Yes I Can

तीन अलग-अलग प्रोफेशन्स में नंबर वन बनना सुपर हीरो के वश की ही बात है। आज 67 साल की उम्र में भी वह टर्मिनेटर फाइव के रूप में अपने फैन्स के बीच आ रहे हैं। आइए जानते हैं, अर्नाल्ड श्वार्जनेगर से उनकी लाइफ के सक्सेस मंत्रा...

By Babita kashyapEdited By: Publish:Wed, 04 Mar 2015 03:18 PM (IST) Updated:Wed, 04 Mar 2015 03:22 PM (IST)
Yes I Can

तीन अलग-अलग प्रोफेशन्स में नंबर वन बनना सुपर हीरो के वश की ही बात है। आज 67 साल की उम्र में भी वह टर्मिनेटर फाइव के रूप में अपने फैन्स के बीच आ रहे हैं। आइए जानते हैं, अर्नाल्ड श्वार्जनेगर से उनकी लाइफ के सक्सेस मंत्रा...

पिटाई से बना मजबूत

बड़े होकर लाइफ में पिटने से अच्छा है बचपन में पापा की पिटाई खाना। बचपन में मेरे पिताजी मुझे पीटने के लिए बेल्ट लेकर दौड़ाते थे। बहुत जबर्दस्त पिटाई होती थी, बालों से घसीट-घसीटकर। वहीं दूसरी तरफ मेरे भाई के साथ वह बहुत प्यार से पेश आते थे। हालांकि, उनकी इस आदत ने मुझे बहुत हर्ट किया। मेरे मन में उन दोनों के लिए इतना गुस्सा था कि दोनों के ही फ्यूनरल में नहीं गया। लेकिन जब-जब मेरी पिटाई हुई, मैं पहले से ज्यादा मजबूत होता गया। वे मुझसे कहते, 'तू कुछ नहीं कर पाएगा, तू बिल्कुल नालायक है।' दरअसल मैं उनकी कोई बात नहीं मानता था। इसी पर उन्हें गुस्सा आता था। मैं उनसे कहता था, 'मैं कर लूंगा। मैं एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनूंगा, बहुत अमीर बनूंगा।'

मुझे तो बॉडी बिल्डर बनना है

ऑस्ट्रिया में मेरी फैमिली फाइनेंशियली बहुत स्ट्रॉन्ग नहीं थी। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब हमारे घर रेफ्रिजरेटर लाया गया, तो उस दिन जैसे जश्न का माहौल था। पापा लोकल पुलिस में थे, सेकंड वल्र्ड वार में भी वह लड़े थे। वह चाहते थे कि मैं भी उनकी ही तरह पुलिस ऑफिसर बनूं। मां चाहती थीं कि मैं ट्रेड स्कूल जाऊं, लेकिन मुझे अच्छा नहीं लगा और मैंने जिम जाने का फैसला किया।

खुद से कैसे मिलाऊंगा नजरें

पापा स्पोट्र्स में काफी अच्छे थे। मुझे भी स्पोट्र्स अच्छा लगता था, खास तौर पर फुटबॉल। करीब 14 साल का था, तब मिस्टर ऑस्ट्रिया रह चुके कुर्ट मार्नुल से मुलाकात हुई। वह मुझे एक जिम में ले गए। मैं उन दिनों काफी दुबला-पतला हुआ करता था। मैंने वहां कई सारे बॉडी बिल्डर्स देखे। बस मैंने सोच लिया, मुझे इसी में करियर बनाना है। उन्हीं दिनों मूवी देखना भी शुरू हुआ। स्टीव रीव्स से मैं बहुत प्रभावित था। मैं पूरे जी-जान से बॉडी बिल्डिंग में जुट गया। कभी-कभार तबियत भी खराब हुई, इसके बावजूद जिम जाना कभी भी मिस नहीं किया। रात को आईने में खुद को देखता था और सोचता था, कल अगर नहीं गया, तो खुद से नजरें नहीं मिला पाऊंगा।

नालायक से मिस्टर यूनिवर्स तक

1965 की बात है। तब 18 साल का हो गया था। उन दिनों हर 18 साल के लड़के को मिलिट्री में सर्विस करना अनिवार्य था। मैंने भी एक साल तक ऑस्ट्रियन आर्मी में काम किया। इस दौरान मैंने मिस्टर यूरोप कॉन्टेस्ट में जीत हासिल कर ली। पूरे यूरोप में मेरा नाम फैलने लगा। एक साल बाद लंदन में मिस्टर यूनिवर्स कॉन्टेस्ट हुआ। यह मानो मेरे लिए अमेरिका जाने का टिकट था। हालांकि इसमें मैं सेकंड ही रहा, लेकिन कॉन्टेस्ट के एक जज चाल्र्स वेज बैनेट मुझसे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने मुझे अपने घर बुला लिया। पहली बार मैंने प्लेन से यात्रा की। लंदन के फॉरेस्ट गेट में उनके घर के नीचे ही जिम था। वहां मुझे उन्होंने मसल्स डेवलप करने की और लेग्स की कई सारी एक्सरसाइज सिखाई। इंग्लिश बोलना भी वहीं सीखा। नतीजा..., अगले साल मैंने मिस्टर यूनिवर्स का खिताब जीत लिया।

नॉन-स्टाप टर्मिनेटर

10 साल की उम्र से ही अमेरिका जाकर फिल्मों में काम करने का सपना देखा करता था। इसी उधेड़-बुन में रहता था। लंदन से म्यूनिख जाकर एक हेल्थ क्लब ज्वाइन कर लिया। फिर अगले ही साल 21 साल की उम्र में अमेरिका चला गया। वहां गोल्ड जिम में वर्क आउट करता रहा। 23 साल की उम्र में मिस्टर ओलंपिया कॉन्टेस्ट भी जीत लिया। इसके बाद तो मैं काफी मशहूर हो गया। मुझे हरक्यूलिस इन न्यूयॉर्क मूवी में हरक्यूलिस का रोल मिल गया। एक के बाद फिल्में मिलती गईं। टर्मिनेटर के जरिए एक्शन हीरो की इमेज बन गई। आज 67 साल की उम्र में भी उसी इमेज में हूं, टर्मिनेटर फाइव आने वाली है।

सपनों को एक्शन में बदलें

मैंने अब तक की लाइफ में यही सीखा कि आपकी आंखों में सपने और दिल में 'यस आइ कैन' का जज्बा होना चाहिए। फिर तो रास्ता अपने-आप बनता जाता है। हर दिन आप कुछ बेहतर करने के लिए खुद को चेंज भी करते रहिए। मंजिल बहुत ज्यादा वक्त तक आपसे दूर नहीं रह सकती। बस जरूरत है अपने सपनों की स्क्रिप्ट को एक्शन में बदलने की।

इंटरैक्शन : मिथिलेश श्रीवास्तव

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