आर यू इंडियन ला

अपने देश में भले ही अपने पड़ोसियों से कोई मतलब न रखते हों पर विदेश में जहां कोई अपने वतन का दिखता है, हम जरूर बात करते हैं।

By Babita KashyapEdited By: Publish:Mon, 20 Feb 2017 02:54 PM (IST) Updated:Mon, 20 Feb 2017 03:01 PM (IST)
आर यू इंडियन ला
आर यू इंडियन ला

सिंगापुर आए हुए मुझे अभी दो सप्ताह ही हुए थे। बेटी के स्कूल में एडमिशन के बाद मन कुछ शांत हुआ। सोचा

कि चलो अब अपनी गृहस्थी को व्यवस्थित किया जाए। अपने देश में भले ही अपने पड़ोसियों से कोई मतलब न

रखते हों पर विदेश में जहां कोई अपने वतन का दिखता है, हम जरूर बात करते हैं। वह अपने प्रांत से हो तो

सोने पर सुहागा। सौभाग्यवश मुझे भी कुछ उत्तर भारतीय महिलाएं पड़ोस में मिलीं जिन्होंने बहुत अपनेपन से मुझे अपने ग्रुप में शामिल कर लिया। उन्होंने मुझे ‘मुस्तफा सुपर मार्केट’ के बारे में बताया। सिंगापुर में मुस्तफा सुपर मार्केट वह स्थान है जहां हर भारतीय चीज आसानी से मिल जाती है। मिसेस शर्मा ने तो यहां तक कह दिया कि ‘मुस्तफा’ तो एक मंदिर है जहां सप्ताह में एक बार जाना मन के लिए आवश्यक है।

सारी जानकारी इकट्ठी करने के बाद अगले दिन मैं ‘मुस्तफा सुपर मार्केट’ के लिए निकल पड़ी। मन में उत्साह और सिंगापुर में पहली बार खरीददारी करने का कौतूहल...ऐसा लग रहा था जैसे मैं सातवें आसमान पर हूं।

उन महिलाओं ने ही बताया था कि अड़तालीस नंबर की बस सीधे ‘लिटिल इंडिया’ जाती है। वहां से पैदल मुस्तफा जा सकते हंै। अड़तालीस नंबर की बस आई और मैं उसमें बैठ गई। बस में अन्य लोग भी थे। बहुत शांत और सभ्य तरीके से सफर कर रहे थे। कोई न तो एक-दूसरे से बात कर रहा था न ही सीट के लिए भागमभाग थी। मैं अपनी तुलना अन्य महिलाओं से कर रही थी। इसी सिलसिले में उत्सुकतावश दो-तीन दफे आस-पास भी देखा। लगभग बीस मिनट बाद बस लिटिल इंडिया पहुंच गई। वहां पहुंचकर मुझे लगा मानो मैं दक्षिण भारत के किसी शहर में पहुंच गई हूं। सब कुछ भारत की तरह। वाह! यहां तो चंपा का फूल भी मिलता है।

अनायास ही मेरे मुंह से निकला। पर वहां की बोलचाल की भाषा अंग्रेजी थी, न कि तमिल। वैसे जानकारी के लिए यहां बता दूं कि सिंगापुर में चार राष्ट्रीय भाषाएं हैं। उनमें से एक तमिल भी है। लोगों से पूछने पर पता चला कि मुस्तफा सुपर मार्केट आधा किलोमीटर आगे है।

आखिरकार मुझे मुस्तफा सुपर मार्केट के दर्शन हुए। अंदर गई तो आंखें फटी की फटी रह गईं। वाह यहां तो

सचमुच सबकुछ मिलता है। मैं मन ही मन बुदबुदाई। अब समस्या यह थी कि क्या खरीदूं और क्या नहीं? एक आम भारतीय की तरह ही सबसे पहले मैंने चाय, चीनी, चावल, आटा और मसाले खरीदे। फिर धीरे-धीरे सामान इतना हो गया कि मुझे वापस जाने के लिए टैक्सी लेनी पड़ी।

लंबे इंतजार के बाद मेरी बारी आई और मैं तयसामान के साथ टैक्सी में बैठी। ध्यान से देखा तो पता चला कि टैक्सी ड्राइवर महिला थी। उसने बड़ी ही विनम्रता से मुझे ‘हेलो’ कहा। प्रत्युत्तर में मैंने भी मुस्कुराते हुए हेलो कहा। कुछ दूर चलने के पश्चात महिला ने मुझसे पूछा, ‘आर यू इंडियन ला?’

ला बोलने की आदत हर सिंगापुरी को है यहां। मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- ‘हां, मैं इंडियन हूं।’ वह बोली, ‘हां, बहुत इंडियन हैं सिंगापुर में...और जो एक बार आते हैं वापस जाना ही नहीं चाहते।’ उसने शिकायती लहजे में

कहा। मैं खुद को थोड़ा गंभीर करते हुए बोली, ‘नहीं! ऐसा नहीं है। इंडिया बहुत बड़ा और सुंदर है। हमें तो नौकरी के

चक्कर में अपने वतन से दूर आना पड़ा। वर्ना किसे अच्छा लगता है परदेश में रहना?’ उसने मेरी मन:स्थिति को भांपते हुए मेरी हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘यस...यस इंडिया इज वेरी बिग!’ फिर मैंने अपने देश को सर्वोच्च सिद्ध करने की कोशिश करते हुए दलीलें देनी शुरू ही की थीं कि वह बीच में ही बोल पड़ी, ‘बट, नॉट सेफ फॉर गल्र्स एंड लेडीज (पर महिलाओं और लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं हैं।)

’ अब मुझे सचमुच गुस्सा आ रहा था। मैंने कहा, ‘नो, नॉट लाइक दैट...इंडिया इस सेफ फॉर एवरीवन।’ तभी

वह अपनी टूटी-फूटी अंग्रेजी में मुझसे बोली, ‘आपको निर्भया याद है, जो सिंगापुर इलाज के लिए आई थी और

चल बसी। हम लोगों को आज भी याद है और शायद हम कभी नहीं भूल सकते।’

मैं शांत हो गई। कहने और दलील देने के लिए कुछ भी नहीं बचा था मेरे पास। चुपचाप मैं खिड़की के शीशे से सिर टिकाए बाहर देखती रही। मैं सोचती रह गई कि क्या बोलूं...मेरा घर आ गया था। वह मुझे छोड़कर चली गई।

पर मैं अभी भी सोच ही रही हूं कि क्या बोलूं...क्या आपके पास है इसका जवाब!

संप्रति- हिंदी शिक्षिका,

सपना शुक्ला

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