सहयोग से समाधान: टीचिंग सेंटर में आजमाईं नई तकनीकें, स्टूडेंट्स ने भी लिया हाथों-हाथ

किसी भी कारोबार का पहला और अंतिम मकसद होता है- ग्राहक की संतुष्टि और विश्वास। इस उद्देश्य के लिए भले ही कभी आर्थिक क्षति हो जाए पर इसका लॉन्ग टर्म प्रभाव सकारात्मक होता है। कोरोना काल में कुछ ऐसा ही होर्टन सेंटर पानीपत के विनोद कुमार भरारा के साथ हुआ।

By Manish MishraEdited By: Publish:Thu, 08 Oct 2020 12:02 AM (IST) Updated:Thu, 08 Oct 2020 12:02 AM (IST)
सहयोग से समाधान: टीचिंग सेंटर में आजमाईं नई तकनीकें, स्टूडेंट्स ने भी लिया हाथों-हाथ
Hortan Center, Panipat Tried New Techniques to Sustain and Grow His Business During Pandemic

पानीपत, जेएनएन। किसी भी कारोबार का पहला और अंतिम मकसद होता है- ग्राहक की संतुष्टि और विश्वास। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए भले ही कभी आर्थिक क्षति हो जाए पर इसका लॉन्ग टर्म प्रभाव सकारात्मक होता है। कोरोना काल में कुछ ऐसा ही होर्टन सेंटर पानीपत के विनोद कुमार भरारा के साथ हुआ। विनोद ने इस दौर में अपने अनुभव और स्किल की बदौलत टीचिंग के नायाब तरीके तलाशे, छात्रों की दिक्कतों को समझा और उसके अनुसार कोर्स-टीचिंग मैथेडोलॉजी को डिजाइन किया। टीचिंग में बदलाव की उनकी यह प्रक्रिया शानदार रही। छात्रों को उनकी इस प्रक्रिया से काफी फायदा भी हुआ। बकौल विनोद यूं तो टीचिंग कोई कारोबार नहीं होता पर हमने छात्रों और अपने बीच विश्वास का ऐसा कोड डिजाइन किया जो मुश्किल वक्त में क्रैश न हुआ और हालात बदले तो यह कोड नया पैमाना हो गया। 

भैंसों की डेयरी में काम करने से लेकर हॉर्टन तक का सफर

विनोद कुमार भरारा बताते हैं कि मैं दसवीं की पढ़ाई के साथ भैंसों की डेयरी में काम करता था। वह बताते हैं कि उस दौरान कंप्यूटर नया-नया आया था। हमारे जिले में कंप्यूटर नहीं आया था। 1996 में कंप्यूटर की ट्रेनिंग लेनी शुरू की। पानीपत में लगी पहली प्रिटिंग प्रेस में बतौर डीटीपी डिजाइनर अपना करियर शुरू किया। 1997 में मैंने अपना कंप्यूटर सेंटर पानीपत में शुरू किया। इस कंप्यूटर सेंटर को खोलने के लिए मेरी मां ने अपने आभूषण भी बेच दिए थे। मैं आईपी कॉलेज, पानीपत में लेक्चरार रहा और आर्या कॉलेज में कंप्यूटर का एचओडी रहा। आइए, उन्हीं से जानते हैं कि कोरोना की कठिनाइयों को उन्होंने कैसे पार किया। 

समाधान 1: ऑनलाइन क्लासेज, वॉट्सऐप पर भेजे स्टडी वीडियो

कोरोना काल में एजुकेशन बिजनेस बुरी तरह प्रभावित हुआ। लॉकडाउन के दौरान हमारे सामने चुनौती आ गई थी कि बच्चों को कैसे पढ़ाएं। इसके अलावा एक बड़ा चैलेंज ये था कि पानीपत के सुदूर इलाकों में छात्रों के पास कंप्यूटर न था और साथ ही उनके पास संस्थान जैसा उच्च गुणवत्ता का नेटवर्क भी नहीं था। इससे निजात पाने के लिए हमने वीडियो लेक्चर का सहारा लिया। क्लास को रिकॉर्ड कर उसका रिजोल्यूशन कम कर उसे वॉट्सऐप पर भेजने लगे। 

समाधान 2: हर छात्र की समस्या पर अलग से किया गौर

पढ़ाई के दौरान कई बार ऐसा होता था कि छात्र समूह में सवाल नहीं पूछ पाता था। ऐसे में हमने फेस टू फेस वीडियो लेक्चर का सहारा लिया। वीडियो के माध्यम से छात्र इंडीविजुअली टीचर को फोन करता था और वह उसकी समस्याओं का समाधान करता था। 

