प्रयोग करने में ना करें कंजूसी

सूचनाओं के विस्फोट और अन्य एक्सपोजर से बच्चों- किशोरों में कंफ्यूजन होना आम है। वे एक चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। इससे कैसे करें मुकाबला, बता रहे हैं ‘टेलोसिटी’ के सीईओ केतन दीवान....

By Srishti VermaEdited By: Publish:Sat, 25 Mar 2017 11:18 AM (IST) Updated:Sun, 26 Mar 2017 11:15 AM (IST)
प्रयोग करने में ना करें कंजूसी
प्रयोग करने में ना करें कंजूसी

बच्चों में मूल रूप से तीन समस्याएं देखी जाती हैं। एकाग्रता की कमी, अनुशासित न होना और कम सुनने की आदत। जिस दिन बच्चों को उनके मन का करने की आजादी दे दी जाएगी, वह अपना काम कहीं अधिक मन लगाकर कर सकेंगे। कहते भी हैं कि इंसान गिरता है, तभी उठता भी है। प्रयोग करना कभी न छोड़ें। एक बच्चा पढ़ाई में औसत हो सकता है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह खेल,कला या अन्य गतिविधियों में भी फिसड्डी हो। वह उम्दा लेखक या अभिनेता हो सकता है। दरअसल, हम अपने चेहरे पर एक आवरण ओढ़े रहते हैं, जिससे बाहर निकलने की जरूरत है।

अपनी खूबी के साथ रास्ता पहचानें
हमारे यहां दूसरे से तुलना करने का खूब चलन है। दूसरों को देखकर सामान खरीदते हैं। दोस्तों की देखादेखी कोर्स चुनते हैं। वह अगर क्रिकेट खेलता है, तो हम भी क्रिकेटर ही बनना चाहते हैं। हमें अच्छे अंक नहीं आते, तब हम घबरा जाते हैं। ये सारी धारणाएं गलत हैं। हमें अपनी खूबी,अपनी रुचि को पहचानना होगा। कौन, क्या रास्ता चुन रहा है, इसकी बजाय आप किस रास्ते पर जाना चाहते हैं, इसके बारे में सोचना होगा। इसलिए अंतरात्मा की आवाज सुनें, न कि किसी से प्रभावित होकर कोई फैसला लें।

पसंद-नापसंद को लिखने की आदत
मन वैसे भी बहुत चंचल होता है। उस पर से सोशल मीडिया ने उसे और उलझन में डाल दिया है। अच्छा होगा कि सुबह उठने पर और रात में सोने जाने से आधे घंटे पहले इससे दूरी बना लें। यह समय सोचने में खर्च करें। अपने दिमाग को सही जगह पर लगाने के लिए जरूरी है यह जानना कि हम क्या और क्यों कर रहे हैं? इसलिए जो
चाहते हैं और जो नापसंद है, उसे कहीं लिख डालें। नाकाम होते हैं, कंफ्यूज्ड होते हैं, तो वह भी लिखें। तीन से पांच दिन के बाद खुद-ब-खुद असली चीज की अहमियत का पता लग जाएगा। आप खुद से सवाल करें, अगर दो से अधिक जवाब मिलें, तो वह काम न करें।

-अंशु सिंह

यह भी पढ़ें : सुशिक्षित समाज: बच्चों की मसीहा बनी अनोआरा खातून

chat bot
आपका साथी