दो साल की तलहटी पर विकास दर

अर्थव्यवस्था की रफ्तार दो साल की तलहटी पर पहुंच गई है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 की तीसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर 6.1 प्रतिशत रही है। खनन, मैन्यूफैक्चरिंग और कृषि क्षेत्र के बुरे हाल ने सरकार की दिक्कतें बढ़ा दी हैं। बजट से ठीक पहले आए अर्थव्यवस्था के इस आंकड़े ने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी पर घाटे और विकास के बीच संतुलन बिठाने का दबाव और बढ़ा दिया है। पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] की वृद्धि दर 8.3 प्रतिशत रही थी।

By Edited By: Publish:Wed, 29 Feb 2012 12:24 PM (IST) Updated:Wed, 29 Feb 2012 09:50 PM (IST)
दो साल की तलहटी पर विकास दर

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। अर्थव्यवस्था की रफ्तार दो साल की तलहटी पर पहुंच गई है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 की तीसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर 6.1 प्रतिशत रही है। खनन, मैन्यूफैक्चरिंग और कृषि क्षेत्र के बुरे हाल ने सरकार की दिक्कतें बढ़ा दी हैं। बजट से ठीक पहले आए अर्थव्यवस्था के इस आंकड़े ने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी पर घाटे और विकास के बीच संतुलन बिठाने का दबाव और बढ़ा दिया है। पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] की वृद्धि दर 8.3 प्रतिशत रही थी।

अर्थव्यवस्था की रफ्तार के बुधवार को आए आंकड़ों से साफ हो गया है कि चालू वित्त वर्ष में विकास की दर 6.9 प्रतिशत के अनुमान से भी कम रहेगी। यही नहीं सरकार को अगले वित्त वर्ष में रफ्तार बढ़ाने के लिए उपाय भी अभी से करने होंगे। ताजा आंकड़ों के बाद वित्त मंत्री पर बजट में अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने के प्रावधान करने का दबाव बढ़ जाएगा। साथ ही रिजर्व बैंक भी अप्रैल में अपनी मौद्रिक नीति में ब्याज दरों में कमी का सिलसिला शुरू कर सकता है।

तीसरी तिमाही में विकास दर घटने की प्रमुख वजह खनन, मैन्यूफैक्चरिंग और कृषि क्षेत्र की धीमी रफ्तार रही। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की वृद्धि दर मात्र 0.4 प्रतिशत रही, जबकि खनन क्षेत्र का उत्पादन तो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 3.1 प्रतिशत घट गया। कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 2.7 प्रतिशत पर ही सिमट गई है।

महंगाई और ऊंची ब्याज दरों के चलते चालू वित्त वर्ष में औद्योगिक उत्पादन की स्थिति शुरू से ही डावांडोल रही। तीसरी तिमाही की शुरुआत ही औद्योगिक उत्पादन में गिरावट से हुई थी। अक्टूबर, 2011 में तो औद्योगिक उत्पादन की विकास दर शून्य से 5.1 प्रतिशत नीचे चली गई थी। उसके बाद से इसकी हालत में कुछ सुधार तो हुआ है, लेकिन अभी भी यह पिछले साल की रफ्तार के मुकाबले काफी धीमा है।

इसी महीने केंद्रीय सांख्यिकी संगठन ने चौथी तिमाही में जीडीपी के अनुमानित आंकड़े जारी किए थे। उनके मुताबिक जीडीपी की विकास दर 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। मंगलवार को जारी आठ बुनियादी उद्योगों के जनवरी के आंकड़े के मुताबिक इस क्षेत्र वृद्धि दर मात्र 0.5 प्रतिशत रह गई है। इसका मतलब यह हुआ कि चौथी तिमाही में भी उद्योगों के उत्पादन में सुधार की उम्मीद नहीं है। माना जा रहा है कि इसका असर अगली तिमाही की विकास दर पर भी पड़ेगा।

चालू वित्त वर्ष की पहली तीन तिमाही की औसत विकास दर 6.9 प्रतिशत पर रही है। इस अवधि में भी मैन्यूफैक्चरिंग और खनन का हाल सबसे ज्यादा खराब है। पिछले वित्त वर्ष में पहली तीन तिमाही की औसत विकास दर 8.1 प्रतिशत पर थी।

