मेहनत ने बनाया विजेता
सिविल सर्विसेज एग्जाम 2013 में 13वीं रैंक लाकर आइएएस के लिए चुने गए अवि प्रसाद अपनी सफलता का श्रेय लगन और परिश्रम से की गई तैयारी को देते हैं। जानते हैं, अवि ने कैसे तय किया यह सोपान.. अवि के लिए आइएएस बनना, किसी सपने के साकार होने जैसा है। मैंने अपना लक्ष्य तय कर रखा था। उसी पर खुद को केंद्रित कर, तैयारी की। सफलता की उम्
सिविल सर्विसेज एग्जाम 2013 में 13वीं रैंक लाकर आइएएस के लिए चुने गए अवि प्रसाद अपनी सफलता का श्रेय लगन और परिश्रम से की गई तैयारी को देते हैं। जानते हैं, अवि ने कैसे तय किया यह सोपान..
अवि के लिए आइएएस बनना, किसी सपने के साकार होने जैसा है। मैंने अपना लक्ष्य तय कर रखा था। उसी पर खुद को केंद्रित कर, तैयारी की। सफलता की उम्मीद तो थी, लेकिन 13 वीं रैंक मिलना, किसी अप्रत्याशित घटना-सी रही। मेरे ऊपर एक बड़ी जिम्मेदारी आ चुकी है, जिसे पूरी ईमानदारी से निभाऊंगा।
जॉब के साथ तैयारी
चूंकि मैं आरबीआई में मैनेजर के पोस्ट पर काम कर रहा था, इसलिए पढ़ने के लिए 3 से 4 घंटे ही समय मिल पाता था। वीकेंड पर 7 से 8 घंटे पढ़ता था। 6 से 8 महीने तैयारी की और आइपीएस में सलेक्ट हो गया। लेकिन मेरा लक्ष्य आइएएस था, इसलिए मसूरी में होने वाले फाउंडेशन को छोड़ दिया। जो भी समय मिला, उसमें रीविजन पर फोकस किया और मेन्स एग्जाम देने के बाद ही ट्रेनिंग ज्वाइन की।
सिम्पल था इंटरव्यू
मैं पहले अक्सर इंटरव्यू देकर आने वाले लोगों से सुनता था कि उनसे रोचक या दिलचस्प सवाल पूछे गए, लेकिन मेरे मामले में ऐसा नहीं था। इंटरव्यू बोर्ड विनय मित्तल का था। मुझसे सिंपल सवाल पूछे गए। जब बाहर निकला, तो अच्छा फील कर रहा था। इंटरव्यू में 215 मार्क्स आए। इंटरव्यू पर्सनैलिटी बेस्ड होता है। आप इंटरव्यू बोर्ड के सामने सवालों के क्या जवाब देते हैं, कैसे देते हैं, यह मायने रखता है। उनके द्वारा पूछे गए सवालों का कोई एक सीधा आंसर नहीं हो सकता कि आप उसे पढ़कर जवाब दे दें। वैसे भी नॉलेज टेस्ट तो प्रिलिम्स और मेन्स में हो चुका होता है। मैंने इंटरव्यू के लिए सिर्फ रेगुलर अखबार पढ़े थे।
स्ट्रेटेजी से मिलेगी सक्सेस
मेन्स एग्जाम कुछ दिनों की तैयारी या सब्जेक्ट्स को रटकर नहीं निकाला जा सकता। पहले से पढ़ाई होनी चाहिए, वही मायने रखती है। ऑप्शनल सबजेक्ट की तैयारी अच्छी तरह से होनी चाहिए। प्रिलिम्स का तो पैटर्न सेट है। इसका सिलेबस क्लियर डिफाइन है। एप्टिट्यूड टेस्ट की तैयारी स्वाभाविक रूप से है, तो कोई दिक्कत नहीं है। मैंने आरबीआई की तैयारी के दौरान एप्टिट्यूड टेस्ट की तैयारी की थी, इसलिए किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। जिसका बैकग्राउंड नहीं है, वह भी 1 से 2 महीनों की तैयारी के बाद एप्टिट्यूड टेस्ट में अच्छा कर सकता है। मेन्स में मेरा ऑप्शनल सब्जेक्ट बिजनेस लॉ था। मुझे इसके लिए अलग से तैयारी नहीं करनी पड़ी।
नया सिलेबस बेहतर
मैंने दोनों पैटर्न से एग्जाम दिया है। यूपीएससी के सिलेबस में बदलाव का स्वागत करता हूं। सिलेबस के बदलाव के बाद अब रटा-रटाया आंसर नहीं दिया जा सकता। पहले जीएस में लंबे-लंबे आंसर देने होते थे, लेकिन अब सटीक जवाब देना जरूरी है। नये सिलेबस में लॉजिकल, रेशनल और एनालिटिकल थॉट प्रोसेस पर फोकस किया गया है, जो काफी अच्छा है।
भरोसे की सर्विस
सिविल सर्विसेज के प्रति आज बहुत ज्यादा आकर्षण है। हां, इसमें आने का मकसद पैसा नहीं है। इसमें युवाओं पर भरोसा रखा जाता है। कम उम्र में इतनी बड़ी जिम्मेदारी किसी और सेक्टर या फील्ड में नहीं मिलती। वर्क प्रोफाइल ब्रॉड है। मेरी पढ़ाई पर पापा शुरू से ही ध्यान देते रहे। उन्होंने हमेशा मुझे इसके लिए प्रोत्साहित किया। पापा ने किसी चीज की कभी कमी नहीं महसूस होने दी। मां के प्यार और आशीर्वाद ने मेरे इस लक्ष्य को आसान बना दिया। सिस्टर मुझसे छोटी है, फिर भी उसे लगता था कि भैया एक दिन अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे।
क्विक डिसीजन से बनेगी बात
अच्छा एडमिनिस्ट्रेशन तभी आ सकेगा, जब आलाधिकारी लोगों की समस्याओं को सुनने के लिए उपलब्ध हों। आप फैसला चाहे जो भी लें, लेकिन सुनवाई जरूरी है। डिसीजन आपको लेना होगा। फैसले लेने में कोई विलंब नहीं किया जाना चाहिए। ये नहीं कि आइडियल डिसीजन के चक्कर में आप देर से फैसले लें और लोगों को नाउम्मीद कर दें।
अवि प्रसाद
(सीतापुर, उत्तर प्रदेश)
आइएएस टॉपर, रैंक-13
Profile @?Glance
-हाइस्कूल और इंटरमीडियट: सेक्रेड हार्ट इंटर कॉलेज, सीतापुर
-ग्रेजुएशन: जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली
-पोस्टग्रेजुएशन: एमबीए, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, जोधपुर
-अचीवमेंट: फर्स्ट अटेम्प्ट में आइपीएस, सेकंड में आइएएस
-पिता- धर्मेश्वर प्रसाद, व्यवसायी
-मां- मेधा प्रसाद, गृहिणी
-छोटी बहन- कनिष्का ज्यूडिशियरी की तैयारी कर रही हैं
इंटरैक्शन : राजीव रंजन