भारतीय ही नहीं विदेशी डिशेज का भी बढ़ा देती है स्वाद छोटी सी काली मिर्च, जानें इसकी खासियत

दुनियाभर में लोकप्रिय मसालों में शामिल है काली मिर्च का नाम। खाने को अलहदा स्वाद देने वाली गुणों की तिजोरी नन्ही सी काली मिर्च हर जगह खूब पसंद की जाती है। जानेंगे ऐसी ही खास बातें।

By Priyanka SinghEdited By: Publish:Mon, 08 Jul 2019 02:47 PM (IST) Updated:Mon, 08 Jul 2019 02:47 PM (IST)
भारतीय ही नहीं विदेशी डिशेज का भी बढ़ा देती है स्वाद छोटी सी काली मिर्च, जानें इसकी खासियत
भारतीय ही नहीं विदेशी डिशेज का भी बढ़ा देती है स्वाद छोटी सी काली मिर्च, जानें इसकी खासियत

भारतीय भोजन के बारे में सबसे बड़ी भ्रांति यह है कि यह बहुत तीखा यानि मिर्च-मसाले से भरपूर होता है जबकि हकीकत यह है कि हमारे खान-पान में मसालों का उपयोग बहुत सुचिंतित तथा संतुलित तरीके से किया जाता रहा है। विडंबना तो यह है कि जिस तीखी और मुंह जलाने वाली मिर्च न इस गलतफहमी को फैलाया है वह मात्र 500 साल पहले पुर्तगालियों के साथ भारत पहुंची है! आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में बदलते ऋतुचक्र के अनुकूल तथा वयक्ति की शारीरिक बनावट तथा मानसिक प्रवृत्ति के अनुसार कफ, पित्त, वात जैसे दोषों के निवारण के लिए विभिन्न गुणों वाले मसालों के औषधीय उपयोग के निर्देश दिए गए हैं। बहरहाल, पश्चिम इस पारंपरिक ज्ञान से वंचित  था। उसके लिए मसालों की उपयोगित बासी मांस की दुर्गंध से निजात पाने भर की थी। इस संदर्भ में यूनान तथा रोम का परिचय सबसे पहले काली मिर्च से हुआ। यह सुझाना तर्कसंगत है कि ऐतिहासिक अंरराष्ट्रिय मसाला व्यापार की बुनियाद इस उत्पाद पर टिकी थी।

महंगाई पर बने मुहावरे

ईसा के जन्म से कई हजार साल पहले ही काली मिर्च मिस्त्र पहुंच चुकी थी। पिरामिडों में दफन पारोआओं की नाक में इसके दाने मिले हैं। बाइबिल में सम्राट सोलोमन और शीबा की जो कथा बखानी गई है उमें एक बहुमूल्य दुर्लभ पदार्थ के रूप में इसका जिक्र मिलता है। जब तक पुर्तगाली अन्वेषक दक्षिणी अमेरिका से मिर्च नहीं ले आए तब तक इसकी कीमत आसमान ही छूती रहती थी। राजकुमार को बंधक से छुड़ाने लायक फिरौती जैसे मुहावरों से मध्ययुगीन यूरोप में इसके दाम का अनुमान लगाया जा सकता है।

रंग-बिरंगा इसका अंदाज

भारत में केरल काली मिर्च का जन्मस्थान है यूं दक्षिण पूर्व एशिया में अन्यत्र भी यह पाई जाती है। आज वियतनाम इसका सबसे बड़ा निर्यातक है। संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों में जिस 'मरीच' का उल्लेख मिलता है वह सियाह मिर्च तथा इसकी सहोदरा पिप्पली ही है। यह पान के जैसे पत्तों वाली बेल में नन्हीं-नन्हीं बेरियों के रूप में उगती है और तब इसका रंग हरा होता है। थोड़ा पकने पर यह सुर्ख होने लगती है और उबालने व देर तक धूप में सुखाने के बाद ही यह रंग बदलती है। हरी मिर्च कम तीखी होती है और इसे बाद में इसी रूप में इस्तेमाल करने के लिए नमकीन पानी में संरक्षित किया जाता है। बाहरी झुर्री वाला छिलका रगड़कर धोने से सफेद गोल मिर्च हाथ लगती है जिसका तीखापन सबसे कम होता है। इसे काली मिर्च कहना अटपटा लगता है पर है यह काली मिर्च का ही गोरा रूप।