(होर्टन सेंटर पानीपत के विनोद कुमार भरारा)

समाधान 3: छात्रों से फीस नहीं मांगी

कोरोना काल में सबके हालात ठीक नहीं थे। लॉकडाउन में हमने किसी छात्र से फीस नहीं मांगी ताकि उन पर बेवजह का दबाव न बनें। बतौर शिक्षक हमारी अहम जिम्मेदारी थी कि हम छात्रों को अबाध तौर पर पढ़ाई कराते रहें। शिक्षकों ने भी हमारा काफी सहयोग किया। उन्होंने भी हमसे वेतन की मांग नहीं की। 

समाधान 4: शिक्षकों का ऐसे किया प्रबंधन

लॉकडाउन के दौरान केंद्र बंद हो गया था। शुरुआत में हमें ऐसा लगा कि यह कुछ समय में खुल जाएगा पर ऐसा न हुआ। इसलिए हमने शिक्षकों से स्वैच्छिक तौर पर यह पूछा कि आप वर्क फ्रॉम होम से पढ़ाई कराना चाहते हंं या संस्थान आकर। हमारे संस्थान की महिला शिक्षकों ने घर से पढ़ाने के विकल्प को चुना। मैं संस्थान से आकर पढ़ाता था। हमने घर से पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए घर में ब्राडबैंड की व्यवस्था कराई ताकि उन्हें वीडियो रिकॉर्डिंग करने या कॉन्फ्रेंसिंग करने में किसी भी तरह की असुविधा न आए। इसके अलावा हम रोजाना हर वीडियो लेक्चर का आकलन ऑनलाइन करते थे उसके बाद ही छात्रों को भेजते थे।

समाधान 5: अंग्रेजी के वीडियो का हिंदी में किया तर्जुमा

शुरुआत में सबसे बड़ी परेशानी थी कि शिक्षकों और स्टॉफ को इस बात की जानकारी नहीं थी कि ऑनलाइन टीचिंग का खाका कैसे खींचा जाए। क्लास में बच्चों और टीचर के समक्ष संवाद बेहतर तरीके से संभव था। इसलिए मैंने टीचिंग ट्रेनिंग मॉड्यूल बनाया। साथ ही मैंने टीचरों से बच्चों को हिंदी माध्यम में पढ़ाने को कहा। साथ ही अंग्रेजी लेक्चर और वीडियो का भी हिंदी में तर्जुमा किया। हमने यह भी तय किया कि क्लास लंबी न होगी। साथ ही कोर्स पूरा करने के दौरान बीच-बीच में एक्टिविटी और ब्रेक अधिक होंगे। 

समाधान 6: वर्चुअल रियलिटी का किया प्रयोग

विनोद कहते हैं कि ऑनलाइन शिक्षा के लिए वर्चुअल रियलिटी तकनीक काफी कारगर है। इस तकनीक में आपको वीआर हेड चाहिए होता है। इससे आपको लगता है कि आप वहीं खड़े है। वह बताते हैं कि इस तकनीक का इस्तेमाल कर छात्र को ऐसा लगेगा कि वह क्लास में ही मौजूद है। मैंने स्टाफ के साथ इस तकनीक का प्रयोग किया। यह तकनीक एजुकेशन सेक्टर में काफी उपयोगी है। 

सहयोग के लिए बने सबके साथी

पानीपत में हम परमहंस कुटिया यूथ क्लब चलाते हैं। इसके माध्यम से हमने लोगों को राशन और खाना मुहैया कराया। ये खाना हमारे क्लब से जुड़े परिवार की महिलाएं बनाया करती थी। हमने पानीपत में दूध की थैली और दवाओं का भी वितरण किया। वहीं मुसीबत के समय लोगों को छोटी धनराशि दी। इसके अलावा हमने ऑनलाइन किसी भी काम को करवाने के लिए अपने केंद्र को लोगों के लिए खोल दिया था। बाहर जाने वाले मजदूरों की रेलवे टिकट हम अपने यहां से बुक कर दे रहे थे। किसी को बिल जमा करना हो या फिर कोई जरूरी ऑनलाइन काम लोग हमारे कंप्यूटर केंद्र से सहर्ष कर रहे थे। 

(न्‍यूज रिपोर्ट: अनुराग मिश्रा, जागरण न्‍यू मीडिया)

chat bot
आपका साथी