गुड गवर्नस में योगदान का है इरादा

बचपन का सपना था सोसायटी के लिए कुछ करना। गुड गवनर्ेंस के जरिए देश को प्रगति की राह पर ले जाना। पहले ही प्रयास में मुझे इस एग्जाम में तीसरा रैंक मिला है। हालांकि यह रिजल्ट एक तरह से सरप्राइज की तरह सामने आया है। बीआइटी, वेल्लोर से बायोटेक्नोलॉजी में बीटेक करने व

By Edited By: Publish:Wed, 18 Jun 2014 03:09 PM (IST) Updated:Wed, 18 Jun 2014 03:09 PM (IST)
गुड गवर्नस में योगदान का है इरादा

बचपन का सपना था सोसायटी के लिए कुछ करना। गुड गवनर्ेंस के जरिए देश को प्रगति की राह पर ले जाना। पहले ही प्रयास में मुझे इस एग्जाम में तीसरा रैंक मिला है। हालांकि यह रिजल्ट एक तरह से सरप्राइज की तरह सामने आया है। बीआइटी, वेल्लोर से बायोटेक्नोलॉजी में बीटेक करने वाले रचित कहते हैं कि सिविल सर्विसेज देश सेवा से जुड़ने का सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म है। मैं हमेशा से गरीब तबके और समाज के पिछड़े लोगों के विकास के लिए काम करना चाहता था, क्योंकि उनकी हालत देखकर मुझे काफी अससोस होता था। इसलिए आइएएस का टार्गेट बचपन में ही तय कर लिया था।

मुझे कभी एमएनसी में जॉब का क्रेज नहीं रहा। मैं गुड गवनर्ेंस के साथ सोसायटी में डेवलपमेंट लाना चाहता हूं। स्थानीय समस्याओं को दूर करने के प्रयास के साथ ही ब्यूरोक्रेसी को टेक्नोलॉजी फ्रेंडली बनाना चाहता हूं। एक सफल ब्यूरोक्रेट वही है, जो लोगों से जुड़कर विकास और प्रशासन की जिम्मेदारी संभाले। सिविल सवर्ेंट का विनम्र होना भी जरूरी है। इसका मतलब यह नहीं कि वह निर्णय लेने में अक्षम हो। मेरे ख्याल से सिविल सर्विसेज में कामयाबी का कोई फिक्स्ड फॉर्मूला जैसा नहीं है। पर्याप्त सूझ-बूझ रखने वाला कोई भी स्टूडेंट ईमानदारी के साथ पांच से छह महीने सही दिशा में तैयारी कर इस परीक्षा में कामयाब हो सकता है। इंटरव्यू में कैंडिडेट की पूरी पर्सनैलिटी, प्रेजेंटेबल स्किल्स, एडमिनिस्ट्रेटिव केस स्टडी के जरिए प्रेशर हैंडल करने की क्षमता, प्रॉब्लम से डील करने का हुनर, ऑनेस्टी और इंटिग्रिटी की परख की जाती है। मैंने दिसंबर 2012 में प्लानिंग के तहत तैयारी आरंभ की थी। चूंकि सबकुछ पढ़ पाना संभव नहीं, इसलिए रोजाना 4-5 घंटे फोकस्ड पढ़ाई की। अपनी लेखन क्षमता को निखारने का भी अभ्यास किया। ज्यादा से ज्यादा प्रश्न हल करने की प्रैक्टिस की। इंटरव्यू में पूछे गए करीब 99 परसेंट प्रश्न ओपिनियन बेस्ड थे, जिसके जवाब मैंने पूरे विश्वास के साथ दिए। यूपीएससी के सिलेबस में हुए बदलावों से नुकसान नहीं, फायदा ही हुआ है। खासकर जीएस और मेन्स के सिलेबस में जिस तरह से इथिक्स का पेपर शामिल करने से एग्जाम का अप्रोच ज्यादा मॉडर्न और साइंटिफिक हो गया है।

(विस्तृत इंटरव्यू के लिए देखें जोश प्लस, 25 जून का अंक)

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