कुछ तीखी- कुछ मीठी

काली मिर्च के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसकी तासीर अवसरानुकूल गर्म और ठंडी दोनों मानी जाती है। गरम मसाले का यह अभिन्न अंग है पर ठंडाई भई इसके बिना अधूरी है। इसी तरह नमकीन तथा मीठे दोनों ही व्यंजनों में इसका इस्तेमाल होता है। उत्तराखंड की गुलाब की मिठाई हो या दक्षिण का 'सकर पोंगल' इसी के साथ जुगलबंदी साधते हैं। पहाड़ी इलाकों में जाड़ा दूर भगाने के लिए जो 'मर्चवाणी' उबाली जाती है उसमें चाय की पत्तियों समेत बाकी मसालों की सहायक भूमिका ही रहती है- पर असली जान काली मिर्च ही डालती है।

पाक कला में अहम स्थान

कई व्यंजनों का नाम काली मिर्च से जुड़ा है क्योंकि इसी का खास स्वाद उनकी विशेष पहचान है। पंजाब, अवध और हैदराबाद में काली मिर्च का मुर्ग कई अवतारों में दिखाई देता है तो तमिलनाडु के चेट्टिनाड में मछली और बकरी के मांस की पाकविधियों में इसे खास स्थान दिया जाता है। केरल में प्रॉन पेपर फ्राय मशहूर है। भारत में ही नहीं, यूरोप में भी काली मिर्च सबसे अहम मसाला माना जाता है। शाकाहारी शौकीनों के लिए पनीर का काली मिर्च वाला टिक्का मौजूद है। पेपर स्टेक की बात छोड़ें, वह तो अधिकांश भारतीयों के लिए वर्जित मांस है पर हर खाने की मेज पर, चाहे घर हो या रेस्त्रां, नमक के साथ काली मिर्च की डिबिया भी रखी जाती है। पश्चिम में पास्ता या सूप पर पिसी या दरदराई काली मिर्च को स्वादानुसार छिड़कने की प्रथा है। इस काम को सहज बनाने के लिएपैपर मिल उपकरण ईजाद किया गया है। हमारे देश में भी पारंपरिक रसोई में इसे इमामदस्ते में कूटा जाता था क्योंकि इसकी सुगंध-स्वाद उड़नशील तेल की जो सौगात है वह मशीन से महीन चूर्ण बनाने से नष्ट हो जाती है।

फीकी थी विदेशी मिर्च

चीन के सेझुआन प्रदेश का खान-पान भी भारत की तरह तीखे मिर्च-मसाले वाला माना जाता है। वहां भी लाल मिर्च पुर्तगालियों के साथ ही पहुंची। इससे पहले काली मिर्च की स्थानीय प्रजाति भोजन को स्वादिष्ट बनाती थी। इसे सेझुआन पैपर कहते हैं। महाराष्ट्र में तिफल नाम से जिस गोल दाने का इस्तेमाल किया जाता है वह इसका बहुत करीबी रिशतेदार लगता है। 13वीं सदी में चीनी एडमिरल चेंग हो ने दक्षिण-पूर्व एशिया में पैर पसारे थे। जो बहुमूल्य सामग्री वो यहां से बटोर ले गए उनमें उत्तम कोटि की काली मिर्च भी थी। अर्थात् सेझुआन मिर्च हमारी काली मिर्च के सामने फीकी पड़ती थी।

पुष्पेश पंत (लेखक प्रख्यात खान-पान विशेषज्ञ हैं)

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