चालू साल में अर्थव्यवस्था का हाल

क्षेत्र पहली दूसरी तीसरी

तिमाही तिमाही तिमाही

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कृषि 3.9 3.2 2.7

खनन 1.8 -2.9 -3.1

मैन्यूफैक्चरिंग 7.2 2.7 0.4

बिजली, गैस

जलापूर्ति 7.2 9.8 9.0

कंस्ट्रक्शन 1.2 4.3 7.2

व्यापार, होटल

परिवहन, संचार 12.7 , 9.8 , 9.2

वित्त, बीमा

रीयल एस्टेट 9.0 10.5 9.0

सामुदायिक

सामाजिक, निजी

सेवाएं 5.6 6.6 7.9

कुल जीडीपी 7.7 6.9 6.1

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[सभी आंकड़े प्रतिशत में]

बेचैन कंपनियों ने बजट पर जमाई निगाहें

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] की वृद्धि दर के पिछले दो वर्षो के न्यूनतम स्तर पर चले जाने से कंपनियांहलकान हैं। सरकार पर पहले से ही परोक्ष तर पर नीतिगत निर्णय में सुस्ती का आरोप लगाने वाले देश के प्रमुख उद्योग चैंबरों ने सरकार से आग्रह किया है कि वह आगामी बजट का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए करे। आर्थिक सुधारों को बगैर किसी देर के आगे बढ़ाने का फैसला होना चाहिए।

फिक्की ने आशंका जताई है कि इस बार भारत की विकास दर दो वर्ष पूर्व के ग्लोबल आर्थिक मंदी के काल से भी कम रह सकती है। वर्ष 2008-09 में जब निवेश बैंक लीमन ब्रदर्स के ढहने के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था व दुनिया के तमाम बड़े देशों में मंदी छाई थी, तब भारत की विकास दर 6.8 फीसदी थी। पहले नौ महीने के आंकड़े बताते हैं कि विकास दर 6.9 फीसदी पर आ गई है। अंतिम तिमाही में इसके और कम रहने के आसार हैं। यह दर 6.5 फीसदी से भी नीचे जा सकती है। फिक्की के महानिदेशक राजीव कुमार का कहना है कि सभी महत्वपूर्ण व ढांचागत सुधार को बगैर देरी के आगे बढ़ाने से ही अगले वित्त वर्ष के लिए कुछ उम्मीद बंधेगी।

सीआइआइ के महासचिव चंद्रजीत बनर्जी ने मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की खस्ताहाल स्थिति पर सबसे ज्यादा चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि अर्थव्यवस्था में मैन्यूफैक्चरिंग की हिस्सेदारी बढ़ रही थी, लेकिन अब उसकी रफ्तार एक फीसदी से भी नीचे चली गई है। ताजा आंकड़े यह भी बताते हैं कि अर्थंव्यवस्था में नया निवेश नहीं हो रहा है। उन्होंने नई मैन्यूफैक्चरिंग नीति को जमीनी तौर पर लागू करने, नई निवेश परियोजनाओं को मंजूरी देने और ब्याज दरों को घटाने की वकालत की है।

एसोचैम ने कहा है कि आगे की सूरत भी बढि़या नहीं दिख रही है। बढ़ता राजस्व घाटा व कच्चे तेल की आसमान छूती कीमतों की वजह से अर्थंव्यवस्था के समक्ष चुनौतियां और बढ़ेंगी। ऐसे में सबकी निगाह आगामी बजट की तरफ है। पीएचडी चैंबर के मुताबिक, मौजूदा हालात से अर्थव्यवस्था तभी निकलेगी, जब निवेश के रास्ते की हर अड़चन खत्म की जाए।

सुस्त रफ्तार का असर

1. गरीबी उन्मूलन को झटका : भारत की पूरी आबादी को गरीबी रेखा से ऊपर लाने के लिए अगले तीस वर्षो तक नौ फीसदी की विकास दर चाहिए। पिछले तीन वर्षो से यह दर नौ फीसदी से नीचे रही है।

2. कर वसूली कम होगी : सुस्त अर्थव्यवस्था का मतलब होता है कॉरपोरेट सेक्टर के मुनाफे में कमी। इससे सरकार की कर वसूली कम होगी। अभी तक के आंकड़े बताते हैं कि अप्रत्यक्ष कर वसूली सालाना लक्ष्य से नीचे रहेगी।

3. कम रोजगार : सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले मैन्यूफैक्चरिंग व खनन क्षेत्र की हालात खस्ता है। सेवा क्षेत्र भी सुस्ती का शिकार है। यानी उद्योग जगत कम नौकरियां देगा।

4. कम निवेश : राजस्व घाटे के चलते सरकार ज्यादा खर्च करने नहीं जा रही। महंगे ब्याज और घरेलू व वैश्विक अर्थव्यवस्था के हालात को देखते हुए निजी क्षेत्र भी नए निवेश से कतराएगा।

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