मुंडे-उद्धव के बीच सैंडविच बनी भाजपा

मुंबई [राब्यू]। ऐन चुनाव के मौके पर महाराष्ट्र भाजपा को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। अंदर से गोपीनाथ मुंडे दबाव बना रहे हैं कि उन्हें राज्य में निर्णय का एकाधिकार दिया जाए। दूसरी ओर शिवसेना अध्यक्ष उद्धव आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा गठबंधन धर्म नहीं निभा रही है। शिवसेना के मुखपत्र सामना में गुरुवार को विभिन्न राज्यों का उदाहरण देते हुए यह सा

By Edited By: Publish:Thu, 13 Mar 2014 10:40 PM (IST) Updated:Thu, 13 Mar 2014 11:55 PM (IST)
मुंडे-उद्धव के बीच सैंडविच बनी भाजपा

मुंबई [राब्यू]। ऐन चुनाव के मौके पर महाराष्ट्र भाजपा को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। अंदर से गोपीनाथ मुंडे दबाव बना रहे हैं कि उन्हें राज्य में निर्णय का एकाधिकार दिया जाए। दूसरी ओर शिवसेना अध्यक्ष उद्धव आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा गठबंधन धर्म नहीं निभा रही है। शिवसेना के मुखपत्र सामना में गुरुवार को विभिन्न राज्यों का उदाहरण देते हुए यह साबित करने की कोशिश की गई है कि भाजपा अपने किसी भी मित्र दल के साथ गठबंधन धर्म ठीक से नहीं निभा रही है। हालांकि, भाजपा ने इसे उद्धव का मित्रवत सुझाव बताया है।

भाजपा के चुनाव निशान कमल को कमलाबाई की रसोई नाम देते हुए संपादकीय में लिखा गया है कि अगर भाजपा अपने मित्र दलों के साथ ऐसा ही व्यवहार करती रही तो कमलाबाई की रसोई में हाथ धोने कौन आएगा। शिवसेना ने सीधा आरोप लगाया है कि भाजपा एक दल से गठबंधन करती है, तो पिछले दरवाजे से उसी दल के दुश्मनों के साथ भी पींगें मारने लगती है। संपादकीय के अनुसार 1996 में गुजरात के नेता शंकर सिंह वाघेला ने विधायकों के एक बड़े गुट के साथ शिवसेना में शामिल होकर गुजरात में सरकार बनाने का प्रस्ताव बाला साहब ठाकरे को भेजा था। उन्होंने प्रस्ताव तो ठुकराया ही, दल तोड़ने के लिए वाघेला को फटकार भी लगाई थी। भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि उन्होंने सामना का संपादकीय पढ़ा है। इसमें भाजपा के खिलाफ कुछ भी नहीं लिखा गया है। लेख में शिवसेना की भाजपा और राजग के लिए वचनबद्धता का जिक्र किया गया है। यह एक मित्र के सुझाव जैसा लेख है।

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शिवसेना द्वारा भाजपा पर बनाए जा रहे इस दबाव को भाजपा के ही नेता गोपीनाथ मुंडे की अंदरूनी राजनीति से बल मिल रहा है। मुंडे चाहते हैं कि महाराष्ट्र भाजपा में निर्णय के सभी अधिकार उन्हें दिए जाएं। जैसा कि प्रमोद महाजन के जीवनकाल में महाजन के पास हुआ करते थे। उस दौर में या तो महाराष्ट्र में किसी अन्य प्रदेश का कोई नेता प्रभारी बनाया ही नहीं जाता था या संघप्रिय गौतम जैसे किसी ऐसे नेता को प्रभारी बना दिया जाता था, जिसकी महाजन के सामने चलती ही नहीं थी। एक प्रदेश के संगठन पर इस प्रकार का पारिवारिक एकाधिकार महाजन की हत्या के बाद ही टूटा था। अब लोकसभा और उसके कुछ माह बाद ही होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए मुंडे शिवसेना के कंधे पर बंदूक रखकर केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाने लगे हैं कि महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन तभी चल सकता है, जब भाजपा में निर्णय के सभी अधिकार उनके पास हों।

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