शर्तों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने दी इच्छामृत्यु को मंजूरी

हजारों दंपति ऐसे हैं, जिनकी कोई संतान नहीं होगी। ऐसे लोगों का बुढ़ापे में कोई सहारा नहीं होता।

By BabitaEdited By: Publish:Sat, 10 Mar 2018 11:00 AM (IST) Updated:Sat, 10 Mar 2018 11:00 AM (IST)
शर्तों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने दी इच्छामृत्यु को मंजूरी
शर्तों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने दी इच्छामृत्यु को मंजूरी

मुंबई, जेएनएन। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इच्छामृत्यु को कुछ शर्तों और नियमों के साथ मंजूरी दिए जाने के बाद जहां कुछ लोगों ने इसका स्वागत किया है वहीं कुछ लोग अब भी इससे खुश नहीं हैं। ऐसा ही एक दंपती है जो मुंबई में रहता है। इस दंपती ने अपनी उम्र, बीमारी और हालातों का हवाला देकर इच्छामृत्यु की मांग की थी।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दोनों ने नाखुशी जताई है। मुंबई के चारणी रोड के समीप स्थित ठाकुरद्वार में रहने वाले वयोवृद्ध दंपति नारायण लावते (88) और उनकी पत्नी इरावती (78) का कहना है कि किसी गंभीर रोग से उनके ग्रसित होने तक उन्हें मृत्यु का इंतजार करने के लिए मजबूर करना अनुचित है। उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर इच्छामृत्यु की मांग की है।

इनका तर्क है कि जब मौत की सजा का सामना कर रहे लोगों के प्रति दया दिखाने की राष्ट्रपति के पास शक्तियां हैं। 

लगातार बदल रहा है हमारा समाज, कई ऐसे जिन्हें बुढ़ापे में सहारा नहीं हमारा समाज लगातार बदल रहा है। हजारों दंपति ऐसे हैं, जिनकी कोई संतान नहीं होगी। ऐसे लोगों का बुढ़ापे में कोई सहारा नहीं होता। क्या बदलते भारतीय सामाजिक ढांचे को ध्यान में रखते हुए कानून में बदलाव नहीं होने चाहिए? अगर कोई उम्र के एक पड़ाव पर आकर गंभीर रोगों से ग्रसित हो जाता है, तो क्या उसे इच्छामृत्यु की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए? लावते दंपति जैसे लोगों को क्या सम्मान से मरने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए? क्या सरकार को ऐसे दंपतियों के अकेलेपन को दूर करने के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनानी चाहिए? ऐसी योजना जिससे इच्छामृत्यु की मांग करने वालों के मन में जीने की चाह मरे नहीं? ये ऐसे सवाल हैं, जिनपर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है।

सम्मान के साथ विदाई, चाहते हैं नारायण व इरावती 

नारायण लावते और उनकी पत्नी इरावती बेऔलाद हैं। इनके सगे भाई-बहन भी अब इस दुनिया में नहीं हैं। ऐसे में दंपति को लगता है कि उनके जीने की अब कोई वजह नहीं बची है। अब शरीर भी उनका साथ नहीं देता है। इस उम्र में उनकी समाज के लिए कोई उपयोगिता नहीं रह गई है। ऐसे में यदि कोई अन्य उनकी देखभाल करने के लिए आगे आता है, तो वह संसाधनों की बर्बादी होगी।

इसलिए उनको इच्छामृत्यु की इजाजत मिलनी चाहिए, ताकि वे सम्मान और बिना किसी तकलीफ के इस संसार से विदाई ले सकेंं। देश की सर्वोच्च अदालत ने भी अब ये बात स्वीकार कर ली है कि सबको सम्मान पूर्वक जीने के साथ-साथ मरने का भी अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने इसीलिए इच्छा मृत्यु को मंजूरी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए शर्त के साथ इच्छामृत्यु को मंजूरी दी है। 

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