समर्थन देने से कतराए दिग्गज निर्देशक

भंसाली को डर है कि किसी भी ऐसे आयोजन में पद्मावती का विरोध करने वाले उनके साथ बदसुलूकी कर सकते हैं। इसी खौफ से भंसाली पद्मावती ट्रेलर लांच समारोह से भी दूर रहे थे।

By Babita KashyapEdited By: Publish:Tue, 14 Nov 2017 02:46 PM (IST) Updated:Tue, 14 Nov 2017 02:46 PM (IST)
समर्थन देने से कतराए दिग्गज निर्देशक
समर्थन देने से कतराए दिग्गज निर्देशक

मुंबई, राज्य ब्यूरो। संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती के समर्थन में हिंदी फिल्मों के निर्देशकों की संस्था 'द इंडियन फिल्म एंड डायरेक्टर्स एसोसिएशन' आगे आई है। हालांकि बड़े निर्देशकों की मंडली इस पद्मावती समर्थन मिशन से दूर रही। वहां न तो करण जौहर पहुंचे, न राजकुमार हीरानी और न ही विधु विनोद चोपड़ा नजर आए, जो भंसाली के गुरु रहे हैं।

सोमवार शाम एक प्रेस कांफ्रेंस में एसोसिएशन से जुड़े निर्देशकों ने भंसाली और उनकी फिल्म का समर्थन किया। हैरानी की बात ये रही कि इस जमावाड़े में न तो खुद संजय लीला भंसाली मौजूद थे, न ही कोई बड़ा निर्देशक वहां पंहुचा। भंसाली को डर है कि किसी भी ऐसे आयोजन में पद्मावती का विरोध करने वाले उनके साथ बदसुलूकी कर सकते हैं। इसी खौफ से भंसाली पद्मावती के ट्रेलर लांच समारोह से भी दूर रहे थे। कुल मिलाकर भंसाली और पद्मावती के समर्थन का ये आयोजन एक औपचारिकता बनकर  रह गया। एसोसिएशन की तरफ से अशोक पंडित और सुधीर मिश्रा बोले। दोनों ने कहा कि फिल्म का विरोध करने वाले पूरी फिल्म इंडस्ट्री को गालियां दे रहे हैं, जो गलत है। इसे सहन नहीं किया जा सकता। सुधीर मिश्रा का मानना था कि विरोध करने वालों को कम से कम सेंसर बोर्ड से फिल्म पास होने का इंतजार करना चाहिए। बिना फिल्म देखे विरोध को इस तरह कैसे तार्किक कहा जा सकता है। बड़े निर्देशकों के नदारद होने को लेकर सुधीर मिश्रा और अशोक पंडित के पास कहने के लिए कुछ नहीं था।

दो बड़े सितारों के साथ नई फिल्म शुरू करने वाले एक दिग्गज निर्देशक ने निजी बातचीत में कहा कि हम ऐसी जगह जाकर न तो सरकार की नजरों में आना चाहते हैं और न ही विरोधियों की निगाह में विलेन बनना चाहते हैं। उस निर्देशक का तर्क था कि हमें अपनी फिल्म भी रिलीज करनी है। 

अगर विरोधियों के साथ पंगा लेंगे तो हमें भी खामियाजा भुगतना पड़ेगा। मधुर भंडारकर अब भी इस बात पर अफसोस करते हैं कि जब उनकी फिल्म (इंदु सरकार) को लेकर कांग्रेसी हंगामा कर रहे थे तो उनके समर्थन में कोई नहीं आया था। इससे सबक सीखकर अब भंडारकर भी दूर से तमाशा देख रहे हैं। 

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