होली की यादें अभी भी ताजा हैं

बचपन की होली की सुनहरी यादों को सोचकर ही मन रोमांचित हो उठता है।

By Srishti VermaEdited By: Publish:Sat, 11 Mar 2017 03:23 PM (IST) Updated:Sat, 11 Mar 2017 03:31 PM (IST)
होली की यादें अभी भी ताजा हैं
होली की यादें अभी भी ताजा हैं

मोहल्ला बन जाता था घर
जैस्मिन भसीन, अभिनेत्री
होली को लेकर मेरी ढेर सारी सुनहरी यादें हैं, खासकर बचपन की। वह इसलिए कि मेरी परवरिश संयुक्त परिवार वाले माहौल में हुई है। पापा, चाचा, चाची व उनके बच्चों को मिलाकर हमारा 20 लोगों का परिवार था। लिहाजा होली पर घर ही मोहल्ला बन जाया करता था। बाकी यार-दोस्त तो जुटते ही थे। सब एक दूसरे को बुद्धू बना रंग लगाने की ताक में रहते थे। इसके लिए होली से एकाध रात पहले लंबी-चौड़ी योजना बनती थी। होली के दिन जीतने वालों को विशेष सम्मान मिलता था। फिर शुरू होता था मिठाइयों, भांग और भांगड़ा का सिलसिला। अब बड़े होने पर वह सब मिस करती हूं। काम का दवाब ही जो इतना होता है। पिछले कई सालों से होली कहां मन पाई है। इस बार भी होली के दिन अगर काम नहीं रहा तो शायद इसका जश्न मना पाऊं और कुछ दोस्तों के संग होली खेल पाऊं।

 ‘जीत’ वाली होली
ऋचा गौर, मार्शल आर्ट एक्सपर्ट
कुछ साल पहले होली पर मुझे जीत मिली तो मेरे रिश्तेदार और दोस्त खुशी से झूम उठे। इस त्योहार पर मुझे विश्व विजेता बनने का मौका मिला था। मुझे आज भी याद है साल 2013 में जब मैं विश्व प्रतियोगिता के लिए थाइलैंड गई थी। उस वक्त देश होली के खुमार में डूबा था। मैं अपना घर और देश छोड़कर टूर्नामेंट के लिए गई थी। वल्र्ड म्यूथाइन एसोसिएशन के नेतृत्व में मेरा मुकाबला रशिया और मंगोलिया के प्रतिभागियों से था। जहां मैंने उन दोनों को हराकर ब्रांज मेडल अपने नाम किया था। जब मैं घर लौटी तो त्योहार बीत चुका था, लेकिन मेरा और मेरे प्रियजनों का उत्साह कम नहीं था। वास्तव में सबके साथ मिलकर खुशी मनाने का नाम ही है होली।

खुशी का फेस्टिवल
पायल प्रताप, फैशन डिजाइनर
यह खुशी का फेस्टिवल है। मस्ती का फेस्टिवल है। इस दिन क्या पहनना है? कैसे सजना है? इसकी कोई फिक्र नहीं। बस रंग दो गाल और मल दो गुलाल एक-दूसरे को। दोस्तों से मिलना और खुशियां बांटना होली की खासियत है। वैसे तो हम सभी अपने कामों में इतने बिजी रहते हैं, लेकिन होली पर मैं सभी काम रोककर सबसे मिलती हूं और होली मनाती हूं। वास्तव में टूगेदरनेस का ही फेस्टिवल है होली और एक नए सीजन का स्वागत करने का त्योहार तो है ही यह।

बने नए दोस्त
अदिति सुराना, ग्रैफोलॉजिस्ट
मेरी मां मराठी हैं और पिता तेलुगू। इसलिए अलग-अलग संस्कृतियों के साथ पली- बढ़ी हूं। मुझे याद है बचपन की वह घटना जब सात या आठ की उम्र होगी। हम एक नई सोसायटी में रहने गए थे, लेकिन बोलचाल की भाषा अलग होने के कारण दोस्त नहीं बन रहे थे। तभी होली का त्योहार आया और सब ने रंगों के साथ खूब मस्ती की। इसी दौरान नए दोस्त बने, जिन्होंने मुझे स्थानीय बोली सिखाई। वह दोस्ती आज तक कायम है।

- संगिनी

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