धान की फसल में कीट व रोगों पर कैसे नियंत्रण करें? आइए जानते हैं

भारत में धान का प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन दुनिया के कई देशों से काफी कम है। वहीं दुनियाभर में धान की फसल में लगने कीट तथा रोगों के प्रकोप से सालाना लगभग 10 से 15 फीसदी उत्पादन कम होने का अनुमान है।

By Ankit KumarEdited By: Publish:Wed, 18 Aug 2021 01:49 PM (IST) Updated:Fri, 12 Nov 2021 06:11 PM (IST)
धान की फसल में कीट व रोगों पर कैसे नियंत्रण करें? आइए जानते हैं
धान में यह रोग नर्सरी में पौध तैयार करते समय से लेकर फसल बढ़ने तक लग सकता है।

नई दिल्ली, ब्रांड डेस्क। भारत में धान का प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन दुनिया के कई देशों से काफी कम है। इसकी सबसे बड़ी वजह है धान की फसल में लगने वाले कीट व रोगों का सही समय पर नियंत्रण नहीं होना। वहीं, दुनियाभर में धान की फसल में लगने कीट तथा रोगों के प्रकोप से सालाना लगभग 10 से 15 फीसदी उत्पादन कम होने का अनुमान है। ऐसे में सही समय पर फसल में कीट व रोगों की पहचान करके इनका नियंत्रण करना आवश्यक होता है। गौरतलब है कि धान की फसल को मुख्यतः चार तरह के सूक्ष्म जीव जैसे कवक, जीवाणु, वायरस तथा नेमाटोड नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में धान की फसल में कीट व रोगों का उचित प्रबंधन करना बेहद आवश्यक है।

कवक के कारण लगने वाली प्रमुख बीमारियां-

ब्लास्ट रोग

धान में यह रोग नर्सरी में पौध तैयार करते समय से लेकर फसल बढ़ने तक लग सकता है। यह बीमारी पौधे की पत्तियों, तना तथा गांठों को प्रभावित करता है। यहां तक कि फूलों में इस बीमारी का असर पड़ता है। पत्तियों में शुरूआत में नीले रंगे के धब्बे बन जाते हैं जो बाद में भूरे रंग में तब्दील हो जाते हैं। जिससे पत्तियां मुरझाकर सुख जाती है। तने पर भी इसी तरह के धब्बे निर्मित होते हैं। पौधे की गांठों में यह रोग होने पर पौधा पूरी तरह खराब हो जाता है। वहीं फूलों यह रोग लगने पर छोटे भूरे और काले रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं। इस रोग के कारण फसल में 30 से 60 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है। यह रोग वायुजनित कोनिडिया नामक कवक के कारण फैलता है।

कैसे करें नियंत्रण

जैविक -इस रोग से रोकथाम के लिए ट्राइकोडर्मा विराइड प्रति 10 ग्राम मात्रा लेकर प्रति एक किलो बीज को उपचारित करना चाहिए। इसके अलावा बिजाई से स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस की 10 ग्राम मात्रा लेकर प्रति किलोग्राम बीज उपचारित करना चाहिए। खड़ी फसल के लिए ट्राइकोडर्मा विराइड या स्यूडोमोनास फ्लोरोसिस का लिक्विड फॉर्म्युलेशन की 5 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

रासायनिक- कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी या कार्बोक्सिन 37.5 डब्ल्यूपी की 2 ग्राम मात्रा लेकर प्रति एक किलोग्राम बीज को उपचारित करें। खड़ी फसल में इस बीमारी के लक्षण दिखने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी की 500 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

ब्राउन स्पॉट

यह बीमारी नर्सरी में पौधे तैयार करते समय या पौधे में फूल आने के दो सप्ताह बाद तक हो सकती है। यह पौधे की पत्तियों, तने, फूलों और कोलेप्टाइल जैसे हिस्से को प्रभावित करता है। पत्तियों और फूलों पर विशेष रूप से लगने वाले इस रोग के कारण पौधे पर छोटे भूरे धब्बे दिखाई देने लगते हैं। यह धब्बे पहले अंडाकार या बेलनाकार होते है फिर गोल हो जाते हैं। इन धब्बों के कारण पत्तियां सुख जाती है। इस रोग के कारण पौधे की पत्तियां भूरी और झुलसी हुई दिखाई देती है। इस रोग को फफूंद झुलसा रोग के नाम से जाना जाता है।

कैसे करें नियंत्रण-

जैविक- रोकथाम के लिए बिजाई से पहले बीजों को ट्राइकोडर्मा विरिड की 5 से 10 ग्राम मात्रा लेकर प्रति किलो बीज शोधित करना चाहिए। खड़ी फसल के लिए ट्राइकोडर्मा विरिड 10 मिलीलीटर मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

रासायनिक-इसके लिए कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी की 2 ग्राम मात्रा लेकर प्रति किलोग्राम बीज उपचारित करें। खड़ी फसल के लिए प्रोपीकोनाजोल 25 ईसी 500 मिली प्रति हेक्टेयर की मात्रा लेकर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

शीट रॉट-

पत्तियों पर अनियमित आकार के भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। वहीं इस रोग के प्रकोप से फूल सड़ जाते हैं जिससे फूल पूरी तरह खराब हो जाता है। जो फसल के उत्पादन को प्रभावित करता है।

