4 साल का था जब पिता गए थे जेल, रिहा हुए तो खुशी के मारे बेटे की हो गई मौत

कोल्‍हापुर में एक व्यक्ति को पिता के जेल से रिहा होने की सच में इतनी खुशी हुई की उसकी मौत ही हो गई।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Fri, 20 Jan 2017 02:02 AM (IST) Updated:Fri, 20 Jan 2017 02:16 AM (IST)
4 साल का था जब पिता गए थे जेल, रिहा हुए तो खुशी के मारे बेटे की हो गई मौत
4 साल का था जब पिता गए थे जेल, रिहा हुए तो खुशी के मारे बेटे की हो गई मौत

पुणे/ कोल्हापुर। अब तक आपने फिल्मों में लोगों को खुशी से सदमा लगने के सीन देखे होंगे लेकिन कोल्हापुर में एक व्यक्ति को सच में इतनी खुशी हुई की उसकी मौत ही हो गई। खबरों के अनुसार कोल्हापुर के रहने वाले एक श्ख्स के पिता तब उम्रकैद की सजा पाकर जेल चले गए थे जब वो सिर्फ चार वर्ष का था। पूरे 23 साल तक कैद में रहने के बाद आजाद पिता से मिलने की उतेजना ने पुत्र की जान ही ले ली।

दरअसल वर्ष 1996 में महज चार साल के साजिद मकवाना के पिता हसन को बॉम्बे हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा दी थी जिसके बाद हसन ने कभी पैरोल के लिए भी अप्लाई नहीं किया। मंगलवार को जब कालांबा सेंट्रल जेल से रिहाई की तिथि निश्चित की गई तब बेटे साजिद की खुशी का ठिकाना न रहा।

लेकिन पिता से मिलने की यह खुशी उसके लिए जानलेवा साबित हुई और जेल के बाहर ही अचानक आए दिल के दौरे की वजह से उसकी मौत हो गयी।

जेल अधीक्षक शरद शेल्के ने बताया कि दोपहर को 65 वर्षीय हसन को रिहा किया जाएगा। उसने सैल्यूट किया और सड़क के दूसरी ओर कार में अपने परिवार के सदस्यों से मिलने चला गया। साजिद अपने पिता से मिलने को लेकर इतना अधिक खुश था कि अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं कर सका और उसे हार्ट अटैक आ गया। इसके बाद परिजन उसे नजदीकी अस्पताल ले गए जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

मुंबई के अंधेरी में साजिद मोटर ड्राइविंग स्कूल चलाता था। जेल से पिता की रिहाई के बाद उसने शादी करने की योजना बनाई थी।

यह था मामला
साजिद के पिता हसन के हाथों 1977 में एक झगड़े में एक शख्स घायल हो गया और बाद में उसकी मौत हो गई थी जिसके बाद उसे यह सजा दी गई थी।

1981 में बाॅम्बेहाई कोर्ट में हसन ने अपील किया और उसे जमानत मिली थी। हालांकि 1996 में हाईकोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा दी और पुणे के यरवदा जेल भेज दिया। वहां से 2015 के नवंबर में उसे कालांबा जेल भेजा गया।

शेल्के ने बताया, ‘1996 के बाद हसन ने पैरोल के लिए कभी अप्लाई नहीं किया और परिजनों से टेलीफोन पर बातचीत किया करता था। पिछले सप्ताह हमें राज्य सरकार से एक पत्र मिला जिसमें 17 जनवरी को उसकी रिहाई के बारे में सूचित किया गया।‘

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