राणे को लेकर नफा-नुकसान का हिसाब लगा रही भाजपा

नवरात्र के पहले दिन उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कहते हुए घोषणा की थी कि वह शिवसेना एवं कांग्रेस का सफाया कर देंगे।

By Babita KashyapEdited By: Publish:Tue, 26 Sep 2017 02:49 PM (IST) Updated:Tue, 26 Sep 2017 02:49 PM (IST)
राणे को लेकर नफा-नुकसान का हिसाब लगा रही भाजपा
राणे को लेकर नफा-नुकसान का हिसाब लगा रही भाजपा

मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। नारायण राणे को भाजपा में शामिल करके उनकी ताकत और अनुभव का इस्तेमाल किया जाए, या उनका उपयोग भाजपा के मित्र के रूप में हो, भाजपा के दिग्गज अभी इसका हिसाब लगाने में जुटे हैं। यही कारण है कि सोमवार को दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात के बावजूद राणे को भाजपा में लेने का फैसला अभी नहीं किया जा सका। 

नारायण राणे ने पांच दिन पहले ही कांग्रेस छोड़ी है। नवरात्र के पहले दिन उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कहते हुए घोषणा की थी कि वह शिवसेना एवं कांग्रेस का सफाया कर देंगे। भाजपा में उनके प्रवेश के कयास पिछले छह महीने से लगाए जा रहे हैं। लेकिन सोमवार के दिल्ली में भाजपा के शीर्ष नेताओं के साथ दो चक्रों की बैठक के बावजूद उन्हें पार्टी में शामिल करने का फैसला नहीं लिया जा सका। कहा जा रहा है कि कोकण क्षेत्र में हो रहे पंचायत चुनावों के बाद भाजपा राणे को लेकर कोई फैसला करेगी। 

पंचायत चुनाव 16 अक्तूबर को खत्म होंगे। अर्थात यह फैसला अब दीवाली के बाद ही हो सकेगा। भाजपा सूत्रों के अनुसार पार्टी फिलहाल यह हिसाब लगाने में जुटी है कि उसके लिए राणे का प्रत्यक्ष भाजपा प्रवेश लाभप्रद होगा या उनकी परोक्ष मदद। यानी कोकण में अच्छी पकड़ रखने वाले राणे अपना स्वतंत्र मोर्चा बनाकर भी भाजपा से जुड़ सकते हैं। ऐसी स्थिति में कोकण क्षेत्र में भाजपा अपने कार्यकर्ताओं के असंतोष से बचते हुए नारायण राणे की ताकत का लाभ उठा सकेगी। यही नहीं महाराष्ट्र के कुछ अन्य भागों में भी राणे अपने स्वतंत्र संगठन का ढांचा मजबूत कर शिवसेना और कांग्रेस जैसे दलों के विरुद्ध भाजपा को फायदा पहुंचा सकते हैं। 

यदि भाजपा राणे को अपनी सदस्यता देने का निर्णय करती है तो उसे देर-सबेर उनके दो पुत्रों पूर्व सांसद नीलेश राणे एवं कांग्रेस विधायक नीतेश राणे सहित कुछ समर्थकों के लिए भी द्वार खोलने पड़ेंगे। ऐसे में भाजपा की ताकत तो बढ़ेगी, लेकिन राणे के प्रभाव वाले क्षेत्रों में भाजपा को अपने कार्यकर्ताओं का असंतोष झेलना पड़ सकता है।

राणे भाजपा में सीधे प्रवेश करें, या कोई पृथक संगठन बनाकर उसके मित्र दल बनें, दोनों ही परिस्थितियों में भाजपा उन्हें राज्यसभा में भेजकर उनका सम्मानजनक पुनर्वास कर सकती है। उनके दोनों पुत्रों की 2019 तक यथास्थिति बनाए रखने के लिए राजी किया जा सकता है। वास्तव में 65 वर्षीय राणे की असली चिंता महाराष्ट्र की राजनीति में अपने दोनों पुत्रों को स्थापित करने की ही है। 


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