कैसे करें नियंत्रण-

जैविक-इस रोग की रोकथाम के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस की 10 ग्राम मात्रा लेकर प्रति किलोग्राम बीज उपचारित करना चाहिए। वहीं खड़ी फसल के लिए रोपाई के 45 दिनों बाद स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 0.2 प्रतिशत मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। इसके बाद 10 दिनों के अंतराल पर तीन बार इसका छिड़काव किया जाना चाहिए।

रासायनिक-कार्बेन्डाजिम -एजॉक्सीस्ट्रोबिन की 500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर मात्रा लेकर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

ग्रैन डिक्लेरेशन-

धान की फसल कटाई के पहले या बाद में अनाज विभिन्न जीवों से संक्रमित हो जाता है। जिससे अनाज के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है। धान के दानों पर गहरे भूरे या काले धब्बे पड़ जाते हैं। यह धब्बे पीले, लाल, नारंगी या गुलाबी रंग के भी हो सकते हैं। जिससे फसल की गुणवत्ता घट जाती है।

कैसे करें नियंत्रण-

जैविक-धान की कटाई से पहले खेत का पानी पूरी तरह से निकाल देना चाहिए। इसके अलावा फसल को अच्छी तरह सुखाने के बाद ही स्टोरेज करना चाहिए।

रासायनिक-फूल आने के समय कार्बेन्डाजिम + मैंकोजेब (50-50प्र तिशत ) की 0.2 मात्रा लेकर छिड़काव करना चाहिए।

फाल्स स्मट-

इस रोग के कारण फसल का दाना हरे रंग के बीजाणुओं में बदल जाता है। जिसके कारण उत्पादन कम हो जाता है।

कैसे करें नियंत्रण-

प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. की 500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की मात्रा लेकर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। पहला छिड़काव पौधे में बूट लीफ आने के बाद तथा दूसरा छिड़काव फूल आने के बाद करना चाहिए।

अन्य फंगीसाइड रोग-

स्टेम रॉट-

इस रोग के कारण पत्तियों पर छोटे-छोट काले घाव बन जाते है जो बाद में सड़कर टूट जाती है। इस रोग की रोकथाम के लिए पत्तियां आने के समय 250 ग्राम प्रति हेक्टेयर कार्बेन्डाजिम की मात्रा लेकर छिड़काव करें।

फूट रॉट- नर्सरी में पौधे तैयार करते समय इस रोग के कारण धान के पौधे दुबले पतले और कमजोर रह जाते हैं। इसके लिए कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू.पी. की 2 ग्राम मात्रा से प्रति एक किलोग्राम बीज शोधित करना चाहिए।

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख वाली बैक्टीरियल बीमारियां-

लीफ ब्लाइट-

यह रोग फसल की हैडिंग स्टेज में ज्यादतर होता है। हालांकि कभी-कभी यह रोग नर्सरी तैयार करते समय भी पौधों में लग जाता है। इसमें पत्तियां पीली होकर सुख जाती है।

कैसे करें नियंत्रण-

स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट व टेट्रासाइक्लिन मिश्रण की 1 ग्राम तथा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की 30 ग्राम मात्रा प्रति 10 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

लीफ स्ट्रीक-

इस जीवाणु रोग के कारण पत्तियां आमतौर पर सुख जाती है। वहीं पत्तियों पर भूरे रंग की धारियां बन जाती है।

कैसे करें नियंत्रण-

इसके लिए भी स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट, टेट्रासाइक्लिन मिश्रण 1 ग्राम तथा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 30 ग्राम मात्रा प्रति 10 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

धान की फसल में प्रमुख वायरस जनित बीमारियां-

टंग्रो रोग -

यह धान की फसल में लगने वाला एक खतरनाक रोग है जिससे फसल 30 से 100 फीसदी चौपट हो सकती है। यह नर्सरी के समय तथा खड़ी फसल दोनों स्थितियों में लग सकता है। इसमें पत्तियां पीले से नीले रंग की हो जाती है। इस रोग के कारण पौधे जल्दी से मर जाते हैं और फसल चौपट हो जाती है।

कैसे करें नियंत्रण-

बुवाई के 10 दिनों बाद कार्बोफ्यूरन 3 डब्ल्यू की 170 ग्राम मात्रा लेकर छिड़काव करें। खड़ी फसल में रोपाई के 15 से 30 दिनों बाद फॉस्फामिडन 500 मि.ली. प्रति हेक्टेयर मात्रा लेकर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

ग्रासी स्टंट वायरस-

इस रोग के प्रकोप के कारण पत्तियां छोटी, संकरी, हल्के हरे तथा हल्के पीले रंग की हो जाती है।

कैसे करें नियंत्रण-

इस रोग की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की 100 ग्राम (प्रति हेक्टेयर) लेकर छिड़काव करें।

बौना वायरस-

जैसा की नाम से ही पता चल रहा है इस बीमारी में पौधों को समूचा विकास नहीं पाता है। इसके कारण उत्पादन कम हो जाता है। फसल के दाने छोटे तथा अपरिपक्व रह जाते हैं।

कैसे करें नियंत्रण-

फॉस्फामिडान की 500 मिलीलीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर मात्रा लेकर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

(लेखकः शक्ति सिंह)

(यह आर्टिकल ब्रांड डेस्‍क द्वारा लिखा गया है।)

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