effect: 121 साल की परंपरा टूटी, उदयपुर में नहीं जुटा सहेलियों का मेला
उदयपुर में लगने वाला यह मेला संभवत देश का इकलौता मेला है जिसमें पहले दिन केवल महिलाओं को ही प्रवेश मिलता है और सखियों के मेले के रूप में इसकी पहचान प्रदेश भर में है।
सुभाष शर्मा, उदयपुर। सोलह साल बाद हरियाली अमावस्या और सोमवती अमावस्या एक साथ आई हैं, लेकिन उदयपुर में कोरोना संक्रमण के चलते 121 साल पुरानी परम्परा इस बार टूट गई। इस बार उदयपुर में हरियाली अमावस्या का मेला नहीं हुआ। पिछली बार की तरह इस बार भी जिला कलक्टर ने हरियाली अमावस्या की छुट्टी की घोषणा की लेकिन सहेलियों की बाड़ी तथा फतहसागर की पाल मेलार्थियों की बिना सूनी ही रहीं। उदयपुर में लगने वाला यह मेला संभवत: देश का इकलौता मेला है, जिसमें पहले दिन केवल महिलाओं को ही प्रवेश मिलता है और सखियों के मेले के रूप में इसकी पहचान प्रदेश भर में है।
उदयपुर नगर निगम इस मेले की तैयारियां पंद्रह दिन पहले से ही शुरू कर लेता था लेकिन इस बार कोरोना महामारी की वजह से इसके रद्द किए जाने के आसार पिछले महीने से ही थे। नगर निगम की सांस्कृतिक समिति की बैठक में तय किया गया कि इस बार मेला फतहसागर की पाल तथा सहेलियों की बाड़ी में नहीं लगेगा। जहां हजारों की संख्या में लोग भाग लेते थे। इस मेले के आयोजन से नगर निगम को भी लाखों की आय होती रही है। इस साल समिति ने तय किया है कि यह मेला सांकेतिक रूप में नगर निगम परिसर में आयोजित होगा, जिसमें लहरिया प्रतियोगिता आयोजित होगी। जिसमें केवल पार्षद ही भाग लेंगे। यह प्रतियोगिता मंगलवार को आयोजित होगी।
महाराणा फतहसिंह ने की शुरूआत: इतिहास में इस मेले के बारे में लिखा है कि महाराणा फतहसिंह ने इस मेले की शुरूआत की थी। सन 1899 में महाराणा फतहसिंह महारानी के साथ देवाली तालाब (मौजूदा फतहसागर) पर घूमने निकले थे तब उन्होंने हरियाली अमावस्या पर मेले की शुरूआत की थी। उसी दौरान महारानी ने मेले में एक दिन केवल महिलाओं के प्रवेश की बात सुझाई थी, जिसे महाराणा फतहसिंह ने मंजूर कर लिया और मेले का पहला दिन सखियों के नाम कर दिया। यह परम्परा पिछले 121 साल से चलती आ रही